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1962-2020: US स्टडी ने बताया, कैसे चीन से पारंपरिक धार में आगे है भारत

रिसर्चर्स के मुताबिक चीनी वायु सेना भी सीमा क्षेत्र में भारतीय वायु सेना के मुकाबले गिनती में असमानता का सामना कर रही है.

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लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत-चीन में तनाव (फाइल फोटो)
लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत-चीन में तनाव (फाइल फोटो)

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  • भारत-चीन का तुलनात्मक विश्लेषण
  • हार्वर्ड केनेडी स्कूल में रिसर्च पब्लिश

चीन के साथ फुल-स्केल तनाव जैसे हालात होने पर भारत के पास पारंपरिक लाभ है, जिससे 1962 जैसे झटके की स्थिति से बचा जा सकता है. भारत को ये लाभ हवा, जमीन और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सभी जगह तैनाती वाली बीजिंग केंद्रित रणनीति की वजह से है. ये निष्कर्ष अमेरिका की एक स्टडी का है.

हार्वर्ड केनेडी स्कूल स्थित ‘बेलफर सेंटर फॉर साइंस एंड इंटरनेशनल अफेयर्स’ की ओर से इस साल के शुरू में रिसर्च पेपर प्रकाशित किया गया. इसमें भारत और चीन के रणनीतिक संसाधनों के तुलनात्मक डेटा का विश्लेषण किया गया.

स्टडी में हालांकि नोट किया गया कि नई दिल्ली के पारम्परिक लाभ को भारतीय संवाद में ‘बढ़ा चढ़ा कर नहीं’ बताया जाता.

स्टडी ने एक नया डेटा संकलन पेश किया. ये डेटा संकलन "प्रकाशित खुफिया दस्तावेज, क्षेत्रीय राज्यों से हासिल निजी दस्तावेज और चीन- भारत और अमेरिका में स्थित विशेषज्ञों के साथ इंटरव्यू" पर आधारित है.

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इससे ‘’चीन और भारत के रणनीतिक बलों की लोकेशन और क्षमताओं’’ की व्यापक तस्वीर का पता चलता है. स्ट़डी के दो ऑथर हैं- डॉ फ्रैंक ओ’डॉनल और डॉ अलेक्जेंडर के बोलफ्रास. डॉ ओ’डॉनल स्टिमसन सेंटर के दक्षिण एशिया कार्यक्रम में नॉन रेजीडेंट फैलो हैं. वहीं डॉ बोलफ्रास ज्यूरिख के स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में सेंटर फॉर सिक्योरिटी स्टडीज के सीनियर रिसर्च हैं.

पारम्परिक बल

रिसर्च में अनुमान लगाया गया है कि चीन के सीमावर्ती इलाकों के पास भारत के कुल उपलब्ध स्ट्राइक फोर्स में सैनिकों की संख्या 2,25,000 है. इसकी तुलना में पश्चिमी थिएटर कमांड के तहत और तिब्बत, शिनजियांग मिलिट्री जिलों में चीनी ग्राउंड फोर्स 2,00,00 से 2,30,000 के बीच होने का अनुमान है. लेकिन फिर स्टडी में चीन के आंकड़ों को भ्रामक पाया गया.

स्टडी में कहा गया है, "भारत के साथ युद्ध के दौरान भी इन बलों का खासा हिस्सा उपलब्ध नहीं होगा. या तो वो रूसी टास्क्स के लिए आरक्षित है या फिर शिनजियांग और तिब्बत में विद्रोह को काउंटर करने के लिए."

स्टडी के ऑथर्स ने देखा कि अधिकतर चीनी सैनिक भारतीय सीमा से ज्यादा दूरी पर हैं- "ये इस तथ्य के स्ट्राइकिंग कंट्रास्ट में है कि भारतीय सेनाओं की फॉरवर्ड तैनाती इकलौते चीनी डिफेंस मिशन के लिए है.’’

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वायु क्षमताएं

रिसर्चर्स के मुताबिक चीनी वायु सेना (PLAAF) भी सीमा क्षेत्र में भारतीय वायु सेना (IAF) के मुकाबले गिनती में असमानता का सामना कर रही है.

स्टडी में कहा गया है कि- चीन की वेस्टर्न थियेटर कमांड इस क्षेत्र के सभी क्षेत्रीय स्ट्राइक एयरक्राफ्ट्स को कंट्रोल करती है. इनका एक अनुपात "रूस केंद्रित मिशन्स" के लिए रिजर्व रखे जाने की जरूरत है.

स्टडी के मुताबिक चीन ने इस थियेटर में लगभग 101 चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमान रखे हुए हैं. इसमें रूस केंद्रित डिफेंस भी शामिल है. दूसरी ओर भारत ने तुलना में 122 भारतीय समकक्ष तैनात कर रखे हैं जिनका निशाना सिर्फ चीन की ओर केंद्रित है.

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ऑथर्स का कहना है कि चीन अपने पीछे के इलाकों में स्थित एयरबेसों पर अधिक भरोसा करने के लिए मजबूर होगा, जो "इसकी सीमित ईंधन और पेलोड समस्याओं को बढ़ाएगा.’’

