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लाहौर जेल में 20 भारतीय कैदी मानसिक रूप से बीमार

लाहौर की कुख्यात कोट लखपत जेल में बंद 36 भारतीय कैदियों में से 20 मानसिक रूप से बीमार हैं. इस तथ्य का पता कैदियों पर बनी भारत-पाक न्यायिक समिति ने लगाया.

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लाहौर की कुख्यात कोट लखपत जेल में बंद 36 भारतीय कैदियों में से 20 मानसिक रूप से बीमार हैं. इस तथ्य का पता कैदियों पर बनी भारत-पाक न्यायिक समिति ने लगाया.

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लाहौर की कोट लखपत जेल में ही भारतीय कैदी सरबजीत सिंह पर बर्बर हमला किया गया था जिन्होंने करीब एक हफ्ते तक कोमा में रहने के बाद दम तोड़ दिया.

भारत-पाक न्यायिक समिति ने पिछले हफ्ते कराची, लाहौर, रावलपिंडी और लाहौर की जेलों का दौरा किया. समिति ने पाया कि कोट लखपत जेल में 20, रावलपिंडी की अदियाला जेल में दो और कराची की मालीर जेल में एक कैदी मानसिक रूप से बीमार है.

समिति ने सिफारिश की है कि गंभीर और काफी गंभीर रूप से बीमार, मानसिक रूप से विक्षिप्त और गूंगे-बहरे कैदियों को, इस बात पर ध्यान दिए बिना उचित अस्पतालों या विशेष संस्थानों में रखा जाए, कि वे किस राष्ट्र के हैं या उन्होंने क्या अपराध किया है.

समिति के समक्ष करीब 535 भारतीय कैदी प्रस्तुत किए गए. इनमें से 483 मछुआरे (जिनमें से 11 नाबालिग हैं) और आठ असैनिक कैदी कराची की मालीर जिला जेल में बंद हैं. इसके अतिरिक्त आठ कैदी अदियाला जेल में और 36 भारतीय कैदी कोट लखपत जेल में बंद हैं.

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दोनों देशों के बीच हुए समझौते के तहत जनवरी 2007 में गठित समिति में भारतीय पक्ष से न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ए एस गिल, एम ए खान और पाकिस्तानी पक्ष से न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अब्दुल कादिर चौधरी, नासिर असलम जाहिद और मियां मोहम्मद अजमल हैं.

समिति ने सुझाव दिया कि महिलाओं, नाबालिगों, मानसिक रूप से विक्षिप्त, वृद्धों और गंभीर बीमारियों या स्थाई शारीरिक विकलांगता से पीड़ित कैदियों के मामलों पर अनुकंपा और मानवीय आधार पर विचार करने के लिए एक तंत्र की स्थापना की जानी चाहिए.

इसके अतिरिक्त कराची जेल में बंद पाकिस्तानी कैदियों की तरह भारतीय कैदियों को भी महीने में कम से कम एक बार भारत में उनके रिश्तेदरों को फोन करने करने की इजाजत दी जानी चाहिए.

समिति ने उल्लेख किया कि पाकिस्तान द्वारा साल में दो बार साझा की जाने वाली सूची से कई कैदियों के नाम गायब हैं. समझा जाता है कि ये भारतीय कैदी हैं.

इसने सुझाव दिया है कि पाकिस्तान और भारत एक-दूसरे को इस बात का औपचारिक प्रमाण दें कि कहीं कैदियों की पूर्व सूची में कोई नाम छूट तो नहीं गया है, ताकि प्रत्येक पक्ष हर मामले पर विचार कर सके और दोनों पक्षों द्वारा तैयार सूचियों में खामी को कम किया जा सके.

समिति ने कहा कि दोनों सरकारों के बीच हुए ‘राजनयिक पहुंच समझौते’ को अक्षरश: कार्यान्वित किया जाना चाहिए तथा गिरफ्तारी के तीन महीने के भीतर राजनयिक पहुंच उपलब्ध कराई जानी चाहिए, न कि जेल की सजा पूरी होने के बाद.

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इसने कहा कि हर मामले में कैदियों पर लगाए गए आरोपों का पूरा विवरण और अदालत द्वारा सुनाई गई सजा के फैसले की प्रति साझा की जानी चाहिए.

समिति ने कहा कि पाकिस्तान की जेलों में बंद सभी भारतीयों तथा भारत की जेलों में बंद सभी पाकिस्तानी कैदियों को साल में कम से कम चार बार (फरवरी, मई, अगस्त और नवम्बर) के पहले सप्ताहों में राजनयिक पहुंच मुहैया कराई जानी चाहिए.

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