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इस मासूम का क्‍या था दोष, जो मां से दूर हुई

सड़क पर, बाजार में, भीड़ में या मेले में, यहां तक कि अपने घर के बाहर भी अगर अपना बच्चा पल भर के लिए भी गुम हो जाता है तो हम सबकी जान निकल जाती है. तरह-तरह के ख्याल आते आने लगते हैं; पता नहीं कहां होगा, कैसा होगा, किस हाल में होगा? पर ज़रा सोचें, जिसे दुनिया में आने के फौरन बाद ही दुनिया की भीड़ के बीच बगैर किसी नाम के तनहा छोड़ दिया जाए उसपर क्या बीतेगी?

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सड़क पर, बाजार में, भीड़ में या मेले में, यहां तक कि अपने घर के बाहर भी अगर अपना बच्चा पल भर के लिए भी गुम हो जाता है तो हम सबकी जान निकल जाती है. तरह-तरह के ख्याल आते आने लगते हैं; पता नहीं कहां होगा, कैसा होगा, किस हाल में होगा? पर ज़रा सोचें, जिसे दुनिया में आने के फौरन बाद ही दुनिया की भीड़ के बीच बगैर किसी नाम के तनहा छोड़ दिया जाए उसपर क्या बीतेगी? 'घर से मसजिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें...

किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए.'

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जी हां! मासूम किलकारियों को मुस्कुराहट देना भी किसी इबादत से कम नहीं. फिर हम तो बच्चों को यूं भी फरिश्ता मानते हैं, उनमें भगवान को देखते हैं, पर यही फरिश्ते, यही भगवान, अगर हमसे पूछ बैठें कि क्या यही है इंसानों की दुनिया? क्या ये वही दुनिया है जिसमें इंसान बसते हैं? क्या इसी दुनिया में लाने के लिए मेरी मां ने मुझे पूरे नौ महीने तक अपनी कोख में रखा था? और फिर कोख से बाहर आते ही गोद से भी फेंक दिया? तो हम इसका क्या जवाब देंगे? क्या हमारे पास इसका कोई जवाब है.

करीब चालीस साल पहले लखनऊ की एक औरत ने अपने अहसास को अपनी संवेदनाओं को कुछ यूं बयान किया था...

'मैंने इस वास्ते बोए नहीं ख्वाबों के दरख्त

कौन इस दश्त में इन पेड़ों को पानी देगा'

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वक्त बदलता है, हालात बदलते हैं, आज चालीस साल बाद फिर एक औरत अपनी आंखों में हौसला पैदा करती है कि वो ख्वाब बुने. ख्वाब पलता है, वो इंतजार करती है कि इन ख्वाबों को समाज का घोसला मिल जाए. लेकिन अफसोस, वो फिर हार जाती है. अचानक लोकलाज का दैत्य औरत की इस हार पर खूनी ठहाका लगाने लगता है, मर्दानगी फिर जीत जाती है.

जनाब ये है एक कहानी का वो अंत जिसे हजार बार दोहराया जा चुका है, दोहराया जा रहा है. लेकिन यहीं से शुरू होती है एक दूसरी कहानी, दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती दो साल की मासूम. उसके पास वो सब कुछ है जो ऐसे ही दूसरे बच्चों के पास होता है, लेकिन हमारी इस पेचीदा कहानी के ये किरदार अजनबी है. ऐसा नहीं है कि ये किसी और दुनिया से आई है, ये बच्ची हमारी और आपकी इस दुनिया में वैसे ही आई है जैसे कोई भी दूसरा बच्चा आता है. लेकिन फिर भी ये उन तमाम बच्चों से अलग है, जिन्हें पैदा होने का सामाजिक हक है.

सर से पांव तक पट्टियों में लिपटी है यही बच्ची, क्या तमाम बच्चों की तरह इसे भी जिंदा रहने का हक नहीं है? ज़माना बदल चुका है, हमें पता है कि उन सूनी गोदों की तादाद भी कम नहीं हैं जिन्हें ऐसे अजनबी बच्चों का इंतजार रहता है. फिर कोई मां भला इतनी पत्थरदिल कैसे हो सकती है?

