कोयला घोटाले की गायब हुई फाइलों पर बीजेपी और कांग्रेस में घमासान छिड़ गया है. 1 लाख 86 हज़ार करोड़ के इस घोटाले की 157 फाइलें कोयला मंत्रालय से कहां चली गईं इसका जवाब देने में सरकार की सांस अटक गई है.
बीजेपी की मांग है कि प्रधानमंत्री खुद जवाब दें क्योंकि जब घोटाले हुए तो ये मंत्रालय उन्हीं के पास था. वहीं कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल एडिशनल सेक्रेटरी की अध्यक्षता में जांच कमेटी बनाकर आरोपों से भाग खड़े हुए हैं.
मुद्दे पर हल्ला बोलते हुए लोकसभा की नेता प्रतिपक्ष ने सुषमा स्वराज ने मांग उठाई कि प्रधानमंत्री स्वयं सदन में आएं और स्थिति साफ करें.
सुषमा ने कहा कि इस मामले में संबंधित व्यक्ति कौन है? चूंकि प्रधानमंत्री के पास कोयला मंत्रालय रहा था, इसलिए संबंधित व्यक्ति प्रधानमंत्री हैं. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी पूर्व में इस बारे में सदन को आश्वस्त कर चुके हैं. लेकिन फाइलें गायब हैं.
लेकिन प्रधानमंत्री हैं कहां? वो तो ब्रह्म की तरह हैं. हैं भी और नहीं भी. मानो तो सब जगह और न मानो तो कहीं नहीं. लेकिन कोयले खदानों के बंदरबांट की गुम फाइलों पर खौलती हुई बीजेपी पीएम के अलावा किसी को सुनने को तैयार नहीं थी संसद में.
मनमोहन सिंह ऐसे तो बोल भी देते हैं लेकिन विश्वास के संकट काल में तो गलती से भी गला नहीं खोलते. इसलिए श्रीप्रकाश जायसवाल ने थोड़ी कालिख साफ करने की कोशिश की.
श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा कि सीबीआई द्वारा मांगे गए दस्तावेजों का पता लगाने और उन्हें मुहैया कराने में उनका मंत्रालय कोई कसर नहीं छोड़ेगा. जायसवाल ने कहा कि लापता फाइलों की जांच करने और उनका पता लगाने के लिए अवर सचिव (कोयला) की अध्यक्षता में एक अंतर मंत्रालयी समिति का गठन किया गया है.
पर सवाल यह उठता है कि जांच की जिम्मेदारी उसे दे दी जिस पर दाग लगे हैं.
बीजेपी के इस हल्लाबोल पर कांग्रेस ने सियासी पलटवार किया. अंबिका सोनी ने कहा, 'फाइलें गुम नहीं हुईं हैं, बस लापता हैं. बीजेपी वाले बिना अहमियत वाले मुद्दे पर हंगामा मचाते हैं.'
अब इसके बाद बचा क्या? 1 लाख 86 हज़ार करोड़ की लूट-खसोट की मोटी-मोटी फाइलें सरकार के लॉकर से कपूर की तरह उड़ गईं और अंबिका सोनी कहती हैं इसमें ऐसा क्या है?
सुषमा ने तो कांग्रेस पर सीधा आरोप लगाया है कि जो फाइलें गायब हुई है उसमें आवेदन और सिफारिशें है और इनसें कोई न कोई कांग्रेस का नेता जुड़ा हुआ है.
ये कांग्रेस के चरित्र पर एक कड़ी टिप्पणी है. आरोपों की औपचारिकता और जवाब की जवाहदेही के बीच जनता का विश्वास दांव पर है. ऐसे समय में सिंहासन की चुप्पी संदेह के दायरे को बड़ा कर देती है.