क्या स्टेट कैडर के आईएएस अधिकारियों को दिल्ली रास नहीं आ रही? केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद के आंकड़े कुछ ऐसा ही इशारा कर रहे हैं. मई 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से अबतक कम से कम 56 आईएएस अधिकारी केंद्र की पदस्थापना समय से पूर्व छोड़कर अपने प्रादेशिक कैडर में वापस लौट चुके हैं. इसके उलट केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर आने वाले अधिकारियों की संख्या इस दौरान महज 4 रही.
वापस जाने वालों में ज्यादातर सीनियर
अपने स्टेट कैडर में जल्द वापस जाने वाले अधिकारियों में ज्यादातर सीनियर रैंक के हैं यानी संयुक्त सचिव या उससे ऊपर के पद के. इससे पहले इस तरह के मामले कम देखने को मिलते थे.
पहले कम थे वापसी के मामले
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक 2013 में ऐसा करने वाले आईएएस अधिकारियों की संख्या महज 3 थी. जबकि अगस्त से दिसंबर 2012 के बीच ऐसा कदम उठाने वाले अधिकारियों की संख्या महज 1 थी. हालांकि, जनवरी से मई 2014 के बीच 13 अधिकारी वापस अपने स्टेट कैडर में लौट गए. ये वौ दौर था जब लोकसभा चुनाव की तैयारियां चल रही थी जिसका परिणाम केंद्र की सत्ता में बड़े दलगत बदलाव के रूप में सामने आया.
कामकाज के तरीके में बदलाव
हालांकि, डीओपीटी के सूत्र इस बात से इंकार करते हैं कि इसका कारण अधिकारियों के बीच मोदी सरकार के साथ काम करने को लेकर किसी प्रकार की अरूचि है. क्योंकि मोदी सरकार का ज़ोर प्रशासनिक कामकाज में व्यापक बदलाव पर है. इसका कारण ये हो सकता है कि राज्यों में उनके कैडर में अधिकारियों को बड़ी जिम्मेदारी मिली हो.
आईएएस नॉन आईएएस अधिकारियों का मुद्दा
डीओपीटी के आंकड़े बताते हैं कि वापस जाने वाले 7 आईएएस अधिकारियों ने अपने राज्य में जाकर मुख्य सचिव का पद संभाला. हालांकि, राज्यों के कैडर से बड़ी संख्या में अधिकारी इन जिम्मेदारियों को संभालने को इक्छुक दिख रहे हैं. लेकिन अधिकारियों का पैनल बनाने, उनमें आईएएस अधिकारियों और नॉन-आईएएस अधिकारियों की पदास्थापना जैसे मुद्दों के कारण इन पदों को भरने में देरी हो रही है.