आदर्श आवासीय सोसायटी मामले में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की संसद में पेश रिपोर्ट में कहा गया कि सैनिकों के कल्याण के नाम पर कुछ लोगों को फायदा पहुंचाया गया और पूर्व थलसेनाध्यक्ष जनरल दीपक कपूर और जनरल एन सी विज जैसे वरिष्ठ अधिकारियों को ‘विशेष मामले’ के रूप में सोसायटी का सदस्य बनने दिया गया.
कैग की रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई में स्थानीय रक्षा प्रशासन ने रक्षा संपदा विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने के लिये सरकार की एक बेशकीमती जमीन पर अनुचित रूप से कब्जा जमाया.
रिपोर्ट में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और महाराष्ट्र के शहरी विकास मंत्रालय को भी आड़े हाथ लेते हुए कहा गया है कि इस तरह के संकेत मिलते हैं कि आदर्श सहकारी आवासीय सोसायटी को अनापत्ति प्रमाण पत्र देने के लिये निर्धारित प्रक्रियाओं को दरकिनार कर दिया गया.
रिपोर्ट में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा गया, ‘सारा प्रकरण कर्तव्य निर्वहन में लापरवाही और सत्यनिष्ठा तथा जवाबदेही के गंभीर अभाव के प्रत्यक्ष उदाहरण सामने रखता है, जिनकी बहुत गंभीरता से जांच-पड़ताल करने की जरूरत है. यह प्रकरण बाड़ के खुद ही खेत चर जाने और भरोसे की जिम्मेदारी अदा करने वालों द्वारा अपनी निजी संपत्ति बढ़ाने के लिये विश्वासघात करने का एक बेहतरीन उदाहरण है.’
रिपोर्ट के अनुसार, ‘यह एक उदाहरण है कि किस तरह विशिष्ट और शक्तिशाली अभिजात लोगों के एक वर्ग ने निजी लाभ के लिये नियमों को तोड़मरोड़ कर सांठगांठ की. अपने लिये प्रमुख जगह में अपार्टमेंट प्राप्त करने की प्रक्रिया में उन्होंने दस्तावेजों में बदलाव करने, तथ्यों को दबाने का सहारा लिया और भूतपूर्व सैनिकों तथा उनकी विधवाओं के कल्याण के स्वीकृत महान उद्देश्य का भरपूर उपयोग किया.’
कैग की रिपोर्ट के अनुसार, आदर्श सोसायटी की सदस्यता को विस्तार देना जारी रखा गया. इस तरह कनिष्ठ सैन्य तथा असैन्य अधिकारी सोसायटी से बाहर हो गये और कई वरिष्ठ रक्षा अधिकारी तथा नौकरशाह इसके सदस्य बन गये. रिपोर्ट के मुताबिक, ‘बाद की तारीखों में सोसायटी के सदस्य बने प्रमुख सैन्य अधिकारियों में दो पूर्व थलसेनाध्यक्ष जनरल एन सी विज और दीपक कपूर शामिल हैं.’
कैग के अनुसार, ‘लिहाजा, सैनिकों तथा भूतपूर्व सैनिकों के कल्याण के नाम पर सशस्त्र बलों और असैन्य प्रशासन, नेताओं तथा उनसे जुड़े लोगों के एक विशिष्ट चयनित वर्ग को लोक संपत्ति के गलत विनियोजन से लाभ मिला.’
नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2000 में सोसायटी के सदस्यों की संख्या 40 थी जो वर्ष 2010 में बढ़कर 102 हो गयी. जो अफसर सदस्य के रूप में शामिल किये गये उनमें एडमिरल माधवेंद्र सिंह, लेफ्टिनेंट जनरल जी एस सिहोता और रियर एडमिरल आर पी सूतन प्रमुख हैं.
इस मामले में महाराष्ट्र सरकार और पर्यावरण तथा वन मंत्रालय की भूमिका के बारे में कैग ने कहा कि उन्होंने नियमों में ढील देकर और मुंबई के मध्य में स्थित राज्य सरकार के परिसर ‘मंत्रालय’ से नजदीक 31 मंजिला इमारत के निर्माण के प्रति आंखें मूंद लीं. कैग के अनुसार, पर्यावरण मंत्रालय तटीय नियम क्षेत्र अधिसूचना के प्रावधानों के बारे में राज्य सरकार को अवगत कराने में या तो निश्चित तौर पर विफल रहा या फिर उसने जानबूझकर राज्य सरकार को इस बारे में सूचित नहीं करने का फैसला किया.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘राज्य सरकार तथा केंद्र सरकार की अंदरूनी एजेंसियों को पत्र जारी किये जाने का सिलसिला शुरू हुआ जिनमें रियायतें मांगी गयीं और ‘सदस्य जो सशस्त्र बलों से हैं तथा मातृभूमि की सेवा कर रहे हैं’.. ‘अपना जीवन हमने मातृभूमि की रक्षा के लिये समर्पित कर दिया है’ ‘कारगिल ऑपरेशन के नायकों को पुरस्कार, जो कारगिल में बहादुरी से लड़े और अपनी मातृभूमि की रक्षा की’ जैसे वाक्यों का उदारता से इस्तेमाल किया गया.’
कैग की रिपोर्ट कहती है, ‘जो जिम्मेदारी वाले पदों पर थे, उन्हें यह एहसास होना चाहिये था कि सोसायटी की परिकल्पना में शुरू से ही खामी थी क्योंकि कुछ ही भूतपूर्व सैनिकों और शहीदों की कुछ ही विधवाओं की आर्थिक स्थिति ऐसी हो सकती थी जो ऐसी मुख्य जगह में अपार्टमेंट खरीद सकें.’
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