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नेतागिरी का कमाल: 10 साल में 1000 गुना हुई ‘नेताजी’ की संपत्ति

पिछले 10 सालों में भले ही महंगाई ने आपकी कमर तोड़ दी हो. भले ही आपकी जमा पूंजी भी रोजमर्रा के कामों में व्‍यर्थ हो गई हो और आपकी तनख्‍वाह बमुश्किल दोगुनी हुई हो. लेकिन आपने जिन नेताजी को चुनकर विधानसभा या संसद में भेजा था उनकी तो पौ बारह हो गई है.

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नेताजी का कार्टून
नेताजी का कार्टून

पिछले 10 सालों में भले ही महंगाई ने आपकी कमर तोड़ दी हो. भले ही आपकी जमा पूंजी भी रोजमर्रा के कामों में व्‍यर्थ हो गई हो और आपकी तनख्‍वाह बमुश्किल दोगुनी हुई हो. लेकिन आपने जिन नेताजी को चुनकर विधानसभा या संसद में भेजा था उनकी तो पौ बारह हो गई है. शायद आपको सुनकर यकीन न हो, लेकिन ये सच है कि जिन नेताजी को आपने अपने भले के लिए चुना था, उनकी संपत्ति पिछले 10 सालों में 1000 गुना तक बढ़ गई है, जबकि आपके हाल ठन-ठन गोपाल हैं.

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यहां सब करोड़पति हैं, जीतने वाले भी और हारने वाले भी

एक सर्वेक्षण के अनुसार एक दशक में एक से अधिक बार चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों में से अधिकतर की संपत्ति में 1000 प्रतिशत तक की ‘असामान्य’ वृद्धि हुई है. यह वृद्धि उन उम्मीदवारों में खासतौर पर पायी गयी, जिनके ऊपर गंभीर आपराधिक आरोप हैं और सामान्य छवि वाले प्रत्याशी की तुलना में ऐसे लोगों की जीतने की संभावना भी ज्‍यादा होती है.

एसोशिएसन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्‍स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वॉच (एनईडब्ल्यू) द्वारा उम्मीदवारों के शपथपत्र के विश्लेषण में पाया गया कि फिर से चुनाव लड़ने वाले 317 उम्मीदवारों की संपत्ति 1000 गुना से ज्‍यादा बढ़ गयी है.

2004 से 2013 के बीच के दस वर्षों में 62,847 उम्मीदवारों ने राज्य या संसदीय चुनाव लड़े जिसमें से 4181 प्रत्याशी फिर से चुनाव मैदान में उतरे थे. इनमें से करीब 1615 उम्मीदवारों की संपत्ति 200 प्रतिशत से ज्‍यादा, 684 की 500 प्रतिशत से ज्‍यादा और 420 की 800 प्रतिशत से ज्‍यादा बढ़ी थी.

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आईआईएम बैंगलौर के प्राध्यापक तथा एडीआर एवं एनईडब्ल्यू के संस्थापक त्रिलोचन शास्त्री ने कहा, ‘यह स्पष्ट तौर पर संपत्ति में असमान्य वृद्धि है.’ आईआईएम अहमदाबाद के सेवानिवृत्त प्राध्यापक तथा एडीआर एवं एनईडब्ल्यू के संस्थापक सदस्य जगदीप छौकर ने बताया, ‘हमने जब आयकर विभाग में आरटीआई अर्जी देकर संपत्ति में असाधारण वृद्धि वाले लोगों के बारे में उनके द्वारा उठाये गये कदमों के बारे में पूछा तो उनका सीधा सा जवाब था कि निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार उन्होंने जरूरी कदम उठाये.’

एनजीओ ने 2004 के बाद संसद या राज्य विधानसभाओं में सदस्यता रखने वाले कुल 8,790 सांसदों एवं विधायकों के रिकॉर्ड का विश्लेषण किया. यह बात भी सामने आयी कि 543 लोकसभा सदस्यों में से 162 (करीब 30 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की घोषणा की है, जबकि मौजूदा लोकसभा सदस्यों मे से 76 (करीब 14 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामलों की घोषणा की है.

राज्यसभा के मौजूदा 232 सदस्यों में से 40 (17 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की घोषणा की है जबकि इनमें से 16 ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामलों की जानकारी दी है. देश की सारी विधानसभाओं के मौजूदा 4032 विधायकों में से 1258 (31 प्रतिशत) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की घोषणा की है. 15 प्रतिशत मौजूदा विधायकों ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामलों की जानकारी दी है.

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साफ छवि वाले उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने एवं जीतने की जब बात आती है, तो यह पाया गया कि उनके चुनाव जीतने की संभावना महज 12 प्रतिशत होती है. लेकिन गंभीर आपराधिक रिकॉर्ड वाले प्रत्याशियों के चुनाव जीतने की संभावना करीब 23 प्रतिशत होती है. यह अध्ययन 2004 से 2013 के बीच संसदीय एवं विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारों द्वारा दिये गये शपथ पत्र के विश्लेषण पर आधारित है.

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