दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की तस्वीर चंद दिनों में ही नहीं बदल जाती. इसमें लंबा वक्त लगता है, बुनियादी सोच लगती है और अपने मकसद को हासिल करने वाला जुनून की भी जरूरत होती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को बने 60 दिन हुए हैं, लेकिन 60 की बिसात पर मोदी ने अपने दस सपनों को, दस मिशन को अंजाम तक पहुंचाने का इशारा कर दिया है. और इसकी शुरुआत होती है एक सधी हुई, आत्मविश्वासी और गैरतमंद विदेश नीति से.
कूटनीति की हथेलियों पर भारत की विदेश नीति लिखने वाले नए नियंता का नाम है नरेंद्र मोदी. 64 साल के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नई दुनिया का सपना देखा है. उस दुनिया का, जिसे अब कोई चौधरी नहीं चलाएगा, बल्कि सारे पंच मिलकर फैसला लेंगे. मोदी के कदमों से चलता हिन्दुस्तान इस दिशा में बढ़ चुका है. वो हिंदुस्तान, जो न आंख झुकाकर जिएगा, न उठाकर देखेगा, बस आंख मिलाकर बात करेगा.
मोदी ने सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों से 60 महीने मांगे थे, अभी तो साठ दिन हुए हैं. लेकिन वो कहते हैं ना होनहार बिरवां के होत चिकने पात. मोदी ने विदेशी रिश्तों की पहल घर से शुरू की. घर का दरवाजा पहली बार पड़ोसी के लिए खोला और पडोस का दिल जीतते हुए दुनिया में एक नई व्यवस्था के लिए चल पड़े. हिंदुस्तान की धरती से बाहर बतौर प्रधानमंत्री मोदी का पहला कदम भूटान में पड़ा.
डिप्लोमेसी की उलटबांसी को मोदी ने पलट दिया. कहां तो प्रधानमंत्री का सूटकेस अकसर बड़े देशों के लिए उठता था, लेकिन मोदी ने तो भूटान का चुनाव करके बता दिया कि एक तीर से वो कई निशान करने में माहिर हैं. भूटान के जरिए मोदी ने सार्क को मजबूत करने की कोशिश की. सार्क में चीनी गतिविधियों को रोकने के लिए भूटान से नया रिश्ता एक अचूक हथियार हो सकता है. मोदी ने विदेश नीति को किसी ताकतवर देश का पिछलग्गू बनाने से पीछा छुड़ा लिया.
मोदी ने भूटान से पहली बार ये संदेश दे दिया कि चीन की चाल से वो वाकिफ हैं, लेकिन कोई भी रास्ता अख्तियार करेंगे तो जरा संभल के. दुनिया के रंगमंच पर मोदी ने अपनी भूमिका तय कर ली है. भारत अब पूरब का एक ऐसा देश नहीं होगा, जो पश्चिम से जुड़ने की बेताबी दिखाता रहेगा. बल्कि ब्राजील में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान अपनी भाव-भंगिमाओं से बता दिया कि नई दुनिया के मध्य में हिन्दुस्तान खड़ा होगा.
ब्राजील के फोर्टलेजा में मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात कर चीन के साथ भी एक नए रिश्ते की आहट सुना दी. हिंदी चीनी भाई-भाई का दौर नए कलेवर में लौटने लगा है. मोदी ने चीन से रिश्ता जोड़ा तो ब्रिक्स के जरिए एक नई दुनियावी अर्थव्यवस्था का खाका भी खींचा.
ब्रिक्स के पांचो देशों- ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका ने मिलकर 100 अरब डॉलर की साझा पूंजी लगाई और एक ब्रिक्स बैंक बना लिया. इस ब्रिक्स बैंक को चीन के शहर शंघाई में बनाया जा रहा है, जिसका पहला प्रमुख हिन्दुस्तानी होगा, पूरे 6 साल के लिए.
अभी दो महीने बीते हैं लेकिन मोदी ने वसुधैव कुटुंबकम के नारे के साथ अपनी विदेश नीति की झलक दिखा दी है. प्रधानमंत्री ने 60 दिनों में ही अपनी विदेश नीति की झलक तो दिखला दी, लेकिन असली विदेश नीति को तो पड़ोसी पाकिस्तान पर आजमाया जाना है. देश की बागडोर संभालते ही मोदी ने पाक की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया. लेकिन नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा, एक स्टेट्समैन की तरह मोदी ने संयम दिखाया और अब दोनों देशों के बीच विदेश सचिव स्तर की बातचीत शुरू होने जा रही है.
अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क के बहाने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को बुलाकर मोदी ने साफ-साफ संकेत दे दिया था कि भारत-पाकिस्तान अब रिश्ते की नई ट्रैक पर साथ-साथ दौड़ेंगे. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी ने कहा था कि हम दोस्त बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं. जिस पड़ोसी के साथ रिश्तों में अक्सर तीखे तेवर बने रहते हैं, उसे दोस्ती की पटरी पर लाने की कोशिश नरेंद्र मोदी ने की. कूटनीति का दायरा इतना बढ़ा कि निजी रिश्ते तक बनने लगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की मां के लिए तोहफे में शॉल भेजा तो जवाब में मोदी की मां के लिए साड़ी आई.
हालांकि अभी तक पाकिस्तान ने दोस्ती के बढ़ाए हाथ से अपना हाथ उस गर्मजोशी से नहीं मिलाया है, जिसकी उम्मीद थी. नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठ जारी है और भारतीय जवानों की हत्या का सिलसिला भी. लेकिन पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने की कड़ी में मोदी सरकार ने कश्मीरी पंडितों का सवाल उठाकर साफ कर दिया कि जम्मू-कश्मीर वहां के निवासियों के लिए हमेशा रहेगा.
इस बीच पाक अधिकृत कश्मीर का नाम पीओके की जगह पीओजेके करने का भी प्रस्ताव आ गया, क्योंकि पाकिस्तान ने तो कश्मीर ही नहीं, जम्मू के भी एक हिस्से पर कब्जा कर रखा है. दो महीने में मिली झलक से आगे सवाल ये है कि क्या पाकिस्तान 26/11 के गुनहगार हाफिज सईद पर कोई कार्रवाई करेगा. क्या पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवाद पर रोक लगाएगा. और क्या चीन के साथ पाक अधिकृत कश्मीर में जैसी गतिविधियां चला रहा है, उसको रोकेगा.
इन सबके बीच भारत पाकिस्तान के बीच सचिव स्तर की बातचीत 25 अगस्त से इस्लामाबाद में शुरू होगी. अभी तो साठ दिन हुए हैं. साठ महीने में 58 महीने बाकी हैं. वो 58 महीने तय करेंगे कि पाकिस्तान से रिश्ते किस दिशा में जाते हैं.
मुसीबतें देश में भी कम नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राज-पाट संभाले दो महीने हो गए हैं. मोदी की कोशिश पहले दिन से ही मजबूत बुनियादी ढांचा तैयार करने की है. सड़क मंत्रालय से लेकर शहरी विकास मंत्रालय इस मिशन में लग चुके हैं.
विदेशी मोर्चे पर पाकिस्तान एक मुसीबत है तो घरेलू मोर्चे पर महंगाई. महंगाई की लपटों में झुलसते देश ने मोदी में अपने लिए एक मसीहा देखा था. 60 दिनों में महंगाई तो कम नहीं हुई, लेकिन उसका मुकम्मल इलाज ढूंढ़ने के लिए मोदी सरकार चार कदम आगे जरूर बढ़ चुकी है. 26 को शपथ ली, 27 को साउथ ब्लॉक स्थित अपने दफ्तर जाकर काम-काज संभाला और 28 को मोदी कैबिनेट का पहला फैसला आया, मानो अच्छे दिनों की पहली किस्त आई हो.
काले धन पर बनी SIT
28 मई 2014 को मोदी कैबिनेट ने विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने के लिए SIT का गठन कर दिया. एक अमेरिकी कंपनी के मुताबिक, विदेशों में भारत का 29 लाख 70 हजार करोड़ रुपये काला धन जमा है. इसलिए मोदी के पीएम बनने के बाद उनकी कैबिनेट ने पहला फैसला एसआईटी बनाने का ही लिया, जिसमें पहली कामयाबी ये मिली कि स्विस बैंक में काले धन का कुछ पता चलने लगा है. लेकिन दो महीने बाद ठंडा पड़ता मामला देख बीजेपी के ही नेताओं को लगने लगा है कि पता नहीं काला धन आएगा भी या नहीं. वित्त मंत्री जैसे-तैसे दिलासा दिला रहे हैं.
