scorecardresearch
 

CBSE स्कूलों में सत्र शुरू हुए 21 दिन बीते, छात्रों को अब तक नहीं मिली है किताबें

सीबीएसई स्कूलों में शिक्षा सत्र शुरू हुए 21 दिन बीत गये हैं लेकिन अब तक सीबीएसई की किताबें बाजार में नहीं आई हैं.

Advertisement
X
सीबीएसई
सीबीएसई

Advertisement

सीबीएसई स्कूलों में शिक्षा सत्र शुरू हुए 21 दिन बीत गये हैं लेकिन अब तक सीबीएसई की किताबें बाजार में नहीं आई हैं. हैरत की बात ये भी है कि किताबों की दुकानें खोले स्कूलों में भी नहीं आई हैं. केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) का ये कोई नया रवैया नहीं है. बरसों से ये ही गठजोड़ चल रहा है, सीबीएसई और निजी प्रकाशकों का. बाजार में गाइड के नाम पर निजी प्रकाशकों की वहीं किताबें धड़ल्ले से बिक रही हैं जिन्हें सीबीएसई कुछ महीनों बाद बाजार में लाएगा. तब तक शायद आधा सत्र तो निकल चुका होगा.

नौवीं, दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं के लिए ज्यादातर किताबें तो एनसीईआरटी (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) छापता है. यही कैरिकुलम (विषय वस्तु) भी तैयार करता है. सीबीएसई तो अपनी चौधराहट अंग्रेजी, संस्कृत, कंप्यूटर साइंस, फ्रेंच, डिजास्टर मैनेजमेंट और बायोटेक्नोलॉजी में ही रखता है. नौवीं से बारहवीं की आठ किताबें अंग्रेजी की और चार किताबें कंप्यूटर साइंस की छापता है. इसके अलावा नौवीं दसवीं की संस्कृत मणिका और व्याकरण, फ्रेंच की चार, डिजास्टर मैनेजमेंट की तीन, बायोटेक्नोलॉजी की दो किताबें छापता है. इसमें ही इतना बखेरा कि पूरे देश में छात्रों के बीच त्राहि-त्राहि मच जाती है. पहले एनसीईआरटी का भी यही हाल था, लेकिन अब यहां सुधार है.

Advertisement

जब बाजार या कहें निजी सरकारी स्कूलों तक किताबें नहीं पहुंची तो अवसरवादी और गठजोड़ वाले प्रकाशकों ने अपनी किताबें दुगुने दाम पर बाजार में उतार दी हैं. लोग मजबूरी में खरीद भी रहे हैं, ये हर साल होता है. कहावत भी है कि जब असली सिक्के तिजोरियों में बंद हो जाते हैं तो नकली सिक्के बाजार में चलने लगते हैं. सीबीएसई के प्रवक्ता ने भी उम्मीद जताई कि अगले 15 दिनों में किताबें बाजार में जाना शुरू हो जाएंगी. गर्मी की छुट्टियां तब तक होनी शुरू हो जाएंगी. सीबीएसई के स्कूल फिर जुलाई में खुलेंगे.

स्कूलों को व्यावसायिकता से मुक्त करने का फरमान तो सीबीएसई ने सुना दिया. स्कूलों में यूनिफॉर्म, किताबों और स्टेशनरी की दुकानें या स्टॉल नहीं लगेंगे. लेकिन पुस्तक मेला के नाम पर तीन दिनों का किताब उत्सव मनाने से तो नहीं रोका गया. स्कूल उस रास्ते से अभिभावकों को घेरेंगे. जब तक सीबीएसई इस बारे में जागेगा कई सत्र निकल चुके होंगे. अभिभावक मजबूरी में ही सही वहां से ले लेंगे. दिमाग की लालबत्ती जब तक नहीं उतरेगी तब तक कारों से लाल बत्ती उतारने का क्या फायदा.. सरकार निश्चिंत है. एक चिट्ठी भेज दी इससे सब दुरुस्त हो जाएगा.

एल्कॉन इंटरनेशन स्कूल के प्रिंसिपल अशोक पांडेय के मुताबिक अभिभावकों को हम तो सुविधा मुहैया करा रहे हैं. अलग अलग प्रकाशकों की किताबें कहां- कहां ढूंढने जाएंगे. सो हमने सब एक ही जगह एक साथ मुहैया करा रखी हैं. वहीं पुस्तक विक्रेता हितकारी संघ के सचिव रमेश वशिष्ठ का कहना है कि स्कूलों को जनवरी में ही अपनी अपनी वेबसाइट पर किताबों की सूची, मिलने की जगह और यूनिफॉर्म मिलने की जगहों के विकल्प डाल देने चाहिए. इससे अभिभावकों के आगे विकल्प रहेंगे. फिर चाहे अभिभावक स्कूल से लें या कहीं और से.

Advertisement

स्कूल महासंघ सीबीएसई के इस फरमान पर अदालत जाने पर विचार कर रहा है. ऐसे में पुस्तक विक्रेता हितकारी संघ का कहना है कि ऐसा होगा तो हम भी दखल देंगे और अदालत में पिछले वर्षों में हाईकोर्ट और अन्य कोर्ट के फैसलों की नजीर देते हुए अभिभावकों और प्रकाशकों का पक्ष रखेंगे.

अदालती लड़ाई अपनी जगह है लेकिन फिलहाल तो छात्रों के आगे समस्या ये ही है कि क्लास में शिक्षकों की झिड़की सुनें. अभिभावकों की मजबूरी ये है कि हरेक दो दिन में किताब दुकान पर जाकर पूछें भैया सीबीएसई की किताबें आ गई क्या ? काउंटर के पीछे से आजिज आई तेज आवाज आती है "अभी नहीं".

Advertisement
Advertisement