पटना में रावण दहन के बाद भीड़ में भगदड़ से मरने वालों की तादाद बढ़कर 33 हो गई है, जिनमें से 28 की शिनाख्त हो चुकी है. 100 से ज्यादा घायल हुए लोगों का मुस्तैदी से इलाज करवाया जा रहा है. सियासी गलियारों में भी इस बेहद दर्दनाक हादसे पर दुख जताने और मातमपुर्सी का सिलसिला जारी है. हादसे पर केंद्र सरकार ने प्रदेश सरकार से रिपोर्ट मांगी है.
हादसे के बाद मुआवजे का मरहम
हादसे के बाद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने मरने वालों के परिजनों के लिए 2-2 लाख रुपये के मुआवजे का ऐलान कर दिया है. राज्य सरकार ने बतौर मुआवजा 3-3 लाख रुपये देने का फैसला किया है. पटना हादसे के बारे में जरूरी जानकारी के लिए हेल्पलाइन नंबर है: 0612-2219810
तस्वीरें: रावण दहन के बाद पटना में मची चीख-पुकार
अस्पताल के बाहर बिलख रहे परिजन
घायलों के परिजन अस्पताल के बाहर बिलख रहे हैं. जो अपनो को खो चुके हैं, वे शवगृह के बाहर रो रहे हैं. पूरा शहर ही आंसुओं के सैलाब में डूबा हुआ है. जिंदगी के मेले से मौत के मुहल्ले में तब्दील हुई गांधी मैदान की दर्दनाक दास्तान किसी को भी रुला देने के लिए काफी है. पूरी रात सदमे का साया पटना पर मंडराता रहा. जो लोग अपनों को खो चुके हैं, उनके लिए बीती रात का एक-एक पल काटना कयामत-सा लग रहा था. लोगों की चीख रह-रहकर शहर के सन्नाटे को चीर रही थी.
हादसे के बाद मातम मनाते परिजन
पलभर में गम में तब्दील हो गईं खुशियां
जिंदगी का जश्न चल रहा था. रावण जल रहा था. आतिशबाजी हो रही थी. तालिया बच रही थीं. लोगों के चेहरे दमक रहे थे. बच्चे खुश थे...लेकिन चंद मिनटों के बाद ही तस्वीर पूरी तरह से बदल गई. खुशी गम में तब्दील हो गई. जिंदगी का जश्न मौत के मातम में बदल गया. पटना के गांधी मैदान में हर तरफ चीख-पुकार मच गई. जिंदगी पर मौत कहर बन कर टूटी और इसी के साथ टूटकर तमाम जिंदगियां बिखर गईं.
हादसे के बाद कहां थी सरकार, कौन है असली गुनहगार?
प्रदेश सरकार ने दिए जांच के आदेश
बिहार की जीतन राम मांझी सरकार पर लगातार किए जा रहे जुबानी हमलों के बीच वरिष्ठ मंत्री विजय चौधरी ने कहा है कि जांच के बाद दोषियों पर जिम्मेदारी तय की जाएगी .
विजय चौधरी ने बीती रात संवाददाताओं से कहा, ‘कुछ लोगों का कहना है कि कुछ लोगों के एक नाले में गिर जाने के बाद यह घटना हुई. कुछ लोग बिजली के करंट से लैस एक तार के गिरने और कुछ लोगों की ओर से भीड़ में फैलाई गई अफवाह की बात कर रहे हैं. घटना की विस्तृत जांच के बाद ही सच्चाई सामने आ पाएगी.’
घायलों को इलाज के लिए PMCH ले जाया गया
बिखरे जूते-चप्पल बयां कर रहे थे दास्तान
भगदड़ के बाद गांधी मैदान व मुख्य सड़क पर दूर-दूर तक चप्पलें, जूते, खिलौने बिखरे पड़े थे. हादसे की कहानी बयां करने के लिए यही सब बाकी बचे थे. ये उन सब लोगों का सामान था, जो गांधी मैदान के दक्षिणी-पूर्वी छोर पर अपनी जान बचाने के लिए भागे चले गए थे और इनमें से कुछ सैंकड़ों की भीड़ के पैरों के नीचे रौंदे गए.
अपनों की चप्पलें तलाशते लोग
क्या और किस तरह फैली अफवाह...
प्रत्यक्षदर्शी मनीष कुमार ने बताया, ‘कुछ युवकों ने ‘भागो-भागो’ चिल्लाना शुरू कर दिया जिसके बाद लोगों में दहशत फैल गयी और भगदड़ मच गई. सैकड़ों महिलाएं और बच्चे गिर गए और अपनी जान बचाने के लिए भाग रही भीड़ के पैरों नीचे कुचले गए. मैं उन्हें बचा नहीं सका...वे मेरे परिवार की महिलाएं हो सकती थीं...मेरे बेटे-बेटियां हो सकती थीं.’
गांधी मैदान के दक्षिण की ओर यातायात और लोगों की आवाजाही को नियंत्रित करने के लिए कोई पुलिसकर्मी मौजूद नहीं था.
घटना के गवाह होने का दावा करने वाले आइसक्रीम बेचने वाले सुमन और उसके दोस्तों- रंजीत कुमार तथा अजय प्रसाद ने बताया कि कुछ युवकों ने ऊपर लटकते बिजली के तारों के गिरने की अफवाह फैलाई, एक लटकते तार से उलझकर एक बुजुर्ग व्यक्ति का गिर पड़ना तथा बाहर निकलती भीड़ के धक्कामुक्की करने समेत कई चीजों के चलते भगदड़ मच गई.
इलाज के लिए जख्मी को भर्ती करवाते पुलिसकर्मी
कहां-कहां रह गई कमी...
घटना के वक्त मौजूद लोगों के मुताबिक, गांधी मैदान के दक्षिण पूर्वी छोर पर स्थित सड़क पर जिला पुलिस और वीआईपी की गाड़ियां खडी होने के कारण सड़क पर लोगों के लिए बहुत कम जगह थी.
शहर के लोगों ने जिला प्रशासन पर आरोप लगाया कि दशहरा उत्सव समाप्त होने के बावजूद गांधी मैदान के निकासी द्वारों को लोगों के लिए नहीं खोला गया.
पूर्वी गांधी मैदान में दुकान चलाने वाले और दशहरा देखने आए मनीष कुमार ने दावा किया कि उसने अपनी आंखों के सामने भगदड़ मचते देखी, जिसने उसे भीतर तक हिला कर रख दिया है. उसने कहा, ‘वे दृश्य मुझे सालों तक डराते रहेंगे.’ कुमार ने बताया, ‘मैदान के 11 गेटों में से केवल दो निकासी के लिए थे और लोग बाहर निकलने के लिए एक दूसरे को रौंदे डाल रहे थे.’
भीड़ ने पुलिस पर उतारा गुस्सा
दशहरा उत्सव के बाद पटना के गांधी मैदान के बाहर मची भगदड़ में कई लोगों के जान गंवाने के बाद आक्रोशित लोगों की भीड़ ने पुलिस के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करते हुए एक यातायात चौकी में जमकर तोड़फोड़ की. भीड़ ने गांधी मैदान के दक्षिण-पूर्व में एग्जिीबिशन रोड की तरफ जाने के रास्ते में स्थित एक चौकी में तोड़फोड़ की.
बेबस लोग बेचैनी में कभी सरकार को कोस रहे हैं, कभी व्यवस्था को. जब सबसे थक जाते हैं, तो अपनी तकदीर पर बिलखने लगते हैं. यह दशहरा उन्हें जिंदगी भर का दर्द देकर चला गया है.
इस गम के लिए कौन है जिम्मेदार?
काफी देर बाद पहुंचे सीएम जीतन राम मांझी
बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी देर रात घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने हालात का जायजा लिया. अस्पाताल में भी जाकर मुख्यमंत्री ने लोगों से बात की.
जब लोगों को सरकार और सहायता की सबसे ज्यादा जरुरत थी, तो सूबे के मुख्यमंत्री को तो छोड़िए, उनका कोई सिपहसालार भी वहां मौजूद नहीं था. घटना कोई दूर-दराज की नहीं, राजधानी पटना की थी. इसके बावजूद न तो समय पर एम्बुलेंस, न ही कोई सहायता, न ही सरकार की ओर से कोई संजीदगी दिखी. आखिरकार देर रात मुख्यमंत्री आए.. हादसे का जायजा लेने की रस्म निभाई. हॉस्पीटल के भीतर गए, अधिकारियों से बात की और मीडिया के सामने आकर रटा-रटाया बयान दिया और फिर चले गए.
जब गांधी मैदान में रावण जल रहा था, तो मुख्यमंत्री गर्व से सीना ताने खड़े थे. शाम 6 बजकर 10 मिनट में रावण को 'निपटाकर' मुख्यमंत्री अपने गांव महकार के लिए रवाना हो गए, जो पटना से करीब 125 किलोमीटर है. उनकी रवानगी के 35 मिनट बाद जहां रावण जला, ठीक उसी मैदान के पास 33 जिंदगियां लापरवाही की भेंट चढ़ गईं. मुख्यमंत्री तो वक्त पर पहुंचे नहीं और उनके मंत्री जो सामने आए, उनका सारा ध्यान जीतन राम मांझी का बचाव करने में गुजर गया.
और उधर चलती रही पार्टियां
हैरान कर देने वाली खबर तो यह है कि हादसे की जगह से सटे मौर्या होटल में एक बड़े अधिकारी के बेटे के जन्मदिन की पार्टी चल रही थी, जिसमें बिहार के कई आला अधिकारी और नेता शामिल थे. खबरों के मुताबिक हादसे के दो घंटे बाद तक पार्टी चलती रही. मौतों से बेपरवाह अधिकारी और नेता पार्टी का लुत्फ उठाते रहे, लेकिन किसी ने रंग में भंग नहीं होने दी.
जब सरकार अपंग हो, प्रशासन का नामोनिशान न हो, तो समझा जा सकता है कि इतना बड़ा आयोजन कैसे हो रहा होगा. गांधी मैदान में सालों से रावण दहन होता रहा है. लाखों की भीड़ जमा होती रही है. इस बार करीब 5 लाख की भीड़ थी, लेकिन पूरा आयोजन भगवान भरोसे रहा. न इतनी बड़ी भीड़ के लिए कोई खास बंदोबस्त था, न ही ट्रैफिक के लिए कोई इंतजाम. सड़कों पर घुप्प अंधेरा पसरा था, लेकिन इसकी चिंता किसी को नहीं थी. जब बेसिक प्लानिंग नहीं थी, फिर आगे की कौन सोचे? ऐसी तैयारी की बात तो दूर-दूर तक नहीं सोची गई कि कोई हादसा हो भी सकता है या भगदड़ भी मच सकती है.