2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नरेंद्र मोदी के फॉर्मूले से ही उन्हें मात देने की कोशिश में है. राहुल अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने के लिए और सामाजिक संतुलन को साधने के लिए सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं.
'संविधान बचाओ अभियान' के तहत दलितों का भरोसा जीतने की कोशिश करने के बाद अब कांग्रेस ओबीसी समाज के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने के प्रयास में जुट गई है. इस कड़ी में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आज दिल्ली में ओबीसी सम्मेलन बुलाया है. ये सम्मेलन दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में हो रहा है. इस आयोजन को कांग्रेस के ओबीसी समुदाय में अपना आधार बढ़ाने के तौर पर देखा जा रहा है.
2014 में कांग्रेस की हार की वजह बने ओबीसी
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के बेहद खराब प्रदर्शन की बड़ी वजह ओबीसी वर्ग में उसका आधार कमजोर होना भी रहा. जबकि बीजेपी ने विगत करीब एक दशक के दौरान ओबीसी समुदाय में अपना जनाधार व्यापक रुप से बढ़ाया है.
बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने ओबीसी मतों को साधकर प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता के सिंहासन पर कब्जा जमाया था. मोदी ने अपनी रैलियों में खुद को ओबीसी समुदाय के तौर पर पेश किया था. इसी का नतीजा था कि बीजेपी पहली बार सवर्ण मतों के साथ-साथ ओबीसी और दलित समुदाय के वोट हासिल करने में भी कामयाब रही थी.
आरक्षण के जरिए ओबीसी के दिल जीतने की कोशिश
हालांकि कांग्रेस आरोप लगाती रही है कि बीते चार साल में मोदी सरकार ने ओबीसी वर्ग के लिए कोई ठोस काम नहीं किया है. जबकि यूपीए की पहली सरकार के दौरान कांग्रेस ने सभी उच्च शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी के लिए 27 फीसद आरक्षण का ऐतिहासिक कदम उठाया था.
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह के इस फैसले ने बीते करीब एक दशक के दौरान ओबीसी समुदाय की शैक्षणिक और सामाजिक ही नहीं आर्थिक तस्वीर भी बदली है. माना जा रहा है कि कांग्रेस अपने नेताओं को इस उदाहरण के जरिए ओबीसी समुदाय से संवाद करने की कोशिश करेगी.
कांग्रेस अब इसी फॉर्मूले पर काम करने में जुटी है. गुजरात विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर को अपने साथ मिलाया था. पार्टी को इसका फायदा भी मिला था. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के चाणक्य माने जाने वाले अशोक गहलोत भी ओबीसी समुदाय से आते हैं. इसके अलावा हाल ही में यूथ कांग्रेस की कमान ओबीसी समुदाय से आने वाले केशव चंद यादव के हाथ में सौंपी है. मध्य प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ओबीसी को अपने साथ मिलाने में लगातार जुटे हैं.
अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए राजनीतिक गठबंधन के समीकरण को मजबूती देने की कोशिश में जुटा कांग्रेस नेतृत्व पार्टी के सामाजिक समीकरण को भी दुरुस्त करने में लग गया है. कांग्रेस बीजेपी से सियासी मुकाबला करने के लिए ओबीसी समुदाय में अपना आधार बढ़ाने के लिए इस सम्मेलन को बेहद अहम मान रही है.
कांग्रेस की ओर से कराए जा रहे ओबीसी सम्मेलन में देश भर से ओबीसी समुदाय के लोग इकट्ठा हो रहे हैं. कांग्रेस के इन नेताओं से राहुल गांधी उनके समुदाय की राजनीतिक और सामाजिक आकांक्षाओं के बारे में जानेंगे. साथ ही इस समुदाय को लेकर कांग्रेस की क्या नीतियां होंगी ये भी साझा करेंगे.
ओबीसी सम्मेलन से पकड़ बनाने की कोशिश
बीजेपी पिछले काफी समय से ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने संबंधी बिल को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधती रही है. सत्ताधारी दल के इस दांव को थामने के लिए ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ओबीसी समुदाय के साथ पार्टी का संपर्क बढ़ाने के साथ खुद भी सीधे रूबरू होने का फैसला किया है.
ओबीसी समुदाय से सीधे संवाद करने के अपने एजेंडे की शुरुआत राहुल गांधी कांग्रेस ओबीसी विभाग के राष्ट्रीय सम्मेलन से कर रहे हैं. पार्टी हाई कमान अगले चुनाव से पहले ओबीसी समुदाय को साधने की सियासी जरूरत को शिद्दत से महसूस कर रहा है. इसलिए माना जा रहा कि सम्मेलन के जरिए राहुल ओबीसी वर्ग को साधने का अपना राजनीतिक संदेश देने में कसर नहीं छोड़ेंगे.
ओबीसी आयोग पर रखें पक्ष
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने संबंधी संसद में अटके बिल को लेकर भी राहुल पार्टी नेताओं से बीजेपी के कथित दुष्प्रचार का करारा जवाब देने के लिए संदेश दे सकते हैं. लोकसभा में पिछले साल पारित इससे संबंधित बिल में राज्यसभा में विपक्षी दलों ने दो संशोधन पारित कर दिए. इसकी वजह से बिल लटक गया क्योंकि एनडीए सरकार बिल के दो संशोधनों में एक के लिए राजी नहीं है और कांग्रेस इसी वजह से बीजेपी के निशाने पर रही है.
कांग्रेस नेतृत्व बीजेपी के आरोपों को खारिज करते हुए उनकी सबसे बड़ी हिमायती दिखाने की कोशिश करेगी. राहुल यह संदेश देने की कोशिश कर सकते हैं कि कांग्रेस ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का पुख्ता समर्थन करती है.
ओबीसी सम्मेलन का मकसद जहां एक ओर सभी राज्यों के इस समुदाय के अपने नेताओं से सीधे संवाद करना है तो दूसरी ओर उनकी सामाजिक-राजनीतिक आकांक्षाओं का आकलन करना. हालांकि ओबीसी समुदाय कांग्रेस का परंपरागत वोट कभी नहीं रहा है. कांग्रेस का मूल वोटबैंक ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम रहा है. लेकिन बदलते राजनीतिक समीकरण में ओबीसी मतों की काफी अहमियत बढ़ी है.