गुजरात में जैसे ही नरेंद्र मोदी ने अपनी 'हैट्रिक' जीत का परचम लहराया वैसे ही एनडीए में उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर पेश करने की मांग बढ़ गई, वहीं कांग्रेस भी 2014 की तैयारियों में जुट गया है. कांग्रेस के कुछ नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने की पहले ही मांग कर चुके हैं.
अगर ऐसा होता है तो 2014 में मोदी बनाम राहुल 'महायुद्ध' देखने को मिल सकता है. गुजरात की जीत के बाद मोदी का आत्मविश्वास गजब का बढ़ा हुआ है, उधर कांग्रेस के खेमें में खलबली के बाद अजीब सी खामोशी है. वैसे तो मोदी के दिल्ली आने की चर्चा बीजेपी के भीतर से बार-बार होती रही है, जाहिर है इस जीत के बाद तो ये शोर और बढ़ जाएगा.
मोदी के समर्थकों की ये गूंज हो सकता है दिल्ली के गलियारों में सुनाई देने लगे. 2014 के आम चुनाव में देश को दो सबसे बड़ी पार्टियां भिड़ेंगी तो हो सकता है कि ये मुकाबला नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी का हो जाए. अभी गुजरात विधानसभा चुनाव में दोनो का आमना-सामना भी हो चुका है.
राहुल गांधी गुजरात में कांग्रेस प्रचार के लिए आए तो कहा था, 'ये गुजरात के लोगों की मेहनत है जिसका श्रेय मोदी ले रहे हैं. विकास की शुरुआत यहां कांग्रेस ने की थी.'
तो मोदी ने पलटवार करते हुए कहा था, 'राहुल गांधी अपना होमवर्क करके आएं तो अच्छा रहेगा.' जाहिर है अगर 2014 में दोनो आमने-सामने हुए तो मुकाबला कांटे का होगा. ये बात अलग है कि कांग्रेसी नेता इस तुलना को भी गलत मानते हैं.
सलमान खुर्शीद इस मुद्दे पर कह चुके हैं, 'पूरा देश जानता है कि राहुल गांधी कौन हैं, लेकिन मोदी के बारे में बात नहीं कही जा सकती.' गौर करने की बात ये है कि 2014 की तैयारी ये दोनों नेता अपने-अपने तरीके से कर रहे हैं.
मोदी ने गुजरात में हैट्रिक मार कर अपना लोहा मनवाया है, वहीं राहुल गांधी तमाम कोशिशों के बाद भी अभी तक खुद को साबित नहीं कर सके हैं. गुजरात में मोदी ने अपनी छवि विकास पुरुष के तौर पर बनाई है, राहुल गांधी भी अपने तरीके से विकास की बात करते हैं.
नरेंद्र मोदी बड़े राजनीति रणनीतिकार है. वो दबंग स्टाइल में राजनीति करते हैं. पार्टी के बाहर ही नहीं पार्टी के भीतर भी वो अपने विरोधियों को सिर नहीं उठाने देते. गुजरात चुनाव के ठीक पहले उन्होने संजय जोशी को जिस तरह से बाहर का रास्ता दिखवा दिया. ये उनकी राजनीति का एक तरीका है.
विकास का उन्होंने अपना मॉड्यूल तैयार किया है. बात वाइब्रेंट गुजरात की हो या फिर नैनो प्लांट को सिंगूर से दिल्ली लाने की बात हो, नरेंद्र मोदी मौके पर चौका मारना जानते हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि उनका अपना एक जनाधार है.
वहीं राहुल गांधी लगातार अपने संगठन के लिए काम कर रहे हैं. राहुल गांधी भी लंबी रणनीति के तहत काम करते हैं. सरकार में कोई भी बड़ा पद लेने के बदले वो संगठन को सींचने का काम कर रहे हैं. उन्होने कांग्रेस संगठन को काफी हद तक ऑर्गनाइज किया है. अभी पार्टी के चुनाव समिति की जिम्मेदारी उन पर है राहुल गांधी लगातार यात्रा करते हैं. लोगों के बीच जाते हैं.वो भीड़ खींचने में माहिर हैं, लेकिन सवाल ये है कि उन्हे देखने और सुनने के लिए इकट्ठी होने वाली भीड़ वोट में कितना तब्दील होती है.
केंद्र की राजनीति की ओर बढने से पहले मोदी की राह में उन्ही की पार्टी की ओर से कई रोड़े हैं, अभी तक ये भी तय नहीं हो पाया है कि 2014 में कांग्रेस राहुल गांधी को पीएम के तौर पर पेश करेगी या नहीं, लेकिन अगर ऐसा होता है तो मुकाबला बेहद दिलचस्प होगा.