रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून. दिल्ली में आम आदमी पर जब से पावर का पानी चढ़ा है, कांग्रेस पानी-पानी हो गई है और भाजपा का पानी उतर गया है. ये दुनिया तीन चौथाई पानी है पर समंदर में आदमी सबसे ज्यादा प्यासा होता है. पानी होना काफी नहीं है, पानी को पेय होना पड़ता है. पानी के लिए पे करना पड़ता है. मुफ्त में हवा ही पी सकते हैं, जैसे तैसे जी सकते हैं. वोट के सौदागर ये जानते हैं. जल ही जीवन है. आज अरविन्द केजरीवाल नायक है आम आदमी का, क्योंकि उन्होंने 700 लीटर पानी मुफ्त मुहैया करवाने का वादा किया है. जिस दिन पूरा करना था उसी दिन उन्हें खुद सैकड़ों लीटर पानी की ज़रूरत आन पड़ी. दस्त से पस्त केजरीवाल दफ्तर तक नहीं जा पाए. उनको शायद पानी चढ़ाना पड़े. ऊपर से खांसी. और मौसम की उदासी.
मौसम इतना सर्द है, कठोर है जैसे मुलायम सिंह का दिल हो. मुज़फ्फरनगर में बच्चे ठंड में दम तोड़ रहे हैं और उनके गांव सैफई का कलेजा ठंडा तब हुआ जब मुंबई से मंगवाई आइटम बाई ने कमरिया हिलाई. वह तो मानने को तैयार नहीं कि रिलीफ कैंपों में कंपकंपाते बच्चे बीजेपी और कांग्रेस का कौतुहल नहीं हैं. उनके बेटे अखिलेश ने उन लोगों को नए साल का तोहफा भेजा है. वे कैंप उखड़वा रहे हैं. न रहेगी शरण, न होंगे शरणार्थी. मुस्लिम तुष्टीकरण का बिलकुल नया मंतर है. शरण और शरणार्थी में अर्थी का ही अंतर है. किसी की 13 में निकल गई, किसी की 14 में निकलेगी.
2013 जाने वाला है. इस साल को ये साल बरसों सालेगा. ये उस कवि की तरह था, जो मंच संभालते हैं तब तक, जब तक मुख्य अतिथि कवि अपनी धोती बांधते हैं. शुरू से हमने कह दिया: आप आए, बहार आई पर हमें इंतज़ार है किसी और का. 13 में चुनाव हुए, उनके नतीजे आए, कुछ ने चौंकाया भी पर भारत के चेहरे पर यही भाव था कि 2014 में होना है जो होना है. मंदी, बंदी, मंगलयान... बहुत अच्छा-बुरा हुआ पर देश की प्रतिक्रिया यही रही: ये सब ठीक है पर फ़ाइनल तो 2014 में ही होगा. 2014 आएगा, क्या गुल खिलाएगा.