राजस्थान विधानसभा ने मंगलवार को राज्य में आर्थिक पिछड़ा वर्ग और विशेष पिछड़ा वर्ग विधेयक-2015 को ध्वनिमत से पारित कर दिया है. इसके तहत अनारक्षित वर्ग के आर्थिक पिछड़ों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 14 फीसदी आरक्षण मिलेगा.
गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने प्रतिपक्ष के हंगामे के बीच विधेयक के उद्देश्यों और कारणों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि राजस्थान राज्य में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण का प्रावधान भारतीय संविधान लागू होने के कुछ वर्षों बाद से ही लगातार प्रभाव में है. इसके बाद पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट को मान्य करते हुए पिछड़ी जातियों को भी 1993 में आरक्षण का प्रावधान केंद्र की भांति राज्य में भी लागू किया गया.
उन्होंने बताया कि इन जातियों द्वारा आरक्षण के प्रावधान का लाभ उठाकर अपने आप को समाज की मुख्यधारा में लाने में काफी हद तक सफलता प्राप्त की है, लेकिन इस सबके परिणाम स्वरूप अनारक्षित जातियों का आर्थिक रूप से वंचित वर्ग प्रतियोगिता में बहुत पिछड़ गया.
कटारिया ने कहा कि राज्य सरकार ने 17 सितम्बर 2007 को शशिकांत शर्मा की अध्यक्षता में राजस्थान आर्थिक पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया. आयोग ने 18 जून 2008 को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की.
रिपोर्ट की सिफारिशें
कटारिया ने कहा कि अपनी रिपोर्ट में इस आयोग द्वारा इंद्रा साहनी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दुर्बल वर्ग की व्याख्या करते हुए दिए गए विचारों को अपनी सिफारिशों का आधार बनाया और ऐसे परिवारों जिसमें सभी स्रोतों से परिवार की वार्षिक आय एक लाख 50 हजार से कम हो, उनको पिछड़ा वर्ग में मानने का अंतरिम सुझाव प्रस्तुत दिया.
उन्होंने बताया कि आयोग ने अपनी सिफारिशों में इन वर्गों को लोक सेवाओं एवं शैक्षणिक संस्थाओं में 12-15 फीसदी आरक्षण दिए जाने की अनुशंषा की. इसके अतिरिक्त इन वर्गों के कल्याण के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा, आवासन और रोजगार के क्षेत्र में एक विशेष पैकेज दिए जाने का भी सुझाव दिया ताकि सामाजिक समरसता व प्राकृतिक न्याय सुनिश्चित किया जा सके.
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा इस आयोग की सिफारिशों को उचित मानते हुए 2008 में राजस्थान अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, विशेष पिछड़ा वर्ग और आर्थिक पिछड़ा वर्ग (राज्य की शैक्षिक संस्थाओं में सीटों और राज्य के अधीन सेवाओं में नियुक्तियों और पदों का आरक्षण) अधिनियम-2008 पारित करवाया, लेकिन राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा स्थगन दिए जाने से यह आरक्षण प्रावधान अभी तक प्रभाव में नहीं लाया जा सका है.
कटारिया ने कहा कि अब जबकि राज्य सरकार द्वारा विशेष पिछड़ा वर्ग के लिए अलग से आरक्षण विधेयक लाया जा रहा है, एक अवसर प्राप्त हुआ है जब इन आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के हित में भी ऐसा ही एक पृथक आरक्षण विधेयक लाया जाए.
विशेष पिछड़ा वर्ग को नौकरी में मिलेगा लाभ
कटारिया ने विधेयक के उद्देश्य और कारणों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस विधेयक में बंजारा, बालदिया, लबाना, गाडिया लोहार, गाडोलिया, गूजर, गुर्जर, राईका, रैबारी, देबासी, गडरिया, गाडरी और गायरी को विशेष पिछड़ा वर्ग के रूप में परिभाषित करते हुए राज्य की शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश एवं राज्य के अधीन सेवाओं में नियुक्ति में 5 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान के तहत अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को आरक्षण की व्यवस्था आजादी के पश्चात से ही प्रभाव में है. बाद के वर्षों में पिछड़े वर्गों को भी आरक्षण का प्रावधान केंद्र एवं राज्य के स्तर पर किया गया. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा 2007 को चोपड़ा कमेटी का गठन किया गया, कमेटी ने राज्य सरकार को रिपोर्ट प्रस्तुत की.
गृह मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने कमेटी की रिपोर्ट का गहनता से अध्ययन कर 2008 में राजस्थान अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, विशेष पिछड़ा वर्ग और आर्थिक पिछड़ा वर्ग (राज्य की शैक्षिक संस्थाओं में सीटों ओर राज्य के अधीन सेवाओं में नियुक्तियों और पदों का आरक्षण) अधिनियम 2008 पारित करवाया, जो वर्तमान में राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायाधीन है.
-इनपुट भाषा से