मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत का झंठा उठाने वाले डिप्टी सीएम सचिन पायलट का तेवर नरम होने का नाम नहीं ले रहा. पायलट समर्थक विधायक भी गहलोत हटाओ और कांग्रेस बचाओ का मोर्चा खोल रखा है, लेकिन कांग्रेस आलाकमान सीएम गहलोत के साथ मजबूती से खड़ा है. इतना ही नहीं कांग्रेस ने पायलट को डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया है. सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक बीजेपी के साथ जाने के तैयार नहीं है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि बीजेपी का दामन थामकर वो अपनी मौजूदा सहानुभूति को खत्म नहीं करना चाहते हैं?
भारतीय जनता पार्टी की ओर से अब सचिन पायलट को ऑफर दिया गया है. ओम माथुर का कहना है कि सचिन पायलट अगर बीजेपी में आते हैं तो उनके लिए दरवाजे खुले हैं. कोई भी बीजेपी में आकर हमारी विचारधारा स्वीकार करता है, तो हम लोग हमेशा उसका स्वागत करेंगे. पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की बात पर ओम माथुर का कहना है कि कौन मुख्यमंत्री होगा- नहीं होगा, यह पार्लियामेंट्री बोर्ड डिसाइड करता है. बीजेपी के इस खुले ऑफर को सचिन पायलट स्वीकार करते हैं या नहीं यह उनके ऊपर है, लेकिन साथी विधायक बीजेपी के साथ जाने को तैयार नहीं हैं.
ये भी पढ़ें: राजस्थान में MP दोहराना चाहते थे पायलट, पर नहीं दिखा सके सिंधिया जैसा साहस
पायलट-गहलोत के बीच शह-मात के खेल पर बीजेपी की नजर है. बीजेपी के तमाम नेता सचिन पायलट के समर्थन में खड़े नजर आए. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा था कि पुराने साथी रहे सचिन पायलट को हाशिए पर किया जाता देख और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा दरकिनार किए जाने से दुखी हूं. इससे साफ है कि कांग्रेस में योग्यता और क्षमताओं के लिए कोई जगह नहीं है. इसके बाद रविवार को पायलट और सिंधिया की मुलाकात और बीजेपी का दामन थामने की चर्चा होती रही, लेकिन पायलट ने खुद ही कहा है कि वे बीजेपी में शामिल नहीं होने जा रहे.
ये भी पढ़ें: सचिन पायलट समेत तीन मंत्री बर्खास्त, प्रदेश अध्य़क्ष पद भी छीना गया
वहीं राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार श्याम सुंदर शर्मा कहते हैं कि पायलट के साथ कुछ ऐसे विधायक भी हैं जो सरकार के खिलाफ जो सकते हैं, लेकिन वो न तो भाजपा के साथ जाने को तैयार हैं और न ही अपनी विधायकी से इस्तीफा देने के लिए राजी है. इसीलिए पायलट भी असंतोष और बगावत की ऊहापोह के कशमकश में फंसे हुए हैं और बीजेपी को लेकर कोई फैसला नहीं कर पा रहे हैं. वह कहते हैं इसके अलावा एक बड़ी वजह यह भी है कि पायलट के साथ विधायक तो हैं, लेकिन बीजेपी में जाकर मौजूदा मिल रही सहानुभूति को खत्म नहीं करना चाहते हैं. ऐसे में वो कांग्रेस से छोड़ने के बजाय निकाले जाने की रणनाीति पर हैं ताकि वो इसके जरिए सहादत के तौर पर अपने आपको पेश कर सकें.
शकील अख्तर कहते हैं कि भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी सचिन को साथ लाने में सहमत और सक्रिय नहीं दिख रही हैं, जिस तरह से मध्य प्रदेश में सिंधिया को साथ लाने की कवायद शिवराज सिंह चौहान ने की थी. सिंधिया की तरह पायलट का बीजेपी में जाने का फिलहाल कोई अर्थ दिखाई नहीं देता है, ना ही बीजेपी के लिए और ना ही सचिन पायलट के लिए. हालांकि अब कांग्रेस ने सचिन पायलट पर एक्शन ले लिया है तो देखना होगा कि वो क्या सियासी कदम उठाते हैं.