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जब मच्‍छरदानी के सहारे कैद हुआ कातिल...

क़त्ल का एक ऐसा केस है, जिसमें सब कुछ है. अगर कुछ नहीं है, तो वह है कोई सुराग. चूंकि मुर्दे बोलते नहीं हैं, लिहाजा मुर्दा लड़की अपना नाम-पता या कातिल का हुलिया तो बता नहीं सकती थी. दूसरा कोई बताने वाला था नहीं, तो फिर पुलिस कातिल तक पहुंचती कैसे?

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मच्‍छरदानी के सहारे कैद हुआ कातिल
मच्‍छरदानी के सहारे कैद हुआ कातिल

क़त्ल का एक ऐसा केस है, जिसमें सब कुछ है. अगर कुछ नहीं है, तो वह है कोई सुराग. चूंकि मुर्दे बोलते नहीं हैं, लिहाजा मुर्दा लड़की अपना नाम-पता या कातिल का हुलिया तो बता नहीं सकती थी. दूसरा कोई बताने वाला था नहीं, तो फिर पुलिस कातिल तक पहुंचती कैसे?

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काफी वक्त बाद मुंबई पुलिस के सामने ऐसा कोई बेहद उलझा हुआ केस आया है. 25 अप्रैल, 2011 को करीब 6 बजे सुबह रोज़ की तरह सूरज के सोकर उठते ही मुंबई की लाइफ़-लाइन वापस पटरी पर आ चुकी थी. महानगर की भीड़ का बोझ उठाने और उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचान के लिए. लेकिन घड़ियाल ने जैसे ही 6 बजाए, अचानक चर्चगेट रेलवे पुलिस स्टेशन के फ़ोन की घंटी घनघना उठी.

खबर मिली कि एक बोरा मिला है, बोरे में कुछ भी हो सकता है, बम से लेकर लाश तक. लिहाजा पुलिस टीम फोन रखते ही चर्चगेट स्टेशन की तरफ रवाना हो जाती है. स्टेशन पहुंचकर पुलिस ट्रेन की बोगी में दाखिल होती है. बोरा सचमुच उनके सामने पड़ा था. इधर बोरे का मुंह खुला, उधर डर सच सबित हो गया. बोरे में मच्छरदानी से लिपटी एक जवान लड़की की लाश थी.

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लाश के अलावा मौका-ए-वारदात से पुलिस को कोई भी ऐसा दूसरा सुराग नहीं मिला, जो इस लड़की की लाश को पहचान दे पाता. हां, लाश के गले पर लाल चोट के निशान देखकर ये अंदाजा जरूर हो गया कि लड़की का क़त्ल गला घोंटकर किया गया है.

लाश मुंबई की लोकल ट्रेन में मिली थी, लिहजा पुलिस चौकन्नी थी. जांच में किसी भी तरह की ढिलाई केस खराब कर सकती थी, पर केस सुलझाने के लिए पहले जरूरी था मरने वाली लड़की की शिनाख्त करना. आखिर कौन है ये लड़की? किसने उसे मारा? और वो कौन था, जिसने इतना जोखिम उठाकर लाश ट्रेन में रखी? मुंबई पुलिस के जेहीनदिमग अफसरों का इम्तेहान लेने के लिए एक और केस उनके सामने आ चुका था.

जब लाश बोरे से बाहर आई, तो अपने साथ कई सवालों के साथ आई. लड़की कौन है? कत्ल किसने किया? कहां, क्या, क्यों किया? पुलिस अभी ऐसे सवालों से दो-चार ही थी कि तभी अचानक उसकी निगाह उस मच्छरदानी पर जाकर ठहर गई, जिसमें लाश लिपटी थी.

