वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने इन खबरों का खंडन किया कि उनका 2जी स्पेक्ट्रम की कीमत तय करने से लेना-देना था और इस मुद्दे पर ‘दुष्प्रचार’ करने वालों की उन्होंने आलोचना की.
वर्ष 2007 में जब मुखर्जी विदेश मंत्री थे, उन्हें 3जी स्पेक्ट्रम खाली करने पर मंत्रियों के समूह का चेयरमैन नियुक्त किया गया था जिसके बारे में उन्होंने कहा कि 2जी और इसके मूल्य निर्धारण से उनका कोई लेनादेना नहीं था.
उन्होंने कहा कि मंत्रिसमूह रक्षा और अर्धसैनिक बलों द्वारा स्पेक्ट्रम खाली कराने के लिए गठित किया गया था और कीमत निर्धारण का काम इसे नहीं सौंपा गया था. मुखर्जी ने कहा, ‘संक्षेप में कहूं तो मेरा 2जी के साथ कोई लेना-देना नहीं था.
मुखर्जी ने कहा कि उनकी अध्यक्षता वाले मंत्रिसमूह का काम स्पेक्ट्रम खाली कराना था और ‘आप 2जी स्पेक्ट्रम के मूल्य निर्धारण एवं अन्य चीजों को कैसे यहां ला सकते हैं.’ वित्त मंत्री ने कहा, ‘जहां तक कीमत निर्धारण एवं अन्य चीजों का संबंध है, यह मंत्रिसमूह को सौंपे गए काम का हिस्सा नहीं था.’
मुखर्जी ने कहा कि नोडल मंत्रालय के निर्देश पर मंत्रिसमूह के संदर्भ की शर्तें बदली गई थीं और कोई कैसे यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि कीमत निर्धारण को लेकर छेड़छाड़ की गई. उनका संदर्भ उन रपटों से है जिनमें लिखा गया है कि उन्हें इस छेड़छाड़ की जानकारी थी.
नवंबर, 2007 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मुखर्जी को सेल्युलर आपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया और जीएसएम आपरेटरों द्वारा अतिरिक्त जीएसएम स्पेक्ट्रम के आवंटन के संबंध में उठाए गए मुद्दों को संज्ञान में लेने को कहा था. ये मुद्दे टीडीसैट में लंबित मामलों की सुनवाई के संदर्भ में तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा और तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल जीई वाहनवति के सामने उठाए गए थे.
मुखर्जी ने कहा कि इस संदर्भ में उन्होंने दिसंबर, 2007 के पहले सप्ताह में राजा और वाहनवति के साथ एक बैठक की थी. वाहनवति ने बताया था कि मौजूदा आपरेटर मार्च, 2006 के दिशानिर्देशों के आधार पर अतिरिक्त जीएसएम स्पेक्ट्रम के आवंटन की मांग कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि दूरसंचार नियामक की सिफारिशों में संशोधित मानदंडों को ध्यान में रखते हुए आपरेटरों की दलील में कोई दम नहीं था. वाहनवति ने उन्हें बताया था कि टीडीसैट के निर्देश के मुताबिक, नवंबर, 2007 में एक हलफनामा दायर किया गया जिसमें आगे क्या किया जाना है, इसका संकेत दिया गया था.