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किसान हुए उग्र तो केजरीवाल की राह पर शिवराज, 'अनशन कार्ड' के ये 5 संभावित परिणाम

किसान आंदोलन मध्य प्रदेश में चरम पर है. विरोधी पार्टियां भी उसे भुनाने की कोशिश में लगी हुई हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री का यह फैसला अजीबोगरीब है. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक यह मंदसौर हिंसा के बाद पैदा हुई जनसंवेदना को खींचने का जरिया मात्र है.

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शिवराज सिंह चौहान
शिवराज सिंह चौहान

आपको दिल्ली में आप सरकार का वह वाक्या याद ही होगा जिस समय केजरीवाल अपने पद का कामकाज छोड़ अनशन पर बैठ गए थे. केजरीवाल ने दिल्ली के कनॉट प्लेस में एक विदेशी महिला से हुए गैंग रेप को लेकर दिल्ली पुलिस और गृह मंत्रालय के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. उस वक्त केजरीवाल का सोशल मीडिया पर जमकर मजाक उड़ा था. केजरीवाल के लिए वह दौर इतना बुरा था कि उन्होंने खुद को 'अराजकतावादी' तक कह डाला था. खैर आज इस बात की चर्चा इसलिए क्योंकि आज एक और सीएम ने अपने ही शासनकाल में अनशन की घोषणा कर दी है. वे कोई और नहीं किसान आंदोलन की आंच में घिरे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं.

शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार शाम घोषणा की कि वे शनिवार से तब तक अनशन पर रहेंगे जब तक किसान आंदोलन शांत नहीं हो जाता और अनिश्चितकालीन अनशन करूंगा. शिवराज सिंह चौहान भोपाल के भेल दशहरा मैदान में अनशन करेंगे. उन्होंने बताया कि वे इस दौरान ना बल्लभ भवन में कोई काम करेंगे और ना ही सीएम हाउस से, अपने काम भी वे दशहरा मैदान से ही करेंगे. अपने बयान में शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मेरे उपवास के दौरान प्रदेश का कोई कामकाज नहीं रुकेगा. सरकार के सारे काम दशहरा मैदान से ही निपटाए जाएंगे. मेरे उपवास के दौरान किसानों से चर्चा के सभी रास्ते खुले रहेंगे.


किसान आंदोलन मध्य प्रदेश में चरम पर है. विरोधी पार्टियां भी उसे भुनाने की कोशिश में लगी हुई हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री का यह फैसला अजीबोगरीब है. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक यह मंदसौर हिंसा के बाद पैदा हुई जनसंवेदना को खींचने का जरिया मात्र है. शिवराज सिंह चौहान अपने अनशन से क्या साबित कर पाते हैं, उससे क्या हासिल होता है यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन, मध्य प्रदेश के कुछ प्रबुद्ध वर्गों के बातचीत के आधार पर शिवराज के इस 'अनशन कार्ड' से कुछ खास फायदा होता नजर नहीं आता.

ये हो सकते हैं 'अनशन कार्ड' के संभावित परिणाम

- और आक्रामक होगी कांग्रेस
इस बात की तस्दीक शिवराज की घोषणा के तुरंत बाद कांग्रेस ने कर दी है. कांग्रेस ने इसे नौटंकी बताया है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री किसानों की समस्याएं दूर करने के बजाए उपवास की नौटंकी कर रहे हैं. अगर उनको कुछ करना ही है तो किसानों के बीच जाकर उनके दुख दर्द को दूर करें.

नेता प्रतिपक्ष ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "एक बार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान वर्ष 2011 में ऐसी ही नौटंकी करने के लिए भेल दशहरा मैदान में बैठने वाले थे. तब संवैधानिक संकट खड़ा होने पर उन्होंने अपना कदम वापस खींच लिया था, तब तक उनकी नौटंकी की व्यवस्था पर सरकार के पचास लाख रुपये खर्च हो चुके थे."

- कहीं और बिगड़ न जाए हालात
राज्य में किसान आंदोलन चरम पर है. हिंसा की आग राज्य की राजधानी भोपाल तक पहुंच चुकी है. ऐसे में मुख्यमंत्री का खुद अनशन पर बैठ जाना स्थिति को थोड़ा बेकाबू भी कर सकता है. नेता प्रतिपक्ष ने भी 2011 की घटना याद दिलाई है जब 'संवैधानिक संकट' आ खड़ा हुआ था.

- नर्म हो सकते हैं किसानों के तेवर
प्रदेश के मुख्यमंत्री के किसानों के पक्ष में खुद अनशन पर बैठने की बात से किसान आंदोलन थमने के भी आसार हैं. लोगों में शिवराज सिंह चौहान की छवि काफी बेहतर है. ऐसे में शुक्रवार की उनकी प्रेस कांफ्रेंस में आग की तपिश कम करने में फायदेमंद साबित हो सकती है.

- कमजोर हो सकती है शिवराज की छवि
मध्य प्रदेश की सीएम कुर्सी पर सबसे ज्यादा समय तक काबिज रहने का रिकॉर्ड शिवराज सिंह काफी पहले ही बना चुके हैं. आपको बता दें कि वे लगातार तीन बार मध्य प्रदेश की सत्ता संभाल चुके हैं. अगले साल फिर चुनाव होने हैं. ऐसे में शिवराज सिंह चौहान के लिए किसान आंदोलन काफी भारी भी पड़ सकता है. अपने आप को किसान हितैषी बताने वाले शिवराज सिंह चौहान का यह 'अनशन कार्ड' उसी छवि को बचाने की ही कोशिश है.

- बीजेपी को तमाम राज्यों में नुकसान की गुंजाइश
मंदसौर में किसानों पर चली गोलियां और लाठियां सिर्फ मध्य प्रदेश की सीमा में नहीं रुकने वाली हैं. जाहिर है कि यह आंदोलन बीजेपी को हर राज्य में चुनौती देगा. विपक्षी दल इसे मुद्दा बनाकर मोदी सरकार के साथ-साथ बीजेपी को भी निशाना बनाएगी.

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