गुजरात दंगों पर कोर्ट के फैसले से बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी काफी खुश हैं. वो इस फैसले से शांति महसूस कर रहे हैं. हालांकि मोदी ने एक बार फिर माफी की बात नहीं की.
मोदी ने फैसले पर अपने विचार रखते हुए ब्लॉग में लिखा कि कानून के सामने केवल सच की ही जीत होती है. गुजरात दंगों ने उन्हें अंदर से हिला कर रख दिया था. हिंसा को सिरफिरे लोगों ने अंजाम दिया जिस कारण से उन्हें व्यक्तिगत रूप से बहुत पीड़ा हुई थी.
मोदी ने लिखा है, 'सबसे ज्यादा दुख तब हुआ जब मेरे अपनों ने मुझ पर गंभीर आरोप लगाया. कोर्ट का फैसला मेरे लिए हार या जीत नहीं है. यह गुजरात के लोगों की एकता की जीत है'.
नरेंद्र मोदी ने लिखा है कि पहले भूकंप और फिर दंगे झेलते हुए राज्य में वह भीतर तक हिले हुए थे. उस अमानवीयता के एहसास से जो पैदा हुआ उसे शब्दों से नहीं बताया जा सकता.
मोदी ने लिखा है कि उन दंगों के बाद उन्होंने बार−बार कहा कि शांति, संयम और न्याय जरूरी है और इसके लिए वह काम करते रहेंगे, लेकिन उनके लिए यह बहुत तकलीफदेह रहा कि उन पर आरोप लगाए गए.
मोदी के मुताबिक, 'इस फैसले ने 12 साल से गुजरात की चली आ रही अग्निपरीक्षा को खत्म किया है. अब वह आजाद हैं और शांति महसूस कर रहे हैं.'
नरेंद्र मोदी का ब्लॉग
कानून का चरित्र ऐसा है कि सिर्फ सच की जीत होती है- सत्यमेव जयते. कोर्ट ने फैसला सुना दिया है ऐसे में अपनी अंतरआत्मा और भावनाओं को आपके साथ साझा करना चाहता हूं.
अंत शुरुआत की यादें लेकर आता है. 2001 के विनाशाकारी भूकंप के कारण पूरे गुजरात में मौत, तबाही और लाचारी का मंजर था. कई लोगों की जानें गईं. लाखों लोग बेघर हुए. पूरी आजीविका नष्ट हो गई. अकल्पनीय पीड़ा के ऐसे दर्दनाक वक्त पर मुझे शांति का माहौल बनाने और पुनर्निमाण की जिम्मेदारी दी गई और हमने पूरे दिल से इस चुनौती को स्वीकार किया.
पांच महीने के अंदर 2002 में एक नासमझी भरी हिंसा ने हमें एक और अप्रत्याशित झटका दिया. बेकसूर मारे गए. कई परिवार बेघर हो गए. लाचारी का माहौल था. कई सालों के परिश्रम से खड़ी की गई संपत्ति नष्ट हो गई. प्राकृतिक तबाही के कारण पहले से ही बिखरे हुए गुजरात के लिए ये झटका पूरी तरह से पंगू करने वाला था.
इसने मुझे अंदर से झकझोर कर रख दिया. ऐसी अमानवीय घटना के साक्षी रहे शख्स की भावनाओं को....दुख, दर्द, पीड़ा जैसे शब्दों से बयान नहीं किया जा सकता.
एक तरफ भूकंप के पीड़ितों का दर्द था तो दूसरी तरफ दंगे से प्रभावित हुए लोगों की पीड़ा. इस मुश्किल समय का सामना करने के लिए, मैंने व्यक्तिगत दर्द और पीड़ा दरकिनार करते हुए ऊपर वाले से मिली शक्ति का इस्तेमाल पूरी तरह से शांति, न्याय और पुनर्वास पर लगाया.
इस चुनौतीपूर्ण समय के दौरान, मैंने हमारे शास्त्रों में लिखी उन बातों को याद किया जिसमें समझाया गया है कि जो लोग सत्ता में बैठे होते हैं उन्हें अपने दर्द और पीड़ा को साझा करने का अधिकार नहीं होता. सबकुछ अकेले ही भुगतना पड़ता है. मैंने भी कुछ ऐसा ही महसूस किया. आज भी जब मुझे उन दुर्भाग्यपूर्ण दिनों की याद आती है तो ऊपर वाले से यही प्रार्थना करता हूं कि किसी और शख्स, समाज, राज्य या देश को कभी ऐसा दिन न देखना पड़े.
यह पहला मौका है जब मैं इस दुखद समय से जुड़ी अपनी भावनाओं को सबके साथ साझा कर रहा हूं. हालांकि, इन भावनाओं के बीच गोधरा में ट्रेन में लगी आग के बाद मैंने बार-बार गुजरात के लोगों से शांति और संयम बनाए रखने की अपील की ताकि निर्दोष लोगों को कुछ न हो. फरवरी-मार्च 2002 के दौरान मीडिया के साथ हर दिन होने वाली बातचीत में और सार्वजनिक तौर पर मैंने शांति बनाए रखने, न्याय दिलाने और दोषियों को सजा दिलाने की राजनीतिक इच्छाशक्ति और सरकार की नैतिक जिम्मेदारी वाली बात दोहराई. इन भावनाओं को मेरे सद्भावना उपवास में कही बातों में भी महसूस किया जा सकता है, जहां मैंने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की निंदनीय घटना एक सभ्य समाज को शोभा नहीं देती और इससे मुझे बहुत दुख हुआ.