महंगाई से पार पाने के मजबूत उपाय
एक तरफ काले धन का मसला है तो दूसरी तरफ उस महंगाई का, जिससे पूरा देश कराह रहा है. 2 मार्च 2011 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गुजरात के तब मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को वर्किंग ग्रुप ऑन कंज्यूमर अफेयर्स का अध्यक्ष बनाया था. मनमोहन ने मोदी से महंगाई रोकने का सुझाव मांगा था. मोदी ने 64 उपायों वाली रिपोर्ट पेश कर दी, लेकिन वो रिपोर्ट ठंडे बस्ते में चली गई. मोदी ने उस रिपोर्ट पर काम शुरू कर दिया है.
खाने की जरूरी चीजों की कीमतों पर काबू पाने के लिए प्राइस स्टेबलाइजेशन फंड बनाया जाए, ताकि राज्य सरकारों की मदद की जा सके. दिलचस्प ये कि इस बात का जिक्र बीजेपी ने घोषणापत्र में भी किया था. FCI को तीन हिस्सों में बांटने की बात है, ताकि कामकाज तेज हो सके और जिम्मेदारी ठीक से तय हो सके. कालाबाजारी और जमाखोरी को गैरजमानती अपराध की श्रेणी में रखा जाए और इसके लिए सजा भी बढ़ाई जाए. कोआपरेटिव को बढ़ावा देकर कृषि बाजार को मजबूत किया जाए, जिससे किसानों को अच्छी कीमत मिले और बिचौलियों से छुटकारा मिले.
बिजली ने दिया मोदी सरकार को झटका
महंगाई के बाद मोदी सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती बिजली संकट है. मोदी सरकार का दावा है कि वो पूरे देश में चौबीसों घंटे बिजली का इंतजाम कर देगी और इसके लिए वो गुजरात मॉडल पर ही काम कर रही है.
कहां तो उजाले का वादा था और कहां देश की राजधानी ही अंधेरे में डूब गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताजपोशी के तुरंत बाद ही दमकते बहुमत वाली सरकार को बिजली का झटका लगा. जैसे-तैसे सरकार इससे निकली, लेकिन इस दमखम के साथ कि पूरे देश को चौबीसो घंटे बिजली देंगे.
कभी कोयले का रोना तो कभी कोई दूसरी मुसीबत. देश के कई हिस्सों में अब भी बिजली सपने में ही आती है. मोदी उस सपने को सच करना चाहते हैं, बिल्कुल गुजरात मॉडल पर. बिजली और विकास के मॉडल सीखने के लिए दिल्ली से हुक्मरान उस गुजरात में गए, जहां मोदी ने 13 साल तक राज किया.
ज्योतिग्राम योजना की शुरुआत 2003 में हुई. इसे पहले 8 जिलों में शुरू किया गया. नवंबर 2004 तक इसे पूरे सूबे में लागू कर दिया गया. गुजरात सरकार का दावा है कि 2006 तक गुजरात के 90 फीसदी हिस्से में 24 घंटे बिजली रहने लगी. करीब 18 हजार गांव लालटेन युग से बाहर निकल चुके थे. खेती के लिए सप्लाई देने वाले फीडर को रिहाइशी और व्यावसायिक उपभोग की बिजली से अलग कर दिया गया.
देश बस गुजरात भर नहीं है, यहां तमाम ऐसी दिक्कते हैं, जिनसे पार पाए बगैर पूरे हिन्दुस्तान को बिजली पहुंचाना आसान नहीं होगा. मोदी सरकार के तो 60 दिन गुजरे हैं, बिजली की चमक देशभर में पैदा करने के लिए अभी और वक्त लगेगा. सरकार ने बिजली का उत्पादन बढ़ाने के लिए कई उपाय करने का भी दावा किया है. लेकिन आम लोगों की समझ में आने वाले रोडमैप और हर रात के अंधेरे को हरने वाली बिजली का इंतजार अभी बाकी है.
निर्मल-अविरल गंगा का सपना
प्रदूषण से गंगा मर रही है. मां गंगा को बचाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता में इतना ऊपर है कि इसके लिए बाकायदा एक मंत्रालय भी बना दिया. गंगा के लिए पहले आम बजट में लंबी चौड़ी योजना भी बन गई है. बस इंतजार उस योजना को उसके खूबसूरत अंजाम तक पहुंचाने का है.
गंगा की जिन लहरों पर जिंदगी अठखेलियां खाती थीं, वो आज अपनी ही पीड़ा में बही जा रही है. हर लहर के साथ गंगा का दर्द उमड़ता है. गंगोत्री से नीचे उतरते ही उसके निर्मल जल में प्रदूषण का जहर घुलने लगता है. उस गंगा को एक भगीरथ की जरूरत थी, मोदी सरकार उस काम में जुटी है.
देश की कमान संभालने के हफ्ते भर बाद ही मोदी ने गंगा कल्याण का रोड मैप तैयार कर लिया. गंगा की स्वच्छता से लेकर उसके किनारे की साफ-सफाई तक के लिए रोप मैप तैयार है. ब्लू प्रिंट तैयार करने वाली एक्शन कमेटी में मोदी ने पांच मंत्रियों को जोड़ा.
उमा भारती: नदी विकास और जल संसाधन मंत्री
नितिन गडकरी: शिपिंग और परिवहन मंत्री
प्रकाश जावडेकर: सूचना एंव प्रसारण राज्य मंत्री
पीयूष गोयल: कोयला एंव उर्जा मंत्री
श्रीपद नाइक: पर्यटन मंत्री
और जब पहला बजट आया तो उसमें गंगा के उद्धार के लिए 6300 करोड़ रुपये का नमामि गंगे प्लान रखा गया. गंगा को दुरुस्त करने के लिए करीब 2037 करोड़ रुपये का प्लान है, जबकि गंगा में जहाज चलाने और टूरिज्म से जोड़ने के लिए 4200 करोड़ रुपये का. वहीं घाटों की मरम्मत और सजाव-श्रृंगार के लिए 100 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है.
साठ दिन में मोदी सरकार ने गंगाजल में हलचल तो ला दी है. लेकिन लोककथाओं के मुताबिक शिव की जटाओं से निकलकर धरती पर जैसी गंगा उतरी थीं, वैसी गंगा को पाने के लिए भगीरथ प्रयास तो करना ही पड़ेगा.
तीर्थयात्रा और टूरिज्म को बढ़ावा
ये सही है कि नरेंद्र मोदी के सपनों की उड़ान चांद-तारों के पार जाती है. वो चाहते हैं कि विज्ञान और तकनीक में भी हिन्दुस्तान सिरमौर बने. लेकिन हिन्दुस्तान की धार्मिक आस्था को देखते हुए वो तीर्थ स्थलों को भी सड़क और रेल से जोड़ने में लगे हैं. कोशिश शुरू हो चुकी है, बस कामयाबी का इंतजार है.
देश में हर हिन्दू की तमन्ना होती है कि वो अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार चार धाम की यात्रा करे. अगर यह तीर्थयात्रा आराम से हो जाए तो सोने पर सुहागा. इस चाहत को पूरा करने का बीड़ा मोदी सरकार ने उठाया है. मोदी राज में इसकी शुरुआत वैष्णों देवी के दरबार तक ट्रेन पहुंचने से हुई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली से कटरा जाने वाली ट्रेन को हरी झंडी दिखाकर माता के दर तक पहुंचने का रास्ता आसान बना दिया.
त्रिकुटा पहाड़ियों पर बने स्टेशन का नाम श्री माता वैष्णो देवी कटरा स्टेशन रखा गया है. स्टेशन पर तीन प्लेटफार्म बनाए गए हैं. कटरा पहुंचने वाली ट्रेन 10 छोटी सुरंगों और 50 से भी ज्यादा छोटे-बड़े पुलों से होकर गुजरती है. लेकिन ये तो शुरुआत भर है. मोदी ने देश के ज्यादातर तीर्थ स्थानों को रेल से जोड़ने की योजना बनायी है.
सेतुबंध रामेश्वरम से एक टूरिस्ट ट्रेन बैंगलूर, चेन्नई, अयोध्या, वाराणसी और हरिद्वार होते हुए दूसरे कई तीर्थ स्थलों तक पहुंचाने का इरादा है. वही स्वामी विवेकानंद के नाम से एक ट्रेन चलाने का भी एलान हुआ, जो उस महान संत के नैतिक विचारों को जन-जन तक पहुंचाएगी. तीर्थयात्रा को टूरिस्ट प्लेस की तरह विकसित करने के लिए रेल बजट में 100 करोड़ रुपये का प्लान बना.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी भाषणों में भी बार-बार तीर्थ को टूरिज्म से जोड़ने की बात की थी. अब सत्ता में आ गए तो अपने शुरुआती साठ दिनों में ही मोदी तीर्थस्थल वाले स्टेशनों पर वीआईपी लाउंज, गाइड काउंटर, एस्केलेटर, लिफ्ट, पार्किंग जैसी सुविधाएं चाहते है. फिलहाल तो 100 करोड़ से सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों का दिल जीतने की कोशिश शुरू हुई है.
बुलेट ट्रेन का सपना अब होगा अपना
प्रधानमंत्री का एक बड़ा सपना हिन्दुस्तान में भी बुलेट ट्रेन दौड़ाना है. मोदी सरकार के पहले रेल बजट में इसका एलान भी हो गया. लेकिन बुलेट के दौड़ने से पहले मोदी के सामने रेलवे के मौजूदा हालात को सुधारना है, जिसमें ना तो कोई ट्रेन पटरी से उतरे और ना ही कोई मानव रहित क्रॉसिंग हो.
गोली की तरह छूटने वाली इस बुलेट ट्रेन का सपना तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आंखों में ना जाने कब से बसा है. प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने बुलेट ट्रेन को सच करने की दिशा में पहला कदम तब बढ़ाया जब रेल मंत्री सदानंद गौड़ा ने अपने बजट में इसकी खास चर्चा की.
दूसरी रेल गाड़ियों की छोडिए, जिस राजधानी और शताब्दी को हिन्दुस्तानी रेलवे की शान और जान माना जाता है, वो भी 150 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ लगाने के बाद हांफ जाती हैं. जबकि बुलेट ट्रेन दौड़ती है तो 250 किलोमीटर से कम रफ्तार पर चलने के लिए तैयार ही नहीं होती. जिस बुलेट ट्रेन को चीन से लेकर जापान तक ने अपने यहां रोजमर्रा का साधन बना रखा है, उसे मोदी हिन्दुस्तान का भी सच बनाने में जुटे हैं.
दिल्ली से आगरा के बीच देश की सबसे तेज रफ्तार वाली सेमी हाई स्पीड ट्रेन का ट्रायल तो हो गया, जिसकी अधिकतम रफ्तार 160 किलोमीटर प्रति घंटा है. लेकिन बुलेट ट्रेन तक पहुंचने के लिए साठ दिन नहीं, साठ महीने का समय भी कम पड़ सकता है.
एक अनुमान के मुताबिक एक बुलेट ट्रेन को चलाने के लिए कम से कम 60 हजार करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी. जहां साधारण ट्रेनों के लिए पटरियां दुरुस्त नहीं हैं, वहां बुलेट ट्रेन के लिए पैसे कहां से आएंगे. रेलवे के इंफ्रास्ट्रक्चर का आलम ये है कि भारत के पास 64 हजार किलोमीटर लंबा नेटवर्क तो है लेकिन उसमें से सिर्फ 15-20 फीसदी ट्रैक ही 170 किलोमीटर की रफ्तार झेल सकता है. साफ है कि 300 किलोमीटर तक की रफ्तार छूने के लिए भी हमारा बुनियादी ढांचा तैयार नहीं है.
जिस रेल को भारत में पिछले कई वर्षों से सवारी और माल ढोने वाला साधन समझकर छोड़ दिया गया था, उसी रेल को सही अर्थों में भारत की जीवनऱेखा बनाने की कोशिशें की जा रही हैं. मोदी को यकीन है कि एक दिन हिन्दुस्तानी पटरी भी इतनी मजबूत होगी कि उस पर बुलेट ट्रेन दौड़ेगी.
मोदी ने लगाई सांसदों की पाठशाला
30 साल बाद किसी दल को बहुमत मिला है. प्रधानमंत्री को पता है कि प्रचंड बहुमत का नशा पार्टी को असल मुद्दों से ही डीरेल कर सकता है. इसीलिए अपने सांसदों, मंत्रियों, नेताओं तक के लिए उन्होंने आचार संहिता बना रखी है. और हां, उसके पालन में कोई कोताही बर्दाश्त नहीं.
बीजेपी के नए नवेले सांसद छात्रों की भूमिका में थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हेड मास्टर साब की तरह. वैसे तो मोदी भी पहली बार ही सांसद बने हैं, लेकिन संसदीय व्यवस्था में काम करने का उन्हें लंबा तजुर्बा है. उस तजुर्बे को अपने सांसदों में बांटते हुए मोदी ने साफ कर दिया कि सांसदों को पूरी तैयारी के साथ संसद में आना चाहिए.
बड़ी उम्मीदों के साथ सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानियों ने नरेंद्र मोदी को देश की बागडोर सौंपी है. मोदी को भी ये पता है कि छोटी-छोटी गलतियां बड़ी मुश्किलों को दावत दे सकती हैं. इसीलिए सरकार बनने के तुरंत बाद मोदी की तरफ से सांसदों को फरमान आया कि वो प्रवक्ता की तरह बर्ताव ना करें. वो संसद में पूरी तैयारी करके आएं. अपने किसी सगे-संबंधी को अपना प्रतिनिधि नहीं बनाएं और भाई-भतीजावाद से बचें.
लेकिन जब मोदी की पार्टी की ही सांसद प्रियंका सिंह रावत ने अपने पिता को जन प्रतिनिधि बना दिया तो मोदी ने उन्हें समझा दिया कि वो जो कुछ कह रहे हैं, वो सिर्फ कहने के लिए नहीं है. नतीजा ये हुआ कि 24 घंटे के भीतर प्रियंका को अपना फैसला बदलना पड़ा.
सूत्रों के मुताबिक, मंत्रियों की छवि बनाए रखने और भ्रष्टाचार से दूर रखने के लिए ही मोदी ने मनमोहन सरकार के दौरान मंत्रियों के पीए रहे अधिकारियों को अपने मंत्रियों के साथ जोड़ने की इजाजत नहीं दी. इशारा साफ था कि साफ छवि पर रत्ती भर दाग भी बर्दाश्त नहीं. दूसरों की छोड़िए, देश के गृह मंत्री और मोदी के नंबर 2 राजनाथ सिंह को भी ये मौका नहीं मिला. मोदी ने सबको समझा दिया कि योग्यता ही पैमाना होगा.
मोदी ने दागी नेताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों के निपटारे में भी तेजी लाने के निर्देश दिए हैं. इसके लिए उन्होंने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को फास्ट ट्रैक बनाकर एक साल के अंदर मामलों को निपटाने के लिए रोडमैप बनाने को कहा है. सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह और रविशंकर प्रसाद को इसका ब्लू प्रिंट तैयार करने का भी निर्देश दिया है.
टेक्नोलॉजी में भी देश पीछे न रह जाए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहचान एक ऐसे राजनेता की है, जिनकी तकनीक में भी काफी दिलचस्पी होती है. मोदी ने इसकी झलक दो महीने में ही दे दी, सैटेलाइट की उड़ान से आईएनएस विक्रमादित्य तक. एक तरफ किसानों की बात तो दूसरी तरफ जवानों का हौसला. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को वो जंगी युद्धपोत दिया, जिसका इंतजार देश को अरसे से था. आईएनएस विक्रमादित्य.
मोदी को पता है कि जिस देश में वैज्ञानिक तरक्की नहीं होती, वो देश चाहकर भी उत्थान की नई गाथा नहीं लिख सकता. इसीलिए जब वो अंतरिक्ष में भारत की कामयाबी की गौरवमयी उड़ान को देख रहे थे तो उन्हें इस बात का संतोष भी था और खुशी भी कि भारत भी दुनिया को बहुत कुछ दे सकता है.
सवाल ये भी है कि कब तक हिन्दुस्तान विदेशी तकनीक का गुलाम रहेगा. दो महीने के अंदर ही मोदी ने इस धारणा को तोड़ने की कोशिश की है. इसीलिए बजट में नई आईआईटी, एम्स और आईआईएम खोलने का एलान किया गया.
मोदी ने झलक तो दिखला दी है. लेकिन पूरी तस्वीर के लिए 60 दिन नहीं, बल्कि 60 महीने की बात तो वो खुद ही करते रहे हैं. उम्मीद है कि पांच साल के अंदर वो सपने सच होंगे, जिन्हें फिलहाल खुली आंखों से देश देख रहा है. प्रधानमंत्री मोदी ने 60 महीने मांगे थे, अभी तो 60 दिन बीते हैं. पूत के पांव तो पालने में दिखने लगे है, आगे-आगे देखिए होता है क्या.