राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार इन दिनों बेहद परेशान है. सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद राजस्थान की जनता शराब नही पीना चाह रही है. राज्य के आठ हजार पंचायतों में से दो हजार पंचायतों ने अपने यहां से शराब की दुकानें हटाने के लिए वोटिंग कराने के लिए सरकार को लिख कर दिया है. राजस्व की कमी के डर सरकार किसी भी तरह से इसे टालने में लगी है तो जनता कोर्ट के जरिए वोटिंग के नियम का पालन करवा रही है.
गौरतलब है कि इसके पहले राजस्थान के 15 जिलों में शराब की बिक्री में दस से 28 फीसदी की कमी आई थी, जिसकी वजह से नाराज सरकार ने अधिकारियों के गाड़ियों तक छिनकर नोटिस थमा दिए थे.
तीन साल तक के संघर्ष के बाद जब सरकार शराब की दुकान हटाने के लिए वोट करवाने के लिए सरकार राजी नही हुई तो इन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और हाईकोर्ट के आदेश पर वोट करवाए गए जिसमें 61 फीसदी लोगों ने शराब की दुकान हटाने के लिए वोट दिया और रोजदा पंचायत शराब मुक्त हुई.
दरअसल पंचायत में शराब पीने से हुई पांच मौतों के बाद यहां के लोग शराबबंदी के लिए 351 दिनों से आंदोलन चला रहे था. रोजदा पंचायत की दुकान तो बंद हो गई, लेकिन राज्य के करीब 50 पंचायतें कई महीने से शराबबंदी के लिए धरना-प्रदर्शन कर रही है. बाद में हनुमानगढ़ पंचायत के लोग भी अपने पंचायत की शराब की दुकानों को बंद करवाने के लिए नियमानुसार बीस प्रतिशत मतदाताओं के हस्ताक्षरयुक्त प्रार्थना-पत्र प्रशासनिक अधिकारियों को सौंप रखे हैं, लेकिन कई बार गुहार लगाने के बावजूद भी उनकी मांग को नहीं सुना गया और अब गांव वालों ने आर-पार की लड़ाई का मन बना लिया है.
शराबबंदी के लिए आंदोलन चला रहीं पूजा छाबड़ा का कहना है कि सरकार जानबूझकर जनता के अधिकार को दबा रही है. कानून तक का परवाह नही कर रहे हैं.आजतक के पास ऐसे 45 पंचायतों की लिखी चिट्ठी है जिसमें 20 फीसदी मतदाताओं ने लिख कर शराब की दुकान को हटाने के लिए वोटिंग की मांग जिला कलेक्टर से की है. इसके अलावा 2000 पंचायतों ने अपने यहां शराब की दुकान हटाने के लिए सत्यापन कराने के लिए लिख कर दिया है.
सरकार की समस्या यह है कि शऱाब बेचकर करीब आठ हजार करोड़ रुपये का राजस्व आता है और राज्य में देशी और विदेशी शराब की सात हजार दुकानें हैं. दरअसल राजस्थान के आबकारी एक्ट में 51 फीसदी वोट के जरीए शराब की दुकान बंद करवाने का अधिकार है जिसका कभी प्रयोग नही किया गया था, मगर पूर्व विधायक गुरुशरण छाबड़ा की जान जब शराब बंदी के लिए धरने पर बैठे समय चली गई तब से दो पंचायतों ने इस नियम के जरिए अपने यहां शराब बंदी करवाई है.
उधर आबकारी विभाग के आयुक्त ओपी यादव का कहना है कि आपसी रंजिश के लिए लोग शिकायते करते हैं और हमारे विभाग का काम है कि शराब बेचकर ज्यादा से ज्यादा राजस्व की प्राप्ति करें और इसके लिए हम लगातार कोशिश करते रहते हैं.