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भारत को मिल रहे अमेरिकी मदद पर सीनेटर ने उठाए सवाल

एक अमेरिकी सीनेटर ने भारत जैसे देशों को वित्तीय सहायता पर सवाल उठाते हुए कहा है कि जो देश अमेरिकी कर्ज को खरीद सकते हैं, उन्हें वित्तीय मदद देने का औचित्य नहीं बनता.

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एक अमेरिकी सीनेटर ने भारत जैसे देशों को वित्तीय सहायता पर सवाल उठाते हुए कहा है कि जो देश अमेरिकी कर्ज को खरीद सकते हैं, उन्हें वित्तीय मदद देने का औचित्य नहीं बनता.

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रिपब्लिकन सीनेटर टॉम कोबर्न ने अपनी रिपोर्ट ‘बैक इन ब्लैक: ए डेफिसिट रिडक्शन प्लान’ में कहा है कि राष्ट्रपति बराक ओबामा प्रशासन भारत जैसे देशों को वित्तीय मदद मुहैया करा रहा है, जिन्होंने 39.8 अरब डालर के अमेरिकी ऋण बांड खरीदे हैं.

कोबर्न ने कहा,‘ऐसे देशों से उधारी जुटाना जिन्हें हमारी मदद मिली है, दोनों पक्षों के लिए जोखिम भरा है. यदि कोई देश अमेरिकी ऋण को खरीद सकता है,तो वह अपने सहायता कार्यक्रमों के लिए वित्त का भी प्रबंध खुद कर सकता है.’

कोबर्न ने 621 पृष्ठ की रिपोर्ट में हाल की संसदीय अनुसंधान सेवा (सीआरएस) का उल्लेख किया है, जिसमें कहा गया है कि संघीय सरकार ने भारत और चीन जैसे 16 देशों को 1.4 अरब डालर की विदेशी मदद दी है.
अमेरिकी ट्रेजरी विभाग के अनुसार, अमेरिकी ऋण का सबसे बड़ा खरीदार चीन है, जिसके पास 1,100 अरब डालर के ट्रेजरी बांड हैं. चीन को 2009-10 में अमेरिका से 2.72 करोड़ डालर की अमेरिकी मदद मिली है.

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इसी तरह ब्राजील के पास 193.5 अरब डालर की ट्रेजरी प्रतिभूतियां हैं, जबकि उसे 2.5 करोड़ डालर की विदेशी सहायता प्राप्त हुई. इसी तरह रूस के पास 127.8 अरब डालर की प्रतिभूतियां हैं, जबकि उसे 7.17 करोड़ डालर की विदेशी मदद मिली. भारत के पास 39.8 अरब डालर के ट्रेजरी बांड हैं और उसे अमेरिकी से सहायता के रूप में 12.66 करोड़ डालर की राशि मिली.

सीआरएस ने कोबर्न को 13 मई को लिखे पत्र में कहा है कि भारत को 2010 में अमेरिका से 12.66 करोड़ डालर की वित्तीय मदद मिली. इसमें से 25 लाख डालर की राशि आतंकवाद से लड़ाई के लिए है.

जबकि 7,00,000 डालर भारी नुकसान पहुंचाने वाले हथियारों से निपटने, तीन करोड़ डालर एचआईवी-एड्स से मुकाबले के लिए तथा 2.2 करोड़ डालर परिवार नियोजन कार्यक्रम के लिए प्राप्त हुए.

इसी तरह भारत को 1.9 करोड़ डालर सहायता जच्चा-बच्चा स्वास्थ्य तथा 1.37 करोड़ डालर टीबी से मुकाबला करने के लिए प्राप्त हुए. दुनिया के 16 देश ऐसे हैं जो 10 अरब डालर से अधिक के अमेरिकी ऋण के खरीदार हैं.

इस सूची में भारत आठवें स्थान पर है। कोबर्न ने कहा है कि जब ये देश हमारा ऋण खरीद सकते हैं, तो वे अपने सहायता कार्यक्रमों के लिए वित्त का प्रबंध भी खुद कर सकते हैं.

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