देश की पवित्र और सबसे बड़ी नदी गंगा की ‘अविरल’ और ‘निर्मल’ धारा बरकरार रखने के लिये देश के सात प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मदद करेंगे. इस बारे में पर्यावरण और वन मंत्रालय ने इन सातों आईआईटी के संकुल के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं.
इस करार के तहत सातों आईआईटी का संकुल गंगा नदी घाटी प्रबंधन योजना तैयार करेगा ताकि नदी संरक्षण के प्रयासों को प्रतिष्ठित प्रौद्योगिकी संस्थानों से मदद मिल सके. मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल और पर्यावरण तथा वन राज्य मंत्री जयराम रमेश ने मंगलवार को इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये.
हस्ताक्षर समारोह के बाद रमेश ने संवाददाताओं से कहा, ‘यह ‘स्वच्छ गंगा मिशन’ के तहत ऐसा पहला प्रयास है, जिसमें कानपुर, दिल्ली, चेन्नई, मुंबई, खड़गपुर, गुवाहाटी और रूड़की स्थित सात आईआईटी का संकुल किसी बड़ी राष्ट्रीय योजना में अपनी तकनीकी मदद मुहैया करायेगा. इस करार के तहत विकसित होने वाली गंगा नदी घाटी प्रबंधन योजना के जरिये यह सुनिश्चित कराया जायेगा कि वर्ष 2020 तक नदी में बिना शोधन के गंदा पानी प्रवाहित नहीं हो.’
उन्होंने कहा, ‘हम मुख्य तौर पर दो चीजें चाहते हैं. पहली, गंगा नदी की ‘अविरल धारा’ बरकरार रहे यानी किसी भी तरह से गंगा में जल प्रवाह नहीं रुके. दूसरी, नदी की ‘निर्मल धारा’ भी कायम रहे यानी नदी में गंदा पानी प्रवाहित नहीं हो. सातों आईआईटी मिलकर 12 से 18 महीने में योजना तैयार करेंगे और इसकी अनुमानित लागत 15 करोड़ रुपये आयेगी.’ {mospagebreak}
रमेश ने कहा कि इस कवायद में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल और बिहार के मुख्यमंत्रियों को भी शामिल किया जायेगा. यह प्रयास इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि इस योजना को देश की अन्य नदियों के लिये भी लागू किया जा सकेगा. उन्होंने कहा कि शुरुआत में हमारा इरादा यह काम किसी सलाहकार कंपनी को सौंपने का था लेकिन हमने इस बात पर गौर किया कि तकनीक और प्रौद्योगिकी के मामले में विशेषज्ञता रखने वाले देश के सात आईआईटी इस काम को बखूबी पूरा कर सकते हैं.
वर्ष 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की ओर से घोषित गंगा कार्य योजना के तहत अब तक करीब 900 करोड़ रुपये खर्च हो जाने पर भी नतीजा सिफर रहने संबंधी आरोपों पर रमेश ने कार्य योजना का बचाव किया. उन्होंने कहा कि अगर राजीव गांधी दूरगामी सोच नहीं रखते और इस दिशा में प्रयास नहीं होते तो नदी की हालत और भी बदतर हो सकती थी.
सिब्बल ने कहा कि इस करार के तहत स्थानीय उद्योगों और राज्य सरकारों के समक्ष एक योजना रखी जायेगी. उम्मीद है कि इससे गंगा नदी संरक्षण के प्रयासों को और बल मिलेगा. उन्होंने कहा कि यह योजना गंगा नदी से जुड़े सांस्कृतिक-सामाजिक पहलुओं के मद्देनजर भी महत्वपूर्ण होगी.
नदी और सभ्यता का आपस में संबंध में है और इसी मूल विचार को ध्यान में रखते हुए हमने इस योजना पर आगे बढ़ने का फैसला किया है. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में फरवरी 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण का गठन किया गया था. इस प्राधिकरण में केंद्र के संबंधित मंत्रालयों के मंत्रियों के अलावा उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल और बिहार के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं.