राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले आज मंगलवार को राज्य के विश्वविद्यालयों में छात्र संगठन का चुनाव परिणाम आने वाला है और इसके बाद यहां पर छात्रों की नई सरकार बनेगी. माना जाता है कि राज्य के चुनावी साल में छात्र संघों में जिन पार्टियों के छात्र संगठन बाजी मारते हैं उनकी सरकार बनने की संभावना ज्यादा रहती है.
राजनीतिक दल भी सक्रिय
लिहाजा, कांग्रेस और बीजेपी के सभी बड़े नेता पिछले दरवाजे से इन विश्वविद्यालय चुनाव में पूरी तरह से सक्रिय रहे हैं. राजस्थान के पिछले 8 विश्वविद्यालयों के 5 साल के बीजेपी सरकार के दौरान के चुनाव परिणामों को देखें तो 14 बार एबीवीपी के अध्यक्ष बने तो 14 ही बार एनएसयूआई ने कब्जा किया है.
2013 के विधानसभा चुनाव में छात्र संगठनों के चुनाव में एबीवीपी ने बाजी मारी थी और उस साल बीजेपी ने राज्य में ऐतिहासिक जीत हासिल की थी. तब बीजेपी ने 200 सदस्यीय विधानसभा में 160 सीटें हासिल की थी.
हालांकि कई मौकों पर एसएफआई, निर्दलीय और दूसरे संगठन भी जीते हैं, लेकिन ज्यादातर समय इन संगठनों से भी कांग्रेस और बीजेपी के छात्र संगठनों के बागी प्रत्याशी जीतते रहे हैं.
एबीवीपी और एनएसयूआई में कांटे की टक्कर
इस बार भी राजस्थान के विश्वविद्यालयों में मुख्य रूप से बीजेपी की छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई के बीच ही मुकाबला है. पिछले 5 साल के बीजेपी शासन के दौरान हुए चुनाव को देखें तो 8 विश्वविद्यालयों में 40 अध्यक्ष चुने गए हैं जिसमें से 14 बार एबीवीपी के और 14 बार एनएसयूआई के और 12 बार तीसरे मोर्चे या फिर निर्दलीय रहे हैं.
इस बार विधानसभा चुनाव से 2 महीना पहले छात्र संघ का परिणाम आ रहा है. ऐसे में सभी की निगाहें छात्र संगठनों के चुनाव परिणामों पर लगी है. राजस्थान विश्वविद्यालय में 2016 और 17 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुए थे, तब कहा जा रहा था कि राज्य की बीजेपी सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा तो है, लेकिन उन्हें कांग्रेस भी पसंद नहीं है.
उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में 2016 में छात्र संघ चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहा था तो 2017 में एबीवीपी ने बाजी मार ली थी. उदयपुर कृषि विश्वविद्यालय में एनएसयूआई पिछले तीन सालों से जीतती आ रही है.
अजमेर के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में 2017 में निर्दलीय उम्मीदवार ने बाजी मारी थी जो बाद में एनएसयूआई में शामिल हो गया. जोधपुर विश्वविद्यालय की बात करें तो 2016 में एबीवीपी जीती जबकि 2017 में एनएसयूआई विजयरी रही. कोटा विश्वविद्यालय में शुरू से ही एबीवीपी का कब्जा रहा है. 2014 से 2017 तक यहां केवल एबीवीपी जीतती आई है.
इसी तरह से बीकानेर के महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय में भी शुरू से ही एबीवीपी का कब्जा रहा है. यहां से 2017 में भी एबीवीपी ही जीती थी. जयपुर के संस्कृत विद्यालय में 2016 में निर्दलीय जीता था तो 2017 में एबीवीपी जीती थी.
मंगलवार को सुबह 11:00 बजे विश्वविद्यालयों में मतपेटिया खुलेंगी और परिणाम दोपहर बाद आना शुरू हो जाएगा, जबकि शाम होते-होते राजस्थान के विश्वविद्यालयों में छात्र संगठन की स्थिति साफ हो जाएगी और तय हो जाएगा कि इस बार बाजी किसके हाथ लग रही है.