2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष एकजुट होने की कोशिश में जुटा है, लेकिन अभी तक गठबंधन का स्वरूप तय नहीं हो सका है. ऐसे में एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने फॉर्मूला सुझाया. कांग्रेस को पवार का फॉर्मूला जहां अपने पक्ष में नजर आ रहा है. वहीं, महागठबंधन में शामिल होने वाले छत्रपों को भी निराश नहीं कर रहा है.
सोमवार को एनसीपी के एक कार्यक्रम में पार्टी अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि पहले चुनाव होने दीजिए और बीजेपी को सत्ता से बाहर कीजिए. इसके बाद फिर हम सब साथ बैठेंगे और जिस पार्टी की सीट सबसे ज्यादा होगी, वो पीएम पद के लिए दावा पेश कर सकता है.
शरद पवार के इस बयान के राजनीतिक मायने निकाले जाने लगे हैं. इसे दो तरह से समझा जा सकता है. एक तो सीधे-सीधे 2019 के लोकसभा चुनाव में जिस पार्टी की सबसे ज्यादा सीटें आएंगी. प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार उस पार्टी से चुना जा सकता है.
इस फॉर्मूले के लिहाज से देखा जाए को विपक्ष की ओर से सबसे ज्यादा सीटें कांग्रेस के खाते में जा सकती हैं. महागठबंधन का हिस्सा बनने वाली पार्टी में सबसे ज्यादा सीटें फिलहाल कांग्रेस के पास हैं. इतना ही नहीं, बाकी दलों की तुलना में भी कांग्रेस का आधार ज्यादा है. क्षेत्रीय दलों का आधार जहां अपने-अपने राज्यों तक सीमित हैं वहीं कांग्रेस कई राज्यों में मजबूत स्थिति में है.
इस लिहाज से 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बाकी दलों की तुलना में ज्यादा सीटों पर चुनावी मैदान में उतरेगी. कांग्रेस ने 200 प्लस सीटें जीतने का टारगेट फिक्स किया है. ऐसे में निश्चित रूप से कांग्रेस की सहयोगी दलों से ज्यादा सीटें आएंगी. इस फॉर्मूले के लिहाज से कांग्रेस की दावेदारी सबसे मजबूत होगी. यही वजह है कि पवार का फॉर्मूला कांग्रेस को अपने पक्ष में नजर आ रहा है.
पवार के फॉर्मूले के दूसरे राजनीतिक मायने निकाले तो यह क्षत्रपों के लिए उम्मीद की आस जगा रहा है. लोकसभा चुनाव के बाद जब क्षेत्रीय दल बैठेंगे. इनमें से ज्यादातर दल जिस नेता और पार्टी के साथ खड़े होंगे. उसका पलड़ा भारी नजर आएगा.
महागठबंधन के क्षत्रप फिलहाल इस मूड में नजर आ रहे हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बिना किसी चेहरे को आगे किए हुए मैदान में उतरा जाए और बीजेपी को मात दी जाए. इसके बाद पीएम पद को लेकर माथा पच्ची की जाए.
ममता बनर्जी, मायावती से लेकर शरद पवार तक 1996 के राजनीतिक हालात को मानकर चल रहे है कि जिस प्रकार एचडी देवगौड़ा और बाद में गुजराल पीएम बने थे. उसी प्रकार कांग्रेस और महागठबंधन के बाकी दल नरेंद्र मोदी को सत्ता में आने से रोकने के लिए उन्हें पीएम पद उम्मीदवार मान सकते हैं.