रणथंभौर में तीन नन्हे बाघ शावक दिखे हैं जिससे वहां खुशी का माहौल है. अरसे बाद टी-8 बाघिन अपने की तीन बच्चों के साथ पार्क में लगे कैमरे में कैद हुई है. पर्यटकों ने हीं इनकी तस्वीरें अपने कैमरे में उतारीं थीं. रणथंभौर परियोजना के जोन संख्या 6 में इन शावकों को बाघिन के साथ देखा गया. टी-8 बाघिन को लाडली के नाम से भी जाना जाता है.
रणथंभौर बाघ परियोजना क्षेत्र में रहने वाली बाघिन टी-8 पहली बार अपने तीन नन्हे शावकों के साथ नजर आई है. वन अधिकारीयों के मुताबिक सुबह की पारी के दौरान पार्क क्षेत्र की जोन संख्या 6 में सारंग की पट्टी इलाके में बाघिन टी-8 को तीन नन्हे शावकों के साथ देखा गया है.
पार्क में घूमने आए कुछ पर्यटकों ने इनका वीडियो भी बनाया है. वन अधिकारीयों के मुताबिक तीनों शावक करीब दो से तीन माह की उम्र के है. वन अधिकारीयों ने बताया कि बालास फीमेल नाम से मशहूर बाघिन टी-8 ने तीसरी बार शावकों को जन्म दिया है.
बाघिन टी-8 पहले भी रणथंभौर में 'खुशखबरी' दी चुके है. नन्हे शावकों के जन्म से ये साफ हो रहा है कि रणथंभौर में बाघों का कुनबा बढ़ रहा है जो यहां के लिए अच्छे संकेत हैं. बाघों का प्रजनन करवाकर उनकी संख्या बढ़ाने का मकसद पूरा होता दिख रहा है. तीनों शावकों की सुरक्षा को लेकर वन प्रशसन काफी सतर्क है और इसकी लिए विशेष देखरेख की जा रही है.
रणथंभौर नेशनल टाईगर रिजर्व के निदेश सुदर्शन शर्मा का कहना है कि बाघिन टी-8 ने तीसरी बार शावकों को जन्म दिया है और मंगलवार को सुबह की पारी में पहली बार बाघिन जोन नम्बर 6 में अपने बच्चों के साथ पर्यटकों को दिखाई दी थी. उसके बाद हमने इसकी पड़ताल की तो पता चला कि यहां तीन शावकों ने जन्म लिया है. रणथंभौर में बाघों की संख्या बढ़ने से पर्यटक भी खुश होंगे.
कौन है लाडली बाघिन?
लाडली नाम की बाघिन जोन संख्या 6,7,8 की सबसे प्रमुख बाघिन है, जिसकी उम्र आठ साल है. लाडली अपने इलाके में टी-34 के बाघ कुंभा के साथ रहती है, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि नन्हें शावकों का पिता भी यही बाघ है. लाडली ने इससे पहले 2011 में दो शवकों को जन्म दिया था जिनमें एक नर और एक मादा थी.
रणथंभौर में इस वक्त करीब 60 बाघ-बाघिन रहते हैं. पार्क को 1980 में नेशनल पार्क का दर्जा दिया गया था, उससे पहले इसे सवाई माधोपुर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के नाम से जाना जाता था. साल 1973 में पार्क को प्रोजेक्ट टाइगर के तहत संरक्षण दिया गया था.