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कैसे होंगे कैशलेस? डिजिटल इंडिया की राह में हैं ये 10 चुनौतियां

नोटबंदी के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के कई नेता लगातार कैशलेस ट्रांजेक्शन पर जोर दे रहे हैं. आज के इस डिजिटल युग में आपका मोबाइल यकीनन बटुये जैसा इस्तेमाल हो सकता है, लेकिन क्या इस ई-वॉलेट का इस्तेमाल करना इतना आसान है...

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

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नोटबंदी के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के कई नेता लगातार कैशलेस ट्रांजेक्शन पर जोर दे रहे हैं. आज के इस डिजिटल युग में आपका मोबाइल यकीनन बटुये जैसा इस्तेमाल हो सकता है, लेकिन क्या इस ई-वॉलेट का इस्तेमाल करना इतना आसान है... शायद नहीं, यही वजह है कि नोटबंदी के करीब 36 दिन बाद भी कैश की किल्लत से जूझ रहे लोगों के लिए ऑनलाइन पेमेंट के कई ऑप्शन मौजूद होने के बावजूद उनकी पहली पसंद कैश ही बना हुआ है. अब सवाल उठता है कि क्या वाकई मौजूदा हालातों में देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह डिजिटल हो सकती है? क्या लो इंटरनेट कनेक्टिविटी, साइबर क्राइम, तकनीकी जानकारी का अभाव डिजिटल इंडिया के सपने में बाधक है? क्या भारत जैसे देश में कैशलेस इंडिया का सपना पूरा करना आसान है? जानकारों के मुताबिक भारत को पूरी तरह कैशलेस बनाने से पहले कई चुनौतियों से निपटना होगा.

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1. स्मार्टफोन यूजर्स की कमी
देश में आज भी स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या काफी कम है. मोबाइल कंपनियां कई तरह के फीचर्स के साथ स्मार्टफोन डिजाइन करती हैं, और उसकी कीमत भी फीचर्स पर आधारित होती हैं, लिहाजा स्मार्टफोन खरीद पाना बहुत लोगों के लिए आज भी एक सपना है.

2.साइबर सुरक्षा
भारत का मौजूदा सूचना प्रौद्योगिकी कानून साइबर क्राइम को रोकने के लिहाज से उतना प्रभावी नहीं है. एटीएम कार्ड की क्लोनिंग के अलावा, बैंक अकाउंट का हैक हो जाना, आपका डेटा और गोपनीय जानकारी हैकर्स तक पहुंच जाने की अकसर ही शिकायतें सुनने को मिलती हैं. लिहाजा जब तक साइबर क्राइम को लेकर सरकार सख्त नहीं होगी, तब तक लोग ऑनलाइन ट्रांजेक्शन से ऐसे ही कतराएंगें.

3. नेटवर्क कनेक्टिविटी
21वीं सदी का भारत अभी भी इंटरनेट सर्विस के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है. स्टेट ऑफ द इंटरनेट के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, औसतन इंटरनेट स्पीड की ग्लोबल रैंकिग में भारत का स्थान 113वां है. भारत में औसतन इंटरनेट स्पीड 3.5MBPS है, जो कि दुनिया अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है. ऐसे में बार-बार नेटवर्क कनेक्टिविटी फेल हो जाना या फिर कार्ड इस्तेमाल करने पर सर्वर का ठप हो जाना यूजर के लिए दिक्कत पैदा करता है.

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4.इंटरनेट चार्ज
बेशक सर्विस प्रोवाइडर कंपनी कई तरह के स्कीम के साथ डाटा पैक देती हैं, लेकिन इसके बावजूद लोग आज भी अपना इंटरनेट पैक बचाने के लिए मोबाइल डाटा ऑफ करके ही रखते हैं. ऐसे में जब तक इंटरनेट चार्ज कम नहीं होंगे, लोगों का रुझान डिजिटल पेमेंट की तरफ नहीं जाएगा.