दरअसल लाश मिलने के बाद पुलिस ने चर्चगेट से लेकर विरार तक सभी रेलवे स्टेशनों पर लगे सीसीटीवी फुटेज को खंगाल डाला था, लेकिन कहीं से कामयाबी हाथ नहीं लगी. फिर इसी बीच नालासोपारा स्टेशन के ससीटीवी फुटेज को जब देखा गया, तो एक शख्स सफेद बोरा लिए ट्रेन की तरफ जाता आ नजर आय़ा. पुलिस के लिए ये बड़ी कामयाबी थी.

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चूंकि किसी और स्टेशन पर ऐसी तस्वीर नहीं मिली थी, लिहाजा ये तय हो गया था कि कातिल नालासोपारा स्टेशन से ही ट्रेन में सवार हुआ था.

तस्वीर में दिखाई दे रहे बोरे और रंग का जब मौके से मिले बोरे और रंग से मिलान किया गया, तो ये पक्का हो गया कि ये वही बोरा है, जिसमें लड़की की लाश मिली थी. यानी पहला सुराग मिल चुका था कि बोरे को नालासोपारा स्टेशन से ही चढ़ाया गया था, पर मुंबई के सवा करोड़ की आबादी में से उस शख्स को ढूंढना इतना आसान नहीं था.

अभी पुलिस उस तक पहुंचने के उधेड़बुन में ही थी कि तभी एक और छोटा सा और सुराग मिलता है. जिस मच्छरदानी में लाश लपेटकर रखी गई थी, उस पर मेड-इन-बांगलादेश का स्टीकर लगा था. अब मुंबई पुलिस के पास दो सुराग थे. पहला सीसीटीवी फुटेज में क़ैद शख्स और दूसरा मच्छरदानी में लगा स्टीकर. मेड इन बांग्लादेश के स्टीकर से इतना तो साफ हो गया कि कातिल या मकतूल में से किसी ना किसी का कोई रिश्ता बांग्लादेश से ज़रूर है. जाहिर है अब जांच की सुई मुंबई में रहने वाले बांग्लादेशियों की तरफ घूम चुकी थी.

कातिल शायद यही सोच कर लाश को ट्रेन की बोगी में छोड़ गया था कि किसी को उसका सुराग नहीं मिलेगा और यहीं वो गलती कर बैठा था. उसने अनजाने में दो-दो सुराग छोड़ दिए. एक खुद को कैमरे में कैद करवा दिया और दूसरा, लाश को मच्छरदानी में लपेटते वक्त ये भूल गया कि उस मच्छरदानी में भी एक सबूत छुपा हुआ है.

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सीसीटीवी कैमरे में क़ैद विजुअल्स से साफ था कि इसी स्टेशन से लाश वाले बोरे को ट्रेन में चढ़ाया गया. लिहाजा मुंबई पुलिस ने नालासोपारा से ही अपनी तफ्तीश का आग़ाज़ किया. तफ्तीश के दौरान पता चला कि नालासोपारा के आसपास कुछ बांग्लादेशी बस्तियां भी हैं.

लड़की की तस्वीर के सहारे मुंबई पुलिस उन सभी इलाकों की खाक छानने लगी, जहां बांग्लादेशी रहते थे, लेकिन पुलिस को कोई कामयाबी मिलती नज़र नहीं आई. किसी ने लड़की को नहीं  पहचाना. पुलिस की उम्मीदें करीब-करीब दम तोड़ चुकी थीं कि तभी एक लड़के ने उनकी उम्मीदें जगा दीं. उस लड़के ने बताया कि तस्वीर वाली लड़की को वो पहचानता है. वो लड़की पास के अग्रवाल कंपाउंड में रहती थी. उसका नाम लायज़ा था. 
अब मुंबई पुलिस की टीम लायज़ा के घर पर थी. पता चला कि लायज़ा शादीशुदा थी. उसके पति का नाम लोटन है और लोटन पिछले कुछ दिनों से ग़ायब है. लोटन के बारे में काफी ख़ोजबीन के बात पता चला कि वो कोलकाता गया हुआ है.

