'यहां हर मोड़ पर उल्लू बैठे हैं. हमारी तकलीफों के प्रति लोग बेहद असंवेदनशील हैं. इसलिए अगर आप इस देश में जन्में हैं तो बेहतर होगा कि आप हर कदम पर खुद को संघर्ष के लिए तैयार
कर लें.' ये बोल एक महिला IAS अफसर के हैं. लेकिन ऐसा ये एक अफसर की हैसियत से नहीं, बल्कि भारत में रहने वाली उस महिला के तौर पर कहा जिसका जन्म और परवरिश भारत में हुआ.
कोई और समझे ना समझे लेकिन मेरी जैसी लड़कियां उनकी इस नसीहत के मायने समझती हैं. मेरी जैसी यानी वो लड़की जिन्हें बिना किसी सॉलिड तर्क के ये 10 चीजें झेलनी पड़ती हैं.
यहा वार्डरोब कोई और डिसाइड करता है.
घर की छोड़िए जनाब ड्रेस कोड के नाम पर कॉलेजों में भी पाबंदी लगाई जाती है. गांवों में तो हाल और भी बुरा है. यहां तो बाकायदा पंचायत बैठती है और फरमान सुनाया जाता है कि लड़कियां जींस, स्कर्ट नहीं पहनेंगी.
लड़की ज्यादा मजे करे तो प्रेग्नेंट हो जाती है...
उच्च विचार! वैसे है तो ये फिल्मी डायलॉग लेकिन हर घर में इसी फॉर्मूले पर काम चलता है. लड़कियों का नाइटआउट तो दूर की बात है, अगर लड़की स्ट्रीट लाइट जलने से पहले घर ना लौटे
तो बवाल हो जाता है. लेट नाइट पार्टीज और दोस्तों के साथ आउट ऑफ स्टेशन छुट्टियां मनाना तो भूल ही जाओ. वो पेरेंट्स खुद को मॉडर्न घोषित कर देते हैं जो अपनी बच्चियों को नाइट
ड्यूटी पर जाने की अनुमति देते हैं.
लड़की की वर्जिनिटी ही उसका 'सबकुछ' है
बचपन से घुट्टी की तरह मुझे ये नसीहत पिलाई गई है कि अगर मैंने शादी से पहले अपनी वर्जिनिटी खो दी तो इसका मतलब मेरी इज्जत नहीं बची. यानी अगर कोई मेरा तिरस्कार कर दे, मेरे पिता जी मुझे लात-घूंसों से मारे, मुझे अनपढ़ रही तो इसका मेरी इज्जत से कोई लेना देना नहीं है.
मोबाइल फोन के चलते रेप होता है.
इसी विचार के लिए तो दुनिया तरस रही थी! गूगल चाचा से पूछेंगे तो आपको पता चलेगा कि सेम टू सेम बात देश के अलग-अलग कोने से, अलग-अलग वक्त पर कही गई है. शर्त ला लीजिए. कुछ गांवों में तो लड़कियों, महिलाओं के फोन रखने पर बैन भी लगा हुआ है.
घर की इज्जत का ठेका लड़की के सिर पर होता है.
बेटा चाहे कोई भी कांड करके आ जाए, कोई फर्क नहीं पड़ता. वो तो लड़का है ना. लेकिन लड़की एक भी काम गलत करे तो इसका सीधा असर परिवार की इज्जत पर पड़ता है. लव मैरेज के
मामले में वैसे तो लड़के की भी हालत खराब ही है. लेकिन लड़कियों का हाल इससे भी बद्तर है. इसलिए तो हमारे यहां 'ऑनर किलिंग' का भी कॉन्सेप्ट है भइया.
घर का काम काज सीखो, नहीं तो सास कूटेगी
लड़की चाहे गांव की हो या शहर की, ये वाला डायलॉग तो सुनना ही पड़ता है. हाल ये है कि अगर मुझे गोल रोटी ना बनानी हो, तो मेरा पति भी मुझे डंडे मार सकता है.
अंग्रेजी में बात करना मतलब शो ऑफ करना
लड़की बस में बैठकर पांच मिनट किसी से अंग्रेजी में बात कर ले, लोगों को प्रतीत होता है कि लड़की शो ऑफ कर रही है.
ग्लास सीलिंग
दफ्तर में मैं भले ही किसी लड़के के बराबर या उससे भी अच्छा परफॉर्म कर लूं. अप्रेजल टाइम पर बॉस के दिमाग में ये बात जरूर आएगी कि आज नहीं तो कल मेरी शादी होगी ही. शादी
होगी तो घर का काम बढ़ेगा. फिर मैं दफ्तर का काम पहले जैसे नहीं कर पाउंगी. ये सोचकर मैनजमेंट किसी लड़के को ज्यादा जिम्मेदारी देना सेफ समझता है. फील्ड चाहे जो हो इस मामले में
लड़कियों का हाल एक जैसा ही है. (वैसे ये सिर्फ भारत नहीं, विदेशों के लिए भी लागू होती है)
चेहरे पर दुपट्टा लपेटकर चलने वाली लड़की 'ठीक' नहीं होती
अगर कोई लड़की धूप से चेहरा बचाने के लिए चेहरा पर दुपट्टा बांध ले तो लोग कहते हैं 'ये लड़की इस एरिया की नहीं है. मां-बाप से छुपकर 'किसी' से मिलने आई है.'
काला चश्मा पहनने वाली लड़की स्टाइल झाड़ती है
मैं अगर बन संवर के, काले चश्मे में घर से निकल जाऊं तो लोगों को लगता है 'लड़की स्टाइल झाड़ रही है'. बाइक या कार खुद चलाऊं तो इसका मतलब मैं 'लड़कों की बराबरी करने निकली हूं'.
हां वैसे यहां भ्रूण हत्या, दहेज प्रताड़ना, मैरिटल रेप और घरेलु हिंसा का भी प्रावधान है. लेकिन अगर अब इनकी भी चर्चा शुरू करें तो लिस्ट लंबी खिच जाएगी. और वैसे भी इन सबको जानकर, पढ़कर, समझकर किसी को घंटा क्या फर्क पड़ेगा