आदर्श आवास घोटाला मामले में महाराष्ट्र के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों ने एक दूसरे पर उस समय दोषारोपण किया जब अशोक चव्हाण ने कहा कि इस भूखंड की मंजूरी विलासराव देशमुख ने दी थी और इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं थी.
इस मामले में कथित अनियमितताओं की जांच कर रहे आयोग को दिये एक हलफनामे में चव्हाण ने यह भी कहा कि कोलाबा इलाके में सशस्त्र कर्मियों के लिए बनायी गयी इस सोसायटी में असैन्य लोगों को शामिल करने के लिए उन्होंने कोई सिफारिश नहीं की थी.
आदर्श विवाद के चलते मुख्यमंत्री पद से पिछले साल हटने वाले चव्हाण 1999-2003 के दौरान राजस्व मंत्री थे जब इस सोसायटी को भूमि का आवंटन किया गया था. देशमुख उस समय मुख्यमंत्री थे. चव्हाण ने देशमुख का नाम लिये बिना कहा कि पुणे, मुंबई और उपनगरों में 25 लाख रुपये से अधिक राशि वाले भूखