सरकार ने मंगलवार को कहा कि वह 2 जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में देश के समक्ष सभी तथ्य लाए जाने के पक्ष में है इसीलिए उसने संयुक्त संसदीय समिति के गठन का समर्थन किया है जबकि विपक्ष ने आरोप लगाया कि यदि सरकार इस मामले में पहले ही सक्रिय होती तो देश के खजाने को हुई राजस्व हानि को रोका जा सकता था.
राज्यसभा में वर्ष 1998 से 2009 तक दूरंसचार लाइसेंसों और स्पेक्ट्रम के आवंटन सहित विभिन्न मु्द्दों पर 30 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति का गठन करने का प्रस्ताव पेश करते हुए दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मुद्दे पर देश भर में व्याप्त आम राय को देखते हुए सरकार ने जेपीसी गठित करने का फैसला किया.
लोकसभा इस आशय का प्रस्ताव पहले ही पारित कर चुका है. 30 में से 20 सदस्य निम्न सदन से होंगे. गौरतलब है कि सरकार ने जेपीसी में राज्यसभा से कांग्रेस के प्रो. पी जे कुरियन, अभिषेक मनु सिंघवी और प्रवीण राष्ट्रपाल, द्रमुक के तिरूचि शिवा, राकांपा के वाई पी त्रिवेदी, भाजपा के एस एस अहलूवालिया एवं रविशंकर प्रसाद, जदयू के रामचंद्र प्रसाद सिंह, बसपा के सतीश चंद्र मिश्र तथा माकपा के सीताराम येचुरी को सदस्य बनाए जाने का प्रस्ताव किया है.
सिब्बल ने कहा कि सरकार चाहती थी कि संसद में इस मुद्दे पर चर्चा हो लेकिन उसे संसद में अपनी बात कहने का मौका ही नहीं दिया गया. उन्होंने कहा कि आम तौर पर कैग की रिपोर्ट संसद में पेश होने के बाद लोकलेखा समिति के पास जाती है और उसके बाद पीएसी की रिपोर्ट के साथ उस पर संसद में चर्चा होती है. लेकिन इस मामले में तो विपक्ष सीधे संसद में चर्चा कराने की मांग कर रहा है.{mospagebreak}
दूरसंचार मंत्री ने कहा कि उनके सरकारी खजाने को कोई नुकसान नहीं होने के बयान को बेवजह तूल दिया गया और उसे सही संदर्भ में पेश नहीं किया गया. सिब्बल ने दावा किया कि उन्होंने यह कभी नहीं कहा था कि यदि स्पेक्ट्रम की बोली लगाई जाती तो सरकार को राजस्व नहीं मिलता.
उन्होंने कहा कि यदि मौजूदा सरकार की दूरसंचार नीतियों में कोई खामी होती तो दूरसंचार घनत्व मार्च 2005 के 8. 95 प्रतिशत की तुलना में दिसंबर 2010 तक बढ़ कर 66 फीसदी न हो जाता. विपक्ष के नेता अरूण जेटली ने दूरसंचार घनत्व बढ़ने के सरकार के दावे को खारिज करते हुए कहा कि दूरसंचार घनत्व बढ़ने का यह मतलब नहीं है कि सरकारी खजाने को हानि पहुंचाई जाए.
उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने दूरसंचार क्षेत्र की सफलता को घोटाले में तब्दील कर दिया है. जेटली ने कहा कि इस मामले की जांच के लिए जेपीसी गठित किया जाना इसलिए जरूरी था ताकि पूरी व्यवस्था में आई खामियों का पता लगा कर उनको दुरूस्त किया जा सके.
उन्होंने कहा कि इस मामले में प्रशासन, कंपनी जगत, मीडिया, मंत्रियों, राजनेताओं के बारे में भी सवाल उठे थे. इसलिए पूरी व्यवस्था की साख को बरकरार रखने के लिए यह कदम जरूरी था. भाजपा नेता ने पूर्ववर्ती राजग सरकार के शासनकाल के दौरान के कुछ सौदों की सरकार द्वारा नजीर दिए जाने पर कहा कि सरकार चीजों को गलत ढंग से पेश कर रही है.{mospagebreak}
उन्होंने कहा कि तत्कालीन मंत्री ने उड़ीसा, पूर्वोत्तर, पूर्वी उत्तर प्रदेश जैसे कुछ दूरसंचार सर्किलों में दो बार निविदाएं आमंत्रित की थीं लेकिन किसी भी बोलीदाता के सामने नहीं आने पर ‘पहले आओ पहले पाओ’ का रास्ता अपनाया गया.
चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के राशिद अल्वी ने कहा कि सरकार सचाई सामने लाने के लिए गंभीर है और सरकार का यह रुख अब भी कायम है कि किसी दोषी को नहीं बख्शा जाएगा. उन्होंने भाजपा पर हमला करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार की चर्चा करते हुए कर्नाटक के मामले को भी शामिल किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार की नीतियों के कारण टेलीफोन की दरें सस्ती हुईं, इस ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.
बसपा के ब्रजेश पाठक ने कहा कि जेपीसी के गठन का प्रस्तान काफी जद्दोजहद के बाद आया है और उन्हें उम्मीद है कि यह किसी न किसी निष्कर्ष पर पहुचेंगी. माकपा के तपन कुमार सेन ने इस प्रस्ताव को ‘‘देर आए दुरूस्त आए’ करार देते हुए कहा कि सरकार अगर पहले सहमत हो गयी होती तो संसद का एक सत्र बर्बाद नहीं होता.
जद यू के शिवानंद तिवारी ने कहा कि सरकार जिद पर अड़ी थी कि जेपीसी के गठन के प्रस्ताव को नहीं मानेंगे. इससे जनता के मन में संदेह हुआ कि जरूर कुछ गड़बड़ है. उन्होंने कहा कि सरकार जिस तरह से जेपीसी गठन का प्रस्ताव रख रही है, उससे लगता है कि वह विपक्ष के दबाव में और संसद का बजट सत्र बचाने के लिए जेपीसी को स्वीकार कर रही है.{mospagebreak}
द्रमुक के टी शिवा ने पूर्व दूरसंचार मंत्री का बचाव करते हुए कहा कि निहित स्वार्थो के कारण मामले को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जा रहा है और लोगों के बीच अलग बातें प्रचारित की जा रही हैं. उन्होंने कहा कि इस मामले को लेकर विभिन्न संवैधानिक निकायों के बीच मतभेद है. शिवा ने कैग की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि नुकसान संबंधी जो भी बात कही गयी है वह सिर्फ आकलन है और उसे अंतिम निष्कर्ष नहीं कहा जा सकता.
सपा के मोहन सिंह ने प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि इसके गठन को लेकर उनके मन में कई आशंकाए हैं क्योंकि जेपीसी में 70 प्रतिशत सदस्य कांग्रेस और भाजपा के ही होंगे. उन्होंने सुझाव दिया कि जेपीसी में ऐसे लोगों को शामिल किया जाना चाहिए जो दोनों पक्षों से जुड़े हुए नहीं हैं.
अन्नाद्रमुक के वी मैत्रेयन ने जेपीसी में अपनी पार्टी को भी शामिल किए जाने की मांग करते हुए कहा कि हम पिछले दो साल से यह मुद्दा उठाते रहे हैं. अब सीबीआई ने भी स्वीकार किया कि उसे कई दस्तावेज मिले हैं. उन्होंने मामले में लाभान्वित हुए लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. उन्होंने अपने भाषण में नीरा नाडिया के द्रमुक के प्रमुख नेता के परिवार के सदस्य के साथ कथित बातचीत का जिक्र किया. इस पर द्रमुक के सदस्यों ने विरोध किया.{mospagebreak}
पीठासीन अधिकारी तारिक अनवर ने द्रमुक के सदस्यों को आश्वासन दिया कि वह रिकार्ड को देखकर उचित फैसला करेंगे. मैत्रेयन ने डीबी ग्रुप की ओर से एक टीवी कंपनी को 214 करोड़ रुपए की राशि दिए जाने का भी मामला उठाया.
शिवसेना के मनोहर जोशी ने जेपीसी का बहिष्कार करने की घोषणा करते हुए कहा कि इसमें सिर्फ 2..जी मामले को ही शामिल किया गया है जबकि इसमें राष्ट्रमंडल खेलों के साथ ही आदर्श हाउसिंग घोटाले को भी शामिल किया जाना चाहिए था. चर्चा में भाकपा के डी राजा, भाजपा के चंदन मित्रा, कांग्रेस के अभिषेक सिंघवी और अगप के दीपक कुमार दास ने भी भाग लिया.