मंगलवार से शुरू हो रहा संसद का मानसून सत्र केंद्र सरकार के लिए मुश्किल भरा हो सकता है. कांग्रेस ने बीते कुछ महीनों में मोदी सरकार के खिलाफ मुखर होने की कोशिश की है. राहुल गांधी की अगुवाई में पार्टी अब संसद के भीतर भी बीजेपी को घेरने की तैयारी में है. जानकार मानते हैं कि मुख्य विपक्षी दल का मूड सदन में सरकार के लिए बिल्कुल भी सहयोगी नहीं रहने वाला.
आपको बताते हैं कि संसद के मानसून सत्र में कौन से मुद्दे छाए रह सकते हैं:
1. व्यापम केस: बीजेपी के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन चुका है मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला. जांच अब सीबीआई के हवाले है और कई बीजेपी नेताओं समेत खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के परिवार पर आरोपों के छींटे हैं. कांग्रेस शिवराज के इस्तीफे की मांग पर अड़ी है. मौजूदा समय में यही वह मुद्दा है जो कांग्रेस की मुट्ठी का सबसे ताकतवर हथियार और बीजेपी की सबसे बड़ी कमजोरी बन चुका है.
2. लैंड बिल: नई सरकार के लैंड बिल को लेकर काफी समय से विवाद जारी है. कांग्रेस अपने समय में लाए लैंड बिल को बेहतर मानती है और इस बिल को 'किसान विरोधी' बता रही है. इस बिल पर बहस के साथ कांग्रेस किसानों की बदहाली और आत्महत्याओं का मुद्दा भी सदन के पटल पर रखने की कोशिश करेगी. हालांकि सपा ने सोमवार को हुई सर्वदलीय बैठक में कुछ नरमी के संकेत जरूर दिए हैं. सपा, बीएसपी और टीएमसी के सांसदों का 'फ्लोर मैनेजमेंट' ही मोदी के लैंड बिल की नैया पार लगा सकता है.
3. ललित मोदी प्रकरण: मनी लॉन्ड्रिंग केस में फंसे आईपीएल संस्थापक ललित मोदी को सरकारी मदद का मुद्दा भी मोदी सरकार के गले की हड्डी बन गया है. आरोप विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर हैं. सुषमा के खिलाफ विपक्ष के तेवर हाल के दिनों में कुछ नरम पड़े हैं, लेकिन वसुंधरा के इस्तीफे पर कांग्रेस अड़ी हुई है. संसद के शोरगुल में यह मुद्दा भी नए सिरे से जवान हो सकता है.
4. पंकजा मुंडे पर भ्रष्टाचार के आरोप: महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार में महिला एवं बाल कल्याण विभाग की मंत्री पंकजा मुंडे का मुद्दा भी कांग्रेस सदन में उठाएगी. पंकजा पर एकात्मिक बाल विकास सेवा योजना के तहत बिना टेंडर दिए 206 करोड़ रुपये का सामान खरीदने का आरोप है.
5. वन रैंक, वन पैंशन: पूर्व सैनिकों की 'एक रैंक, एक पेंशन' की मांग लंबे समय से लंबित पड़ी है, लेकिन वादा पूरा न कर पाने के लिए मोदी सरकार को ज्यादा आलोचना झेलनी पड़ रही है. पूर्व सैनिकों की कुछ संस्थाओं ने 24-25 जुलाई को दिल्ली कूच का ऐलान भी कर दिया है, जिसकी वजह से संसद में इसकी धमक भी सुनाई दे सकती है.