दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में हुई ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की बैठक में राहुल गांधी को पार्टी के चुनाव अभियान का आधिकारिक अगुवा बना दिया गया. आवाज में कुछ अधिक तेवर के साथ उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने की कोशिश की. इस भाषण में बीजेपी के नरेंद्र मोदी और आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल के लिए भी संदेश थे. पढ़िए इस भाषण की दस अहम बातें और उनके राजनीतिक मायने.
1.पीएम कैंडिडेट के कल्चर पर ही संविधान का हवाला देकर सवाल उठा दिए. ये दिलचस्प है क्योंकि दूसरी पार्टियों में कई दावेदार हैं और ऐसे में पीएम कैंडिडेट बताना उनकी राजनीतिक जरूरत बन जाता है. जबकि कांग्रेस के मंच से बार-बार लगातार कहा जा रहा है कि यह बताने की जरूरत नहीं कि हमारा नेता कौन है. नेहरू थे. इंदिरा थीं. राजीव थे, सोनिया हैं और अब राहुल गांधी भी हैं.
2. नरेंद्र मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के नारे पर निशाना साधते हुए राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस एक पार्टी नहीं सोच है. इस देश की सोच. इस दौरान उन्होंने याद दिलाया कि अंग्रेजों से कांग्रेस लड़ी थी. इतना ही नहीं राहुल अपने तर्क को खींचकर देश के 3000 साल के इतिहास तक ले गए. उन्होंने कह दिया कि जो हमारी सोच है. वही गीता-महाभारत की सोच थी, अशोक की सोच थी, गुरु नानक की सोच थी, गांधी की सोच थी. अब मसला ये है कि क्या राहुल की इस सोच को देश की जनता भाव देगी.
3. राहुल गांधी ने भाषण में एक ही पॉपुलर मांग रखी. प्रधानमंत्री से देश के लिए 12 सिलेंडर मांगे. साथ में यह भी कहा कि कांग्रेस राज वाले प्रदेशों में महंगाई कम होगी. ये सुनना महत्वपूर्ण है. क्योंकि महंगाई के चलते ही कांग्रेस विधानसभा में बुरी तरह हारी. इसी कांग्रेसी मंच पर पीएम कह रहे हैं कि महंगाई से किसानों को फायदा पहुंचा है और कांग्रेस के पुरोधा कुछ और राग अलाप रहे हैं.
4. राहुल गांधी पार्टी में लोकतंत्र लाने की कवायद अपने डेब्यू के दिनों से ही कर रहे हैं. उसी के तहत एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस में चुनाव शुरू करवाए. अब कह रहे हैं कि 15 संसदीय क्षेत्रों में पायलट प्रोजेक्ट के तहत कैंडिडेट का चुनाव लोग करेंगे. पदाधिकारी और कार्यकर्ता वोट डालकर चुनेंगे. यह एक नया प्रयोग है, मगर कांग्रेस के लिए. आम आदमी पार्टी पहले ही ऐसे प्रयोग का दावा करती रही है.
5. राहुल गांधी ने मान लिया कि फिलवक्त विपक्षी पार्टियों का प्रचार बेहतर है. इसके लिए उन्होंने शब्द चुना मार्केटिंग का और कहा कि विपक्षी दल (बीजेपी) गंजे को कंघा बेच रहे हैं. फिर आम आदमी पार्टी पर निशाना साधते हुए बोले कि नए लोग आए हैं, जो गंजों को हेयर कट दे रहे हैं. इन पर मनमोहन ने भी निशाना साधा था. बीजेपी को सांप्रदायिक कहा था और आम आदमी पार्टी पर तंज कसते हुए कहा था कि सड़कों से देश नहीं चलता.
6. राहुल ने महिलाओं को सिर्फ सिलेंडर के सहारे ही नहीं लुभाया. उन्होंने कुछ ऐसा भी कहा, जिस पर मंच पर बैठीं मम्मी सोनिया गांधी भी खिलखिला उठीं. राहुल बोले कि मैं इस कमरे में, संसद में आधी आबादी का आधा हिस्सा चाहता हूं. फिर राहुल गांधी बोले कि मैं चाहता हूं कि कांग्रेस शासन वाले राज्यों में आधी मुख्यमंत्री महिला हों. अब यह विचार कितना क्रांतिकारी है और कितना व्यावहारिक, आप खुद ही सोच लें.
7. राहुल गांधी ने पिछले कुछ भाषणों की तर्ज पर टेलीकॉम क्रांति का बार-बार जिक्र किया. वह यह भी बोले कि गरीबी रेखा और मिडल क्लास के बीच फंसे लोगों को हम ऐसी ही क्रांति की तर्ज पर मिडल क्लास कैटेगरी में लेकर आएंगे. शिक्षा पर खास जोर दिया. मगर सवाल उठता है कि पिछले 10 साल में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव क्यों नहीं कर पाए राहुल?
8. सड़कों पर उतरकर सरकार को झुकाने की प्रवृत्ति पर कटाक्ष करते हुए राहुल ने कहा कि कानून बनाने का हक उन्हें है, जिन्हें जनता ने चुना. मौजूदा लोकतंत्र में बने नए दबाव समूहों के उलट राहुल की यह बात कांग्रेस की सोच को भी दिखाती है. संदेश साफ है कि जन प्रतिनिधि वही माने जाएंगे, जो चुनाव जीतकर आएंगे.
9. राहुल गांधी ने आज के भाषण में वही टेक अपनाई जो विधानसभा चुनावों के प्रचार में अपनाते थे. कांग्रेस पार्टी ने लोगों को अधिकार दिया है. बार बार आरटीआई का जिक्र आता है. मसला ये है कि आरटीआई से आम आदमी का सीधा कोई वास्ता नहीं और ये समस्या का प्रभावी और अंतिम निस्तारण भी नहीं करता. लोकपाल का श्रेय भी राहुल ने पूरी तरह से कांग्रेस को दिया. बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस जिस भ्रष्टाचार को मुद्दा बना रही है, कहीं वह बूमरैंग न कर जाए.
10. आप कांग्रेस समर्थक हों या विरोधी. आज के भाषण में एक बात मारके की रही. राहुल गांधी और दिनों के बजाय ऊर्जा से लबरेज नजर आए. गुस्से से भी भरे हुए थे. विरोधियों के लिए ये व्यंग्य की बात हो सकती है. मगर काडर इससे खासा उत्साहित महसूस कर रहा है. वह बार बार मोदी के मुकाबले अनिच्छुक नेता नहीं, जोश से भरा कमांडर चाहता था. सोनिया गांधी का आखिरी भाषण, जो महज कुछ पंक्तियों में सिमटा, इसकी ताकीद करता है. सोनिया ने कहा, जब हम जबरन निराश थे.
अब देश तय करेगा कि उसकी आशा किसके हाथों में सुरक्षित है. आप भी अपने विचार जरूर बताएं. क्योंकि हम और आप ही यह देश बनाते हैं. देश, जिसे चलाने का दावा ये हुक्मरान करते हैं.