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मां के नाम पैगाम: मां देखो अभी हम जिंदा हैं, तुम यही तो चाहती थी, तभी तो तुमने हमें जन्म दिया. मां हमारी तकलीफ देखकर तुम समझ चुकी होगी कि हमने जिंदगी से लड़ना सीख लिया है. मां जब हम बड़े हो जाएंगे तो हमें पता चल जाएगा कि कितनी तकलीफें उठा कर नौ महीने अपना खून पिला कर तुमने हमें इस दुनिया में आने के लायक बनाया है.

जब हम बड़े हो जाएंगे मां और तुम्हारी इस उम्र में पहुंचेंगे, तो हमें भी पता चल जाएगा कि जमाने से अपना पेट छुपाना कितना मुश्किल काम होता है. तब हम घंटों सोचा करेंगे कि मां तुमने ये सब कैसे किया होगा? मां तुम ये ना समझना कि हम कभी तुमसे नफरत करेंगे. मां हम जानते हैं कि तुम हमें अपनी जान से ज्यादा चाहती हो. वर्ना एक बोझ को जन्म कौन देता है, हमें तुमसे कोई शिकवा नहीं है मां. जरूर तुम्हारे सामने ऐसी ही कोई मुश्किल रही होगी कि तुमने हमें अपनी गर्म गोद से दूर कर दिया।

तुम कैसी लगती हो मां?

मां, जब हम बड़े होंगे तो जान जाएंगे कि ये मजबूरियां क्या होती हैं. लेकिन मां, तुमसे बस सिर्फ एक बात पूछने की हिम्मत कर रहे हैं, उम्मीद है तुम बुरा नहीं मानोगी. मां बस इतना बता दो कि तुम कैसी लगती हो? ये फरियाद उस बेटी की अपनी मां से थी, उस मां से जिसने नौ महीने तक इसे अपने खून से सींचा, उसे अपनी सांसें दीं, अपनी नींदें कुर्बान कीं. पर नौ महीने बाद जब वही बेटी उसके घर में किलकारियां बिखेरनी आईं तो ना जाने वो कहां गुम हो गई?

दो साल की ये नन्ही परी आठ दिन पहले यानी 18 जनवरी को ही एम्स ट्रॉमा सेंटर में आई है. दरअसल उस रोज भी हजारों की भीड़ में 15 साल की एक लड़की अस्पताल पहुंची थी. अस्पताल पहुंचते ही उसने डॉक्टर से बस इतना कहा कि बच्ची पलंग से गिर गई है इसे बचा लीजिए. इसके बाद बच्ची को डॉक्टर के हवाले करते ही वो ना मालूम कहां गुम हो गई.

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डॉ. एमसी मिश्रा, चीफ, एम्स ट्रौमा सेंटर के अनुसार बच्ची पलंग से नहीं गिरी थी, बल्कि दो साल की इस मासूम पर वो ज़ुल्म ढहाए गए जिनके निशान पट्टियों से ढके सिर से पैर तक अब भी इसके जिस्म पर मौजूद हैं. पूरे जिस्म पर ज़ख्म ही ज़ख्म हैं, घाव ही घाव, सिर ज़ख्मी, दिमाग घायल, दोनों बाहों की हड्डियां टूटी हुई. पूरे जिस्म पर जगह-जगह काटने के निशान, जगह-जगह जलने का घाव, दिल भी ठीक से काम नहीं कर रहा है, फेफड़े में भी इन्फेक्शन है.

क्या यही है इंसानों की दुनिया? क्या ये वही दुनिया है जिसमें इंसान बसते हैं? क्या इसी दुनिया में लाने के लिए इसकी मां ने पूरे नौ महीने तक इसे अपनी कोख में रखा था? अगर इस दुनिया में आने वाले हम जैसे नन्हे मेहमानों के साथ ऐसा ही सुलूक होता है तो फिर हमें इस दुनिया में नहीं रहना.

ऐसा लगता है कि आंखें मूंदी ये बच्ची बस यही सोच रही है. दुनिया में आते ही इस मासूम ने इतनी सारी चीजें देख लीं कि अब इस दुनिया को ये शायद और देखना ही नहीं चाहती है और इसीलिए ये अपनी आंखें मूंदे हुए है. खुद डॉक्टरों को डर है कि पता नहीं अपने जख्मों से दो साल की ये बच्ची उबर भी पाएगी या नहीं.