तफ्तीश में पुलिस को ये भी पता चला कि लोटन उसी दिन से लापता है, जिस दिन लायज़ा की लाश मिली थी. तो क्या लायज़ा का क़त्ल उसके पति लोटन ने ही किया था? क्या लोटन ने ही क़त्ल के बाद अपनी बीवी की लाश बोरे में डालकर ट्रेन में रखा था?

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पुलिस आधा जंग जीत चुकी थी. मकतूल और उसका पता मिल चुका था, पर जिसपर शक था वो खुद गायब था. पुलिस अब भी आराम से नहीं बैठ सकती थी, क्योंकि जरूरी नहीं था कि लोटन भाग गया हो. हो सकता है लोटन खुद किसी मुसीबत में हो? यानी लोटन का सामने आना अब बेहद जरूरी था, इसीलए पुलिस की एक टीम को कोलकाता भेजने का फैसला किया गया.

कत्ल मुंबई में हुआ. लाश मुंबई में मिली, पर खबर ये कि कातिल कोलकाता जा पहुंचा है. बस इतनी सी खबर के साथ पुलिस की टीम ने कोलकाता जाने का फैसला किया और वो भी संदिग्ध कातिल के बेहद पुराने तस्वीर के साथ. तो क्या कोलकाता की लाखों की भीड़ में पुलिस उसे तलाश कर पाएगी?

मुंबई पुलिस टीम कोलकाता तो पुहंच गई, पर लोटन तक कैसे पहुंचा जाए? यही सबसे बड़ा सवाल था. दरअसल पुलिस के पास लोटन के एक मोबाइल नंबर के अलावा कुछ भी नहीं था. इसी नंबर की मदद से वो लोटन तक पहुंचने की उम्मीद लिए कोलकाता पहुंची थी. दरअसल पुलिस ने लोटन के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा रखा था.

कोलकाता पहुंचने के बाद सर्विलांस की मदद से पता चला कि इस नंबर का इस्तेमाल बांग्लादेश बॉर्डर के करीब हो रहा है. लिहाजा लोटन के नंबर का पीछा-पीछा करते मुंबई पुलिस की टीम भी बांग्लादेश बॉर्डर के पास बारासात गांव जा पहुंची. गांव पहुंचकर फोटो दिखाने पर कुछ लोगों ने लोटन को पहचान लिया. लोगों ने बताया कि लोटन अभी-अभी गांव के बाहर गया है.

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जीप पर सवार पुलिस की टीम फौरन गांव के बाहर निकल पड़ी. गांव के बाहर काफी लोग बस के इंतज़ार में खड़े थे और इसी भीड़ में था लोटन. पुलिस के पास लोटन का काफी पुराना फोटो था, इसलिए उसे पहचानने में दिक्कत आ रही थी.

लोटन की पहचान पुख्ता करने के लिए जीप में सवार पुलिस अधिकारी ने अपने साथी से कहा कि पास जाकर लोटन का नाम पुकारे, जो भी शख्स इस आवाज़ पर चौंकेगा या पलटेगा, वही लोटन होगा.

प्लान के मुताबिक जीप से उतरकर सादी वर्दी में एक पुलिस वाला लोगों की भीड़ में पहुंचा और लोटन को आवाज़ दी. आवाज़ सुनकर लोटन फौरन चकन्ना हो गया और इधर-उधर देखने लगा. फिर क्या था, पुलिस की एक टीम जीप से उतरी. लोटन की तरफ लपकी. पुलिस को देख लोटन भागने लगा, लेकिन भाग नहीं पाया.

लोटन बडा ही शातिर शख्स था. बांगलादेश से घुसपैठ कर मुम्बई मे अवैध रूप से रहना, दूसरे देश से आकर अपनी पत्नी का कत्ल कर उसे लोकल की बोगी मे छोड़ना और फिर सबूत मिटाकर भाग निकलना यह सब आसान खेल नही था, लेकिन पुलिस के पास इन तमाम गुनाहों के सबूत इकठ्ठा करने बाकी थे और इसके लिये लोटन का कबूलनामा जरूरी था. पुलिस इस बात को समझ चुकी थी की लोटन से पूछताछ करना कोई मामूली बात नहीं था. अब पुलिस के पास एक और चुनौती थी.

