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श्रीलंका में महिंदा राजपक्षे का राज खत्म होने की 5 वजह

श्रीलंका में महिंदा राजपक्षे का दशक शुक्रवार को खत्म हो गया. वे अधिकारिक घर 'टेंपल ट्रीज़' से बाहर आ गए. राष्ट्रपति चुनाव में उनकी चार लाख वोटों से हार हुई.

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एक दशक तक श्रीलंका में किसी राजा की तरह राज किया राजपक्षे ने
एक दशक तक श्रीलंका में किसी राजा की तरह राज किया राजपक्षे ने

श्रीलंका में महिंदा राजपक्षे का दशक शुक्रवार को खत्म हो गया. वे अधिकारिक घर 'टेंपल ट्रीज़' से बाहर आ गए. राष्ट्रपति चुनाव में उनकी चार लाख वोटों से हार हुई. यह पराजय मिली दो महीने पहले तक सहयोगी रहे मैत्रीपाला सिरिसेना से. एलटीटीई के आतंक से इस द्वीपीय देश को मुक्ति दिलाने वाले राजपक्षे को जनता ने क्यों नकार दिया, आइए जानते हैं:

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1. तमिल और मुस्लिमों का एकतरफा विरोध. 2008 में एलटीटीई के सफाए के दौरान राजपक्षे पर आरोप लगा कि उनकी जानकारी में तमिलों का नरसंहार हुआ. इसके बाद देश में कई बहुसंख्यक सिंघली और मुसलमानों के बीच दंगे हुए. कई मुस्लिम मारे गए, लेकिन सिंघली दंगाइयों पर कार्रवाई नहीं हुई. एन चुनाव से पहले सरकार का हिस्सा रहे मुस्लिम और तमिल नेताओं ने राजपक्षे से किनारा कर लिया. ऐसे में अल्पसंख्यकों ने राजपक्षे से जमकर बदला लिया. उनके खिलाफ वोट देकर.

2. राजपक्षे की सरकार में सबसे ज्यादा ताकतवर उनका परिवार था. एक भाई रक्षा और तो दूसरा आर्थिक मंत्रालय संभाल रहा था, जबकि तीसरा भाई संसद का अध्यक्ष रहा. राजपक्षे के पुत्र नमल सांसद रहे, लेकिन उन्हें राजपक्षे के उत्तराधिकारी होने का ही सम्मान प्राप्त था. ये भाई-भतीजावाद सरकार के अन्य साथियों को तो नगंवारा था ही, इसकी झलक लोगों में भी दिखाई दे रही थी.

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3. राजपक्षे के तानाशाहीपूर्ण रवैये को लेकर गुस्सा. सरकार ही नहीं, आम लोगों में भी. राजपक्षे किसी राजा की तरह रह रहे थे. उन्हें पटखने देने के लिए पूरा विपक्ष एकजुट हो गया और मजबूत विकल्प देने का वादा किया.

4. राजपक्षे सरकार पर गंभीर आरोप लगे. आखिरी वक्त पर सरकार से अलग हुए लोगों ने उन आरोपों को और हवा दी. मीडिया को तथ्य उपलब्ध कराए. वोटरों में सत्ता के प्रति गुस्सा बढ़ता गया.

5. दस साल से सत्ता पर‍ निर्विरोध काबिज राजपक्षे का सबसे मजबूत वोटबैंक ग्रामीण सिंघली थे. एलटीटीई के सफाए पर पिछले चुनाव में उन्हें शहरों से खूब समर्थन मिला. लेकिन पिछले पांच साल में उन्होंने सिर्फ उस एक उपलब्धि के भरोसे सरकार चलाई. गांवों में तो ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं हुई, लेकिन शहरों में महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर लोगों में असंतोष बढ़ता गया. कुल मिलाकर अल्पसंख्यक तमिल-मुस्लिम और शहरी सिंघली वोटरों ने राजपक्षे की लंका लगा दी.

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