5.ऑनलाइन पेमेंट पर एक्स्ट्रा चार्ज
दुकानदार से लेकर खरीदार दोनों को ही इसका खर्च उठाना पड़ेगा. दुकानदार को पहले स्वाइप मशीन को लेने के लिए किराए के तौर पर हर महीने 650 रुपये देने होते हैं. हालांकि कुछ बैंक अपने ग्राहकों को ये सेवा फ्री में भी उपलब्ध करवाते हैं. वहीं अगर किसी दुकानदार का महीने भर का ऑनलाइन ट्रांजेक्शन 25 हजार से कम होता है, तो उसे बैंक को अलग से 500 रुपये और 15% सर्विस टैक्स देना पड़ता है. वहीं अगर ट्रांजेक्शन डेबिट कार्ड से होता है, तो उस पर .75% चार्ज लगता है, लेकिन दो हजार से ज्यादा के ट्रांजेक्शन पर चार्जेज़ की छूट है. वहीं क्रेडिट कार्ड से ट्रांजेक्शन पर ये 1.4 से 2% तक चार्ज हो सकता है. दुकानदार अपना ये खर्च उपभोक्ता से भी टैक्स के रूप में वसूलते हैं.

6.बैंक में खाते नहीं होना
सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद आज भी देश की एक बड़ी आबादी के पास कोई बैंक खाता नहीं है. एक परिवार में किसी एक ही व्यक्ति का खाता है. वहीं अगर परिवार में चार लोग हैं, तब भी बैंक अकाउंट के जरिये ऑनलाइन पेमेंट का काम किसी एक के ही खाते से होता है.

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7.तकनीकी अज्ञानता
तकनीक के इस दौर में भी कई ऐसे लोग हैं, जो टेक-फ्रेंडली नहीं. ऐसे लोग मोबाइल का इस्तेमाल सिर्फ बातचीत के लिए ही करते हैं. बेसिक मोबाइल रखने वाले ऐसे लोगों को स्मार्टफोन के फीचर्स भी समझ नहीं आते. तो वहीं बुजुर्गों के लिए मोबाइल या इंटरनेट के जरिये पेमेंट करना भी काफी मुश्किल है.

8. मोबाइल बैटरी के चार्जिंग की दिक्कत
मोबाइल की बैटरी भी दिक्कत पैदा करती हैं. मेट्रो सिटीज में एयरपोर्ट को छोड़ दें, तो रेल्वे स्टेशन, बस स्टॉप पर मोबाइल चार्जिंग की सुविधा बहुत कम मिल पाती हैं. वहीं गांवों की हालत तो और भी खराब है, जहां बिजली नहीं पहुंचने की वजह से लोगों को मोबाइल फोन चार्ज करने में खासी मुश्किल होती है.

9.इंटरनेट सर्विस का बंद हो जाना
कंस्ट्रक्शन की वजह से भी कई बार इंटरनेट लाइनें बंद हो जाती हैं. तो वहीं पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर में फैले तनाव को देखते हुए वहां सरकार ने कई दिनों तक इंटरनेट सेवा बंद रखी. ऐसे हालात में लोगों के डिजिटल होना थोड़ा मुश्किल दिखता है.

10.बैंक कितने तैयार
बेशक देश के ज्यादातर बैंक पूरी तरह कम्प्यूटरीकृत और ऑनलाइन हो गए हैं. लेकिन सुदूर ग्रामीण इलाकों में अभी भी कई बैंकों की शाखाएं पूरी तरह कम्प्यूटरीकृत नहीं हुई हैं. इसके अलावा पीक ऑवर्स में बैंकों के क्लोजिंग टाइम की वजह से भी अक्सर बैंकों का सिस्टम ओवरलोड की वजह से बैठ जाता है. तो ऐसे में जब तक बैंक पूरी तरह से प्रेशर झेल पाने को तैयार नहीं होंगे, तब डिजिटल नहीं बन सकेगा हमारा इंडिया...

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