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अब लोटन मुंबई पुलिस की गिरफ्त में था और लोटन को लेकर पुलिस की टीम मुंबई लौट आई. इधर लोटन के पिता और भाई भी जीआरपी के हत्थे चढ़ चुए थे, लेकिन लोटन लगातार खुद को बेगुनाह बता रहा था. वो लगातार नई-नई कहानियां गढ़ रहा था, पर पुलिस की सख्ती के बाद उसने जो असली कहानी बताई उससे सभी हैरान रह गए. पुलिस लोटन को एक कत्ल के लिए ढूंढ रही थी, पर वो दो-दो कत्ल का इकबाल-ए-जुर्म कर रहा था. दूसरा कत्ल अपनी 8 साल की साली का, पर दूसरी लाश कहां गई?

लोटन ने मुंबई पुलिस के सामने खुलासा किया कि उसने ही अपनी बीवी लायज़ा का कत्ल किया और लाश को ट्रेन में रख दिया, लेकिन सवाल ये था कि लोटन ने 8 साल की बच्ची का कत्ल क्यों किया? और अगर कत्ल किया तो दूसरी लाश कहां गई?

दरअसल बांग्लादेश का रहने वाला लोटन अपनी बीवी और 8 साल की साली के साथ मुंबई के नालासोपारा इलाके में रहता था. लोटन चाहता था कि उसकी बीवी लायज़ा बीयर बार में नौकरी करे, लेकिन लायज़ा बार में नौकरी के लिए कतई तैयार नहीं थी.

24 अप्रैल, 2011 को भी लोटन शराब के नशे में देर रात घर वापस आया और बार में नौकरी को लेकर लायजा से झगड़ा शुरू हो गया. लोटन का गुस्सा सातवें आसमान पर था और उसने लायजा की पिटाई शुरू कर दी. लोटन पर शराब का नशा इस कदर हावी था कि उसने अपनी बीवी लायज़ा का गला घोंट दिया.

बावी का कत्ल करने के बाद अचानक लोटन की नजर कमरे में ही मौजूद आठ साल की रुबीना पर पड़ी. रुबीना जाग रही थी और उसने अपनी बड़ी बहन का कत्ल होते हुए देख लिया था.

लोटन रुबीना पर टूट पड़ा और फिर गला घोंटकर उसका भी कत्ल कर दिया. लोटन घर मे दो-दो कत्ल कर चुका था. अब उसे इन लाशों को ठिकाने लगाना था, लिहाजा उसने घर से दो बोरे और रस्सी ली और दोनों लाशो को अलग-अलग बोरों मे बंद कर दिया. इसके बाद पहले उसने रुबीना की लाश नालासोपारा के पास ही एक सुनसान नाले मे फेंक दिया. फिर लायजा की लाश को लेकर नाला सोपारा के रेलवे स्टेशन की तरफ बढ़ गया.

सुबह करीब पौने पांच बजे लोटन नालासोपारा रेलवे स्टेशन पहुंचा. लाश वाले बोरे को उसने सिर पर उठा रखा था. लोटन बैखोफ होकर प्लेटफोर्म पर पहुंचा. वहां उस वक्त चर्चगेट जाने वाली ट्रेन खडी थी. उसने लाश बोगी में डाली और फिर वापस घऱ आ गया.

शायद मुंबई पुलिस इस केस को इती जलदी नहीं सुलझा पाती, पर लोटन ने गलती यह की कि उसने अपनी बीवी की लाश उस मच्छरदानी में लपेटी, जिसपर मेड इन बांग्लादेश का स्टिकर लगा था यही स्टिकर आखिर में उसके लिए फांसी का फंदा सबित हुआ.

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