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खुद डॉक्टर हैरान हैं कि इतनी मासूम बच्ची के साथ कोई इतना हैवान कैसे बन सकता है? शक यही है कि शायद ये अनचाही औलाद है. पर बिन मांगी मुराद के साथ भी कोई इतना पत्थऱ दिल कैसे हो सकता है? ज़ाहिर है मामला पुलिस तक भी गया. क्योंकि ये सच पता लगाना ज़रूरी था कि आखिर इस बच्ची के साथ ये हैवानियत किसने और क्यों की? और 15 साल की वो लड़की कौन थी जो इस बच्ची को एम्स में छोड़कर भाग गई थी?

भला दो साल की एक मासूम के साथ किसी की ऐसी क्या दुश्मनी हो सकती है, जो उसे इस हद तक चोट पहुंचाए? ज़ाहिर है इस सवाल का जवाब आप भी जानना चाहते होंगे और जवाब मिल सकता था सिर्फ उस लड़की से जो इस मासूम को एम्स में लेकर आई थी. ज़ाहिर है इस बच्ची की असलीयत वो लड़की ही बता सकती थी जो इसे एम्स में छोड़ गई थी. लिहाज़ा पुलिस ने उस लड़की को तलाशना शुरू किया और आखिरकार काफी मशक्कत के बाद वो लड़की पुलिस को मिल भी गई, एक आश्रम में.

पूछताछ के दौरान पता चला कि 15 साल की वो नाबालिग लड़की पिछले साल 26 मई को अपने एक दोस्त के साथ घर से भाग गई थी, लड़की के घरवालों ने दो जून को उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट भी लिखाई थी. तफ्तीश के दौरान पता चला कि दो साल की ये बच्ची कई हाथों से होती हुई एम्स पहुंची है. बकौल पुलिस कुछ महीने पहले उत्तम नगर में एक घर में काम करन वाली मेड सर्वेंट ने ये बच्ची अपनी मालकिन को दी थी. इसके बाद फिर ये बच्ची कुछ और हाथों में गई और फिर कई हाथों से होते हुए आखिरकार ये बच्ची कुछ वक्त पहले ही 15 साल की उस लड़की के दोस्त रामकुमार तक जा पहुंची जिसके साथ वो घर से भागी थी.

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पर ये बच्ची कौन है? इसके मां-बाप कौन हैं? किसने इस मासूम को मौत के मुंह में ढकेला? और क्यों? इन सवालों को लेकर पुलिस के पास कई थ्योरी हैं. मासूम बच्ची को अस्पताल पहुंचाने वाली खुद 15 साल की एक लड़की है, जो पिछले कई महीनों से अपने घर से लापता है. पुलिस अब इस उलझन में फंसी है कि ये लड़की बच्ची को घाव देनेवालों में से एक है या फिर उसने इसे बचाया है, केस में कई पेंच हैं.

एक तरफ एक मासूम एम्स में जिंदगी और मौत से जूझ रही है. दूसरी तरफ एक नाबालिग खुद को इस बच्ची की मां बता रही है. लेकिन इस कहानी में अभी कई पेंच फंसे हुए हैं. पुलिस ने जब पूछताछ की, तो पता चला कि जो लड़की बच्ची को अस्पताल लेकर आई थी, उसे तो ये बच्ची कहीं मिली थी. उसका इससे कोई रिश्ता ही नहीं है. पुलिस ने अबतक जो थ्योरी बनाई है, उसके मुताबिक लगता तो ये है कि दो साल की बच्ची का अपहरण किया गया था. लेकिन, अबतक इसके अपहरण या गायब होने की वजह का पता नहीं है.

पुलिस की मानें, तो बच्ची के अपहरण के बाद से उसे कई जगह ले जाया गया. अब पुलिस को उन्ही सूत्रों की तलाश है, जिनसे ये पता चल सके कि आखिर बच्ची का ये हाल किया किसने. इस पूरे केस में सबसे पेंचीदा पहलू ये है कि खुद वो लड़की जो मासूम को अस्पताल लेकर आई थी, पिछले साल मई से गायब थी. बाकायदा उसके अपरहण की शिकायत भी थाने में की गई थी. जाहिर है, पुलिस के सामने अभी कई सवाल हैं, जिसे इस केस के लिए सुलझाना जरूरी है.

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