शायद, यह पीड़ा भी पर्याप्त नहीं थी. मुझ पर अपने प्रियजनों की हत्या का आरोप लगाया गया, वो भी मेरे अपने गुजराती भाइयों और बहनों द्वारा. क्या आप उस अंदरुनी अशांति और सदमे की कल्पना कर सकते हैं कि जब आपको उन घटनाओं के लिए आरोपी बताया जा रहा हो जिसके कारण आप पूरी तरह से बिखर गए हों. इतने सालों के लिए, वे लगातार मुझपर हमले करते रहे. कोई कसर नहीं छोड़ी. मुझे इस बात का दुख और भी अधिक हुआ जब उन्होंने अपने संकीर्ण व्यक्तिगत और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए मुझे निशाना बनाया. इस दौरान उन्होंने मेरे राज्य और देश की छवि खराब की. इस निर्दयता के कारण बार-बार वो घाव फिर हरे हो गए जिसे हम ईमानदारी से भरने की कोशिश कर रहे थे. विडंबना यह है कि इस वजह से उन लोगों को न्याय मिलने में देरी हुई जिसके लिए वे लड़ रहे थे. हो सकता है उन्हें इस बात का एहसास नहीं हुआ कि वे पहले से ही दुखी लोगों को और कितनी पीड़ा दे रहे थे.
हालांकि गुजरात ने अपना रास्ता चुन लिया था. हमने हिंसा की जगह शांति को चुना. हमने बांटने की जगह एकता को चुना. हमने नफरत की जगह सद्भावना चुना. यह आसान नहीं था, लेकिन हम अपनी मंजिल के प्रति प्रतिबद्ध थे. अनिश्चितता और डर के माहौल को पीछे छोड़कर हम शांति, एकता और सद्भावना के गुजरात में तब्दील हो गये. आज मैं संतुष्ट और आश्वस्त हूं, और इसका क्रेडिट हर गुजराती को जाता है. गुजरात सरकार ने उस वक्त हिंसा रोकने के लिए तीव्रता से निर्णायक कदम उठाए थे. देश भर के दंगों के इतिहास में कभी ऐसी कार्रवाई नहीं हुई. अदालत के फैसले के साथ देश के सबसे बड़े कोर्ट की अभूतपूर्व निगरानी में चली जांच की एक प्रक्रिया का समापन हो गया. इसके साथ 12 साल से चल रही गुजरात की अग्निपरीक्षा का अंत हो गया. मैं खुद में मुक्त और शांति महसूस कर रहा हूं. मैं उन लोगों के लिए शुक्रगुजार हूं जो मेरे साथ इस बुरे वक्त में खड़े रहे, जिन्होंने झूठ और धोखे के मुखौटे की दूसरी तरफ मौजूद सच को देखा. अब जब झूठी जानकारियों के बादल छंट गए हैं, मैं उम्मीद करता हूं कि वे लोग जो मुझसे जुड़ना चाहते हैं आज और मजबूत महसूस करेंगे.
दूसरों को दर्द देकर संतोष प्राप्त करने वाले लोग शायद अब भी मेरे खिलाफ अपनी मुहिम बंद न करें. मैं उनसे ऐसी उम्मीद भी नहीं करता. लेकिन, विनम्रता से प्रार्थना करता हूं कि वे अब कम से कम गैर जिम्मेदाराना तरीके से गुजरात के 6 करोड़ लोगों को बदनाम करना बंद करें. दर्द और पीड़ा भरे इस सफर से बाहर निकलकर ऊपर वाले से यही प्रार्थना करता हूं कि मेरे दिल में कभी कोई कड़वाहट न आए. मैं ईमानदारी से कहता हूं कि इस फैसले को मैं अपनी जीत और हार की तरह नहीं देखता. अपने साथियों और खासकर विरोधियों से यही अपील करूंगा कि वे भी इसे इस तरह से न देखें. 2011 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी मैं ऐसे ही विचार रखता था. मैंने सद्भावना के लिए 37 दिन तक उपवास किया ताकि एक सकारात्मक फैसले को मजबूत एक्शन में तब्दील किया जाए जिससे समाज में एकता और सद्भावना का माहौल बने.
मैं यही मानता हूं कि किसी भी समाज, राज्य या देश का उज्जवल भविष्य सद्भाव में निहित है. यह एक मात्र नींव है जिस पर प्रगति और समृद्धि का निर्माण किया जा सकता है. इसलिए, मैं सभी से आग्रह करता हूं कि सब कोई साथ आएं ताकि हर किसी के चेहरे पर मुस्कान सुनिश्चित किया जा सके.
एक बार फिर से, सत्यमेव जयते!