अधिकतर चीनी वायुसेना (PLAAF) के पायलट सामरिक दिशा के लिए जमीनी नियंत्रण पर अधिक निर्भर हैं. स्टडी में कहा गया है कि ये चीन के लिए काउंटर-प्रोडक्टिव (उलटा) हो सकता है.

स्टडी के मुताबिक भारतीय लड़ाकू पायलटों के पास असल नेटवर्क्ड लड़ाई के संस्थागत अनुभव का एक स्तर है. ऐसा इसलिए हैं क्योंकि वो पाकिस्तान के साथ जारी टकरावों की वजह से है.

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हालांकि चीन के पास एक बेहतर मिसाइल फोर्स है. लेकिन इनके PLAAF के डिसएडवांटेज से जुड़े पहलुओं से पार पाने की कम संभावना है.

स्टडी में भारतीय वायुसेना के एक पूर्व अधिकारी के हवाले से कहा गया है, "अगर PLAAF सिर्फ तीन हवाई क्षेत्रों पर आक्रमण करता है, तो इसे रनवे और टैक्सी ट्रैक पर हमला करने के लिए हर दिन 660 बैलिस्टिक मिसाइलों की आवश्यकता होगी. इससे सिर्फ तीन एयरफील्ड्स पर हमला करने में महज दो दिन में चीन का 1,000 से 1,200 MRBMs / SRBMs मिसाइलों का स्टॉक खत्म हो जाएगा. ये मध्यम और छोटी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें हैं. ये स्थिति तब होगी जब चीन और किसी अहम टारगेट सिस्टम को एड्रेस नहीं करता.’’

ऑथर्स का मानना ​​है कि चीन स्थायी रूप से सीमा के पास अधिक बल तैनात कर सकता है, लेकिन यह भारत को काउंटर बिल्ड-अप के लिए वक्त देगा.

LAC स्टैंड-ऑफ एक खुफिया विफलता

स्टडी के लीड ऑथर डॉ ओ'डॉनेल ने इंडिया टुडे को बताया कि मार्च में स्टडी के प्रकाशन के बाद से चीनी और भारतीय लड़ाकू बलों को लेकर उनका आकलन नहीं बदला है.

उन्होंने आगे कहा कि PLA (चीनी सेना) के इस तरह के एक बड़े मूवमेंट की भनक भारतीय और अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को पहले ही लग जानी चाहिए थी.

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ओ’डॉनेल ने कहा, "इस प्रकरण में क्या हुआ है कि सीमावर्ती क्षेत्रों के पास बड़े चीनी सैन्य अभ्यास को एक छल के रूप में इस्तेमाल किया गया था, फिर उसे उन पोजीशन्स की ओर मोड़ दिया गया जहां आज चीनी काबिज हैं.’’

उन्होंने मौजूदा स्थिति को "एक अहम खुफिया विफलता" का नतीजा करार दिया. साथ ही सुझाव दिया कि इस मामले में करगिल समीक्षा कमेटी स्तर की पब्लिक जांच होनी चाहिए कि कैसे इस खुफिया विफलता को होने दिया गया और भविष्य में ऐसा दोबारा न होने देने के लिए क्या कदम उठाए जाएं.

संभव समाधान

स्टैंड-ऑफ़ को समाप्त करने के संभावित समाधान के बारे में पूछे जाने पर, ओ'डॉनेल ने एक आक्रामक राजनयिक रणनीति का सुझाव दिया. ठीक वैसे ही जैसे नई दिल्ली ने 2008 के मुंबई हमलों के बाद रणनीति को अंजाम दिया था.

ओ’डॉनेल के मुताबिक “चीन अपनी वैश्विक छवि, और वो कैसे दर्शाई जाती है, इसको लेकर बहुत संवेदनशील है.” ऐसे में जिन देशों का चीन पर प्रभाव है, उनसे चीन पर दबाव डलवाने के लिए कूटनीति से जुड़ी हर कवायद करनी चाहिए.

ओ’डॉनेल की राय में, चीन के संबंध में भारतीय कूटनीति का एक विशेष लक्ष्य रूस पर केंद्रित होना चाहिए. उन्होंने कहा, "चीन के सबसे करीबी पार्टनर होने के नाते रूस से कहा जाए कि वो उससे पीछे हटने के लिए कहने को हस्तक्षेप करे., रूस कथित तौर पर चीनी कार्रवाइयों से पहले से ही बहुत व्यथित है.’’

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ओ’डॉनेल ने भारत के लिए अंतिम राजनयिक विकल्प अगले साल होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए चीन को आमंत्रण रद्द करना बताया. इस सम्मेलन की मेजबानी भारत रहा है. ओ’डॉनेल कहते हैं कि "पीएम नरेंद्र मोदी सार्वजनिक रूप से यह कह सकते हैं कि मौजूदा स्थिति में वो ये नहीं देख सकते कि चीन को कैसे न्योता दें, अगर वो भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर रहे हैं.’’ ओ’डॉनेल ने ध्यान दिलाया कि डोकलाम संकट 2017 ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया था.

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