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वसुंधरा ने विधायकों को लाभ के पद के कानून से किया बाहर, गुपचुप तरीके से बिल पास

राजस्थान विधानसभा निर्हरता निवारण विधेयक 2017 को विधानसभा में पास किया गया, जिसके अंतर्गत संसदीय सचिव, बोर्ड, निगम, प्राधिकरण के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या निदेशक पद पर बैठा कोई भी विधायक अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है. बिल के अनुसार कोई भी विधायक इन पदों पर बैठे तो वो लाभ का पद नहीं कहलाएगा.

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वसुंधरा राजे
वसुंधरा राजे

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लोकसेवकों के संरक्षण देनेवाली बिल में किरकिरी झेलने वाली राजस्थान की वसुंधरा सरकार एकबार फि‍र विवाद को जन्म दे दिया है. वसुंधरा सरकार ने विधायकों की सदस्यता बचाने के लिए संसदीय सचिव को लाभ के पद से बाहर करने का बिल विधानसभा में पास करा लिया. गुपचुप तरीके से पास कराए गए इस बिल का कांग्रेस ने भी कोई विरोध नही किया. आपको बता दें कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार में संसदीय सचिव बनाए गए विधायकों की सदस्यता खत्म करने की मांग बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियां कर रहे हैं.

राजस्थान विधानसभा निर्हरता निवारण विधेयक 2017 को विधानसभा में पास किया गया, जिसके अंतर्गत संसदीय सचिव, बोर्ड, निगम, प्राधिकरण के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या निदेशक पद पर बैठा कोई भी विधायक अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है. बिल के अनुसार कोई भी विधायक इन पदों पर बैठे तो वो लाभ का पद नहीं कहलाएगा, इसके लिए सरकार ने चोर दरवाजा निकालकर इन पदों पर बैठे विधायकों के मानदेय और भत्ते हटा लिए हैं.

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संविधान के आर्टिकल 167 ए के मुताबिक मंत्रीपरिषद में विधायकों की कुल संख्या के 15 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, जबकि राजस्थान में पहले से ही पूरे 30 मंत्री है और सरकार ने ऊपर से 10 विधायकों को संसदीय सचिव बना रखा है. गौरतलब है कि कांग्रेस की गहलोत सरकार ने भी 10 से ज्यादा विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था.

बीजेपी के कद्दावर नेता और विधायक घनश्याम तिवारी का कहना है कि जब दिल्ली और असम के मुख्यमंत्री संसदीय सचिव को लाभ के पद से बाहर रखने के विधेयक नहीं पारित करवा सकते हैं तो हमारी मुख्यमंत्री में कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं. 28 जुलाई को ही सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताया था. आपको बता दें कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से घनश्याम तिवारी के 36 के आंकड़ें रहे हैं.

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