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2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, पाटिल समिति ने राजग सरकार को भी लपेटा

दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्‍बल ने 2जी स्‍पेक्‍ट्रम के आवंटन में हुई खामियों के विषय में कहा है कि आवंटन में वर्ष 2003 से ही गड़बड़ि‍यां शुरू हो गई थी.

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Kapil sibal
Kapil sibal

दूरसंचार घोटाले की जांच करने वाली समिति ने इस घपले में पूर्ववर्ती राजग सरकार को भी लपेटते हुए कहा है कि देश की स्पेक्ट्रम आवंटन नीति शुरू से ही गड़बड़ रही है. एक सदस्यीय समिति का कहना है कि 2जी लाइसेंस आवंटन में तय प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया है.

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समिति का कहना है कि पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा ने 2007-08 के दौरान जो फैसले किये, वे मंत्रिमंडल के निर्णय के अनुरूप नहीं थे. वर्ष 2001 से लेकर 2008 के बीच स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रियाओं में खामी का पता लगाने के लिये दूरसंचार मंत्रालय ने पूर्व न्यायाधीश शिवराज वी पाटिल की अध्यक्षता में एक सदस्यीय समिति का गठन किया था.

पाटिल समिति की रिपोर्ट के कुछ अंश जारी करते हुए दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने आज कहा कि रिपोर्ट केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को भेजी जा रही है. सीबीआई 2जी घोटाले की जांच कर रही है. समिति का महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि 2001 से दूरसंचार विभाग ने जो आंतरिक प्रक्रिया अपनायी वह सरकार की मौजूदा नीतियों और निर्देशों के अनुरूप नहीं थी. {mospagebreak}

समिति ने कहा है कि 2003 से स्पेक्ट्रम के साथ यूनिफाइड एक्सेस सर्विस लाइसेंस (यूएएसएल) देने और 2007-08 में उठाया गया कदम न तो मंत्रिमंडल के फैसले (2003 से) के और न ही दूरसंचार नियामक ट्राई की सिफारिशों के अनुरूप था. लाइसेंस देने के लिये आवेदन देने की तारीख पीछे खिसकाने के राजा के विवादास्पद फैसले पर समिति ने कहा कि यह न तो तय प्रक्रिया के अनुरूप था और न ही निष्पक्षता और पारदर्शिता के सिद्धांत को पूरा करता था.

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समिति के मुताबिक, ‘यूएएसएल आवंटन के लिये आवेदन की अंतिम तारीख एक अक्तूबर 2007 थी लेकिन उन्हीं आवेदनों पर विचार करने का फैसला किया गया जो 25 सितंबर 2007 तक जमा किये गये थे. यह न तो निर्धारित प्रक्रिया के अनुरूप था और न ही निष्पक्षता और पारदर्शिता की कसौटी पर खरा उतरता है.’ रिपोर्ट में पहले आओ, पहले पाओ के फैसले की आलोचना की गयी है. {mospagebreak}

समिति के अनुसार, ‘सात जनवरी 2008 से पहले तक आवेदन प्राप्त करने की तारीख को पहले आओ, पहले पाओ का आधार बनाने की बात तय थी. लेकिन सात जनवरी 2008 के बाद आशय पत्र की शर्तों के अनुपालन की तिथि को इसका आधार बना दिया गया. अचानक यह बदलाव नीतियों के अनुरूप नहीं था.’ सिब्बल ने कहा कि 2003 से जो स्पेक्ट्रम आवंटन के संबंध में जो भी फैसले किये गये, वे सभी गलत थे.

राजा के इस दावे पर कि उन्होंने अपने पूर्ववर्ती का अनुकरण किया, सिब्बल ने कहा, ‘राजा ने हमेशा कहा है कि उन्होंने पूर्व नीतियों का अनुपालन किया और पूर्व नीति ही गलत थी.’ सिब्बल ने कहा कि दूरसंचार नियामक ट्राई ने 27 अक्तूबर 2003 को सिफारिश की थी, ‘लाइसेंस के साथ स्पेक्ट्रम को नहीं जोड़ा नहीं जाना चाहिए. स्पेक्ट्रम आवंटन के लिये विभिन्न स्तरों पर बोली प्रक्रिया होनी चाहिए. लेकिन दूरसंचार विभाग ने इसका अनुपालन नहीं किया.’ {mospagebreak}

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उन्होंने कहा, ‘शुरूआती 4.4 मेगाहर्ट्ज से 6.2 मेगाहर्ट्ज या अतिरिक्त तरंगो का आवंटन सही नहीं था.’ कपिल सिब्बल ने कहा, ‘हम रिपोर्ट सीबीआई को दे रहे हैं.’ दूरसंचार मंत्री ने कहा कि नीतियों में पारदर्शिता नहीं रखने के लिये पूर्व दूरसंचार मंत्रियों और नौकरशाह समेत 17 अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया गया है हालांकि उन्होंने इनके नाम बताने से मना कर दिया.

रिपोर्ट के मुताबिक 24 नवंबर 2003 को लाइसेंस पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर जारी करने को मंजूरी दी जो बहुस्तरीय बोली प्रक्रिया के खिलाफ है. समिति का कहना है, ‘ये कदम मौजूदा नीतियों के बिल्कुल खिलाफ थे.’ समिति ने अपनी रिपोर्ट में 2001 से 2009 के बीच 25 ऐसी घटनाओं का जिक्र किया है, जब तय नियमों को ताक पर रखकर फैसले किये गये.

इसके अलावा समिति ने 16 ऐसे मामलों का जिक्र किया है जहां दूरसंचार विभाग की नीति में निष्पक्षता और पारदर्शिता का अभाव साफ नजर आता है. बहरहाल, समिति ने भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिये सुझाव भी दिये हैं. सिब्बल ने कहा कि नये व्यापक कानून ‘रेडिये कम्युनिकेशंस कानून’ की जरूरत महसूस की गयी है. नई नीति पर काम चल रहा है.

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