बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त ने टाडा कोर्ट की जगह सीधे यरवडा जेल में सरेंडर करने की अपनी अर्जी वापस ले ली है. इसके साथ ही अब यह साफ हो गया है कि संजू बाबा 16 मई को टाडा कोर्ट में ही सरेंडर करेंगे.
इससे पहले, मंगलवार को संजय दत्त ने सीधे यरवडा जेल में सरेंडर करने की इजाजत मांगी थी जिस पर कोर्ट ने सीबीआई से जवाब मांगा था.
सीबीआई ने संजय दत्त द्वारा अपील दायर करने पर आपत्ति नहीं जताई थी जबकि टाडा कोर्ट ने इस याचिका को अमान्य करार दिया था. अब जब उन्होंने खुद ही अपनी याचिका वापस ले ली है तो यह साफ हो गया है कि वो 16 मई के शाम 4 बजे तक टाडा कोर्ट में ही सरेंडर करेंगे.
क्या थी संजय दत्त की याचिका?
संजय दत्त को अदालत में सरेंडर करने से डर लग रहा है. उनके वकीलों ने टाडा कोर्ट में यह अर्जी दी. याचिका के पीछे संजय दत्त ने दो दलील दी थी.
दलील नंबर 1- संजय दत्त को कट्टरपंथी ताकतों से अपनी जान पर खतरा महसूस हो रहा है.
दलील नंबर 2- वो नहीं चाहते कि कोर्ट से जेल ले जाने तक मीडिया के कैमरे उनका पीछा करते रहें और कोई हादसा हो जाए.
पिछली बार जब संजू बाबा जब गिरफ्तार हुए थे तो मीडिया उनके पीछे लग गई थी. इस वजह से उन्हें 120 किलोमीटर की रफ्तार से गाड़ी भगानी पड़ी थी. इससे जानलेवा दुर्घटना का खतरा हो सकता है.
गौरतलब है कि 1993 मुंबई ब्लास्ट को लेकर 21 मार्च को आर्म्स एक्ट (गैरकानूनी रूप से हथियार रखने के लिए) के तहत संजय दत्त की सजा बरकरार रखने का फैसला सुनाया था. न्यायालय ने दत्त को पांच साल कैद की सजा सुनाई थी. वह पहले 18 महीने जेल की सजा काट चुके हैं और अब उन्हें जेल में साढ़े तीन साल की और सजा काटनी है.
इस फैसले के बाद इस बॉलीवुड अभिनेता ने अपनी फिल्मों की शूटिंग खत्म करने के बाद आत्मसमर्पण करने का अनुरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसके बाद कोर्ट ने उन्हें समर्पण करने के लिए चार हफ्तों की मोहलत दी थी. सरेंडर के लिए मोहलत मिलने के बाद संजय दत्त ने सु्प्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जिसे खारिज कर दिया गया.
क्या है मामला?
संजय दत्त को गैरकानूनी तरीके से नौ एमएम की पिस्तौल और एके 56 राइफल रखने के जुर्म में टाडा अदालत ने दोषी ठहराया था. ये हथियार उन्हीं विस्फोटक सामग्री और हथियारों की खेप का हिस्सा थे, जिनका इस्तेमाल मुंबई बम धमाकों में किया गया था. इन धमाकों में 257 व्यक्ति मारे गये थे और 700 से ज्यादा जख्मी हो गए थे. मुंबई की टाडा अदालत ने 6 साल की सजा सुनाई थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने इसे घटाकर 5 साल कर दिया था.