राजस्थान सरकार ने किसानों की मदद के लिए विश्व बैंक से 545 करोड़ रुपये लिए, मगर ये पैसे किसानों तक पहुंच नहीं पाए. राजस्थान सरकार ने वर्ष 2008 में किसानों को कर्ज देने की 832 करोड़ की योजना बनाई थी. इस योजना के तहत सरकार ने विश्व बैंक से कर्ज के लिए करार किया.
देरी की वजह कायदे-कानून
विश्व बैंक ने 832 करोड़ में से 545 करोड़ रुपये जारी भी किए, लेकिन 2016 तक इसमें से सरकार महज 42 करोड़ रुपये ही किसानों को कर्ज बांट पाई है, जबकि इसके ब्याज के बदले 48 करोड़ रुपये जनता की कमाई से सरकार वर्ल्ड बैंक को भरेगी. राजस्थान सरकार का कहना है कि देरी कई तरह के नियम और कायदे-कानून की वजह से हुई.
ब्याज में जाएगी जनता की कमाई
घोषणाएं करना और भूल जाना सरकारों की आदत सी बन गई है, लेकिन सरकार की ये आदत जब जनता पर भारी पड़े तो क्या कहेंगे. जनता की गाढ़ी कमाई के 48 करोड़ रुपये राजस्थान सरकार वर्ल्ड बैंक को ब्याज के तौर पर देगी क्योंकि किसानों के लिए 542 करोड़ रुपए लेकर खर्च करना भूल गई.
किसानों को मात्र 42 करोड़ का वितरण
दरअसल 2008 में वसुंधरा सरकार ने राजस्थान एग्रीकल्चर कॉम्पटिटिवनेस प्रोजेक्ट बनाया और फंडिंग के लिए केंद्र सरकार के जरिए वर्ल्ड बैंक को भेजा. इसमें कृषि, बागवानी, पशुपालन, सिंचाई और भूजल जैसे कई विभागों को मिलकर किसानों को कर्ज बांटने की योजना थी. इस बीच वसुंधरा सरकार चली गई और कांग्रेस की गहलोत सरकार आई. उसने 2012 में योजना की फंडिंग के लिए 832 करोड़ का प्रोजेक्ट वर्ल्ड बैंक को दिया. जिसमें से 545 करोड़ रुपए 1.25 फीसदी की ब्याज दर पर राजस्थान सरकार को दे दिए गए. मगर 2016 तक इसमें से महज 42 करोड़ ही सरकार किसानों को बांट पाई.
किसानों को ऐसे मुहैया कराना था कर्ज
17 जिलों में यंत्र, बीज और खाद के लिए 14 लाख 39 हजार रुपये
फल, सब्जी, सोलर पंप के लिए 3 लाख 13 हजार रुपये
जल संग्रहण के लिए 7 लाख दो हजार रुपये
पशुपालन के लिए 2 लाख 19 हजार रुपये
नहर सिंचाई निर्माण के लिए 2 लाख 36 हजार रुपये
भूजल गतिविधियों के लिए 11 लाख 50 हजार रुपये
राजस्थान सरकार के कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी का कहना है कि देरी इसलिए हुई क्योंकि
1. चार विभागों को मिलकर कर्ज बांटने थे.
2. केंद्र सरकार ने राजस्थान ट्रांस्परेंसी एक्ट के बजाए खर्च के लिए अलग से नियम बनाने को कहा.
3. इस योजना में 25 फीसदी रकम किसानों को पहले खर्च करनी थी, जो किसान करते नहीं हैं.
4. सरकार बदलने से योजना पर अमल नहीं हो पाया.
राजस्थान में कर्ज माफी नहीं बल्कि कर्ज मिलना ही मुश्किल है
उत्तर प्रदेश मे भले ही योगी सरकार ने किसानों को कर्ज माफी की सौगात दी हो लेकिन राजस्थान में हालात एकदम जुदा हैं. राजस्थान में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने पहले ही किसानों को मार रखा है और अब किसानों के हिस्से में लगातार कटौती ने कर्ज बांटने के लक्ष्य में ही कटौती कर दी है यानी किसानों को दोगुनी मार झेलनी पड़ रही है.
ब्याजरहित लोन में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे किसान
पिछले साल राजस्थान सरकार ने ये बताया था कि ब्याज रहित लोन से 26 हजार किसानों को जोड़ा जाएगा, लेकिन इस बार किसानों ने इसमें रुझान नहीं दिखाया. दरअसल नाबार्ड के सहयोग से सरकार किसानों ब्याज रहित लोन उपलब्ध कराती है. समय पर लोन चुकाने पर ब्याज सब्सिडी मिलती है. प्रदेश में योजना के तहत किसानों को कभी 17 हजार करोड़ दिए जाते थे लकिन 2014 से स्थिति बदल रही है. 2015-16 में सरकार ने 14 हजार करोड़ का लक्ष्य रखा, लेकिन किसानों के दबाव के चलते 15 हजार करोड़ का लोन देना पड़ा था. 2016-17 में पिछले के मुकाबले 500 करोड़ अधिक का लक्ष्य रखा लेकिन वर्ष के अंत में साढ़े बारह हजार करोड़ का लोन ही दिया गया.
कर्ज वसूली में भी पिछड़ रही है राजस्थान सरकार
सरकार लोन बांटने के साथ वसूली में भी पिछड़ रही है. पिछले साल 70 प्रतिशत वसूली हुई, लेकिन इस वर्ष यह 37 प्रतिशत ही रह गई यानी साफ है कि किसान लोन चुका पाने की स्थिति में है ही नहीं. सरकार ने अभी तक समर्थन मूल्य पर खरीद तक शुरू नहीं की है. किसान की फसल की खरीद के बिना वसूली संभव नहीं है. सरकार ने समय सीमा नहीं बढ़ाई तो किसान पर ब्याज की भी मार पड़ेगी क्योंकि समय सीमा के बाद ब्याज की छूट नहीं मिलती.