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सुप्रीम कोर्ट में लंबित वो 5 मामले, जो आगामी लोकसभा चुनाव में डाल सकते हैं असर

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद पर मंगलवार को अहम सुनवाई होने जा रही है. धार्मिक आस्था से जुड़ा यह मुद्दा इतना संवेदनशील है कि वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने एक पक्षकार की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय से मामले की सुनवाई 2019 लोकसभा चुनाव तक टालने की अपील तक कर दी थी. जाहिर है राम मंदिर पर फैसला देश की राजनीतिक दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएगा. कोर्ट में कुछ ऐसे मामले हैं जिनके फैसलों का असर अगले आम चुनाव में दिख सकता है.

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सुप्रीम कोर्ट (ANI)
सुप्रीम कोर्ट (ANI)

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अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को अहम सुनवाई होने जा रही है. धार्मिक आस्था से जुड़ा यह मुद्दा इतना संवेदनशील है कि वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने एक पक्षकार की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय से मामले की सुनवाई 2019 लोकसभा चुनाव तक टालने की अपील तक कर दी थी. जाहिर है राम मंदिर पर फैसला देश की राजनीतिक दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएगा. लेकिन इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में कुछ अन्य मामले भी हैं जिसके फैसलों का असर आगामी लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता है.

1. राम जन्मभूमि विवाद

सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ राम जन्मभूमि के विवादित हिस्से को तीन बराबर भाग में बांटने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई जारी है. हिंदू पक्षकारों की जल्द और प्रतिदिन सुनवाई की अपील के बावजूद यह मामला अपनी गति से कोर्ट में आगे बढ़ रहा है. इससे पहले अयोध्या में केंद्र सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि को लेकर इस्माइल फारुकी मामले पर कोर्ट ने अपना फैसला बरकरार रखा था. लेकिन यह भी कहा था कि उसका यह फैसला महज अधिग्रहण तक ही सीमित है और इसे आस्था से जोड़कर न देखा जाए.

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इसके साथ ही 1993 के भूमि अधिग्रहण कानून को चुनौती देने वाली याचिका भी लगी है. हालांकि केंद्र सरकार ने गैर विवादित अधिग्रहित भूमि उसके मालिकों को लौटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई है, लेकिन सरकार की अपील पर फिलहाल सुनवाई नहीं होने जा रही क्योंकि सरकार ने यह अपील असलम भूरे मामले में दाखिल की है, जो एक अलग मामला है.

2. अनुच्छेद 35-ए विवाद

जम्मू-कश्मीर ने राज्य की नागरिकता को लेकर विशेषाधिकार देने वाले अनुच्छेद 35ए की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में इस हफ्ते सुनवाई हो सकती है. पुलवामा हमले में 40 जवानों की शहादत के बाद तमाम राजनीतिक और मीडिया विमर्श में एक बार फिर अनुच्छेद 35ए और अनुच्छेद 370 हटाने की मांग ने जोर पकड़ा है. हालांकि जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने कोर्ट में सुनवाई से पहले अपना रुख साफ कर दिया है कि अनुच्छेद 35ए पर फैसला चुनी हुई सरकार ही लेगी.

उधर, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले घाटी में इस मामले को लेकर सियासी हलचल भी तेज हो गई है. यूं तो यह मामला सिर्फ जम्मू-कश्मीर से जुड़ा है और इस पर आने वाले फैसले का असर सिर्फ घाटी की जनता पर पड़ेगा. लेकिन कश्मीर का मामला इतना संवेदनशील है कि इससे जुड़ा कोई भी मुद्दा देश के अन्य हिस्सों में वोटों के ध्रुवीकरण में बड़ी भूमिका रखता है.

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3. राफेल विवाद

फ्रांस के साथ हुए 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के 14 दिसंबर, 2018 के फैसले की समीक्षा करने की मांग से जुड़ी 2 याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय 26 फरवरी (मंगलवार) को सुनवाई करेगा. पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने अर्जी लगाकर दावा किया है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सरकार द्वारा सीलबंद नोट में किए गए दावे जो कि बिल्कुल असत्य हैं, पर भरोसा किया. इन्होंने अपनी अपील में कहा है कि कोर्ट का फैसला रिकॉर्ड में त्रुटियों पर आधारित है और बाद में जो खबरें और सूचनाएं आई हैं, उन पर गौर न करना इंसाफ का गला घोटना है.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर, 2018 के अपने फैसले में न्यायालय की निगरानी में राफेल लड़ाकू विमान सौदे की सीबीआई जांच कराने को लेकर सभी याचिकाएं खारिज कर दी थी.

4. सबरीमाला विवाद

राम जन्मभूमि विवाद के बाद हिंदू धर्म की आस्था से जुड़ा एक अन्य मामला सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश से जुड़ा है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मंदिर के गर्भगृह में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की इजाजत दी थी. कोर्ट के इस फैसले के बाद केरल में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन देखने को मिला और महिला श्रद्धालुओं को रोकने के लिए कई जगहों से हिंसा की भी खबरें आईं.

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भारतीय जनता पार्टी और स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसे संस्कृति और परंपरा से खिलवाड़ बता चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कई हिंदूवादी संगठनों ने कोर्ट में पुनर्विचार याचिकाएं लगाई हैं, जिस पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है. पिछली सुनवाई में सबरीमाला का प्रबंधन देखने वाले त्रावणकोर देवासन बोर्ड सर्वोच्च न्यायलय में अपने पुराने रुख से पलट गया था. देवासन बोर्ड ने कहा था कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करता है और मंदिर में प्रवेश को लेकर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए.

5. सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण

सामान्य वर्ग की श्रेणी में आर्थिक आधार पर सरकारी नौकरी और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण के लिए संसद द्वारा पारित 124वें संविधान संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह संशोधन संविधान द्वारा दिए गए आरक्षण की मूल भावना का उल्लंघन करता है.

हालांकि पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य वर्ग के गरीबों आरक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. लेकिन याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर जवाब भी मांगा था. याचिका में मांग की गई थी सामान्ग वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था पहले तय की गई 50 फीसदी आरक्षण की सीमा के भीतर ही की जाए. इसके अलावा यह भी कहा गया है कि इंदिरा साहनी केस में 9 जजों की बेंच ने कहा था कि एकमात्र आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता.

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बता दें कि सामान्य वर्ग को आरक्षण देने वाला 124वां संविधान संशोधन विधेयक संसद से तीन चौथाई बहुमत से पारित हुआ था. यह विधेयक एससी/एसटी एक्ट को लेकर देशभर के सर्वणों में नाराजगी से जोड़ कर देखा जा रहा था.

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