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28 साल बाद दोबारा अपना इतिहास लिखवा रहा है संघ, बताई जाएगी इंदिरा से माफी की वजह

आरएसएस अपना इतिहास दोबारा लिखवा रहा है. 28 साल पहले जिन लोगों ने संघ का इतिहास लिखा था, वही लोग अब दोबारा नई किताब लिखने की तैयारी में जुट गए हैं.

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1987 में लिखी गई थी द ब्रदरहुड इन सैफ्रन
1987 में लिखी गई थी द ब्रदरहुड इन सैफ्रन

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इतिहास दोबारा लिखा जा रहा है. लेखक भी वही हैं, जिन्होंने 28 साल पहले 1987 में इसे लिखा था. उस किताब का नाम था - 'द ब्रदरहुड इन सैफ्रनः द राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एंड हिंदू रिवाइलिज्म.' इतिहास के पुनर्लेखन के पीछे मंशा क्या यह तो संघ ही जानता है, लेकिन बताया जा रहा है कि नई किताब में आपातकाल, बालासाहेब देवरस, केएस सुदर्शन और नागपुर से दिल्ली के बीच के सत्ता संघर्ष की कहानी होगी.

वाल्टर एंडरसन और श्रीधर ने लिखी थी किताब
यह किताब अमेरिकी विदेश मंत्रालय के साथ काम कर चुके वाल्टर के. एंडरसन और संघ से नजदीकी रखने वाले श्रीधर डामले ने 1987 में लिखी थी. एंडरसन दिल्ली में भी रह चुके हैं. अब एंडरसन डॉन होपकिन्स और डामले के साथ ही दोबारा इसे लिखने की तैयारी में जुट गए हैं. डामले अब बतौर रिसर्चर शिकागो में रह रहे हैं. अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को डामले ने बताया कि इस किताब में वह कारण भी होगा जिसकी वजह से आपातकाल के दौरान देवरस ने इंदिरा गांधी से माफी मांगी थी.

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आपातकाल के दौरान महिलाओं ने चलाया संघ
महिलाओं से दूरी बनाए रखने का आरोप झेलने वाले संघ के बारे में डामले ने एक और खुलासा किया. उन्होंने बताया कि बताया कि आपातकाल के दौरान संघ को सह सरकार्यवाह भाऊराव देवरस, राजेंद्र सिंह, शेषाद्रि, मोरोपंत पिंगले, और दत्तोपंत ठेंगड़ी ने संघ को चलाया. उस दौरान महिला इकाई राष्ट्रीय स्वयंसेविका संघ ने गुरु दक्षिणा जुटाकर संघ के संचालन में मदद की.

पहली बार संघ की बैठक में बुलाई गई थी महिलाएं
डामले ने बताया कि जेल से छूटने के बाद देवरस ने पहली बार महिलाओं को संघ की बैठक में हिस्सा लेने के लिए बुलाया था. उन्होंने 25 सेविकाओं को बुलावा भेजा था. हालांकि कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया था. तब देवरस ने 1948 और 1977 की दुहाई देते हुए कहा था कि उस दौर में कई नेता भाग खड़े हुए थे, लेकिन इन सेविकाओं ने ही संघ को खड़े रखा था.

रणनीति का हिस्सा थी इंदिरा से माफी
डामसे ने कहा कि इंदिरा गांधी से माफी मांगना रणनीति का हिस्सा था. यहां तक कि अटल बिहारी वाजपेयी को भी इंदिरा से माफी मांगने को कहा गया था. डामले ने 'वाजपेयी ने मुझे बताया था कि मैं बिना इजाजत कुछ नहीं कर रहा.'

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एकनाथ गए और फिर कभी नहीं लौटे
डामले के मुताबिक इस किताब का सबसे दिलचस्प अंश होगा एकनाथ रानाडे का आपातकाल के दौरान कन्याकुमारी जाना. रानाडे को विवेकानंद मेमोरियल की स्थापना के लिए कन्याकुमारी भेजा गया था. वह छह साल तक सरकार्यवाह रहे, लेकिन कन्याकुमारी जाने के बाद वह संघ में नहीं लौटे.

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