पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा और उनके सहयोगियों ने दूरसंचार लाइसेंस देने में स्वान टेलीकाम और युनिटेक का पक्ष लेने के लिए अधिकारियों को धमकाया और मजबूर किया था. सीबीआई ने 2जी घोटाले की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति को यह जानकारी दी है.
स्पेक्ट्रम आबंटन घोटाले के विभिन्न पहलुओं पर 7 जून को बयान देते हुए सीबीआई के निदेशक एपी सिंह ने समिति को बताया कि दो अधिकारियों ने टाटा टेली के ऊपर स्वान टेलीकाम को वरीयता नहीं दी थी.
राजा के निजी सचिव आरके चंदोलिया के इशारे पर तत्कालीन दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा ने उनकी बदली कर दी. सिंह ने समिति को बताया कि तत्कालीन वायरलेस एडवाइजर आरपी अग्रवाल को ‘बुरे नतीजे भुगतने’ की ठोस धमकी दी गई थी और उन्हें दिल्ली सर्किल में स्वान को स्पेक्ट्रम आबंटित करने के लिए एक नोट भेजने को बाध्य किया गया.
संचार भवन में षडयंत्र का ब्यौरा देते हुए सिंह ने बताया कि टाटा टेलीसर्विसेज को 20 सर्किलों में दोहरी प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की सैद्धांतिक मंजूरी मिली थी. कंपनी ने सभी शर्तों का पालन करते हुए स्पेक्ट्रम के लिए वायरलेस नियोजन एवं समन्वय विभाग में आवेदन किया था.
टाटा टेली ने आवेदन 10 जनवरी 2008 को किया था पर उसका आवेदन दूरसंचार विभाग से गायब हो गए और कंपनी को 5 मार्च, 2008 को नए सिरे से आवेदन करने को कहा गया. इसके विपरीत नए आवेदकों स्वान एवं युनिटेक के लिए लाइसेंसों पर हस्ताक्षर कर दिए गए.
सिंह ने रिलायंस टेलीकाम और स्वान टेलीकाम के बीच संबंधों की भी यह कहते हुए व्याख्या की कि अनिल अंबानी की अगुवाई वाली कंपनी ने ऐसा ढांचा तैयार किया था जिससे उनके बीच संबंध छिपे रहें. रिलायंस इन्फोकाम के प्रवक्ता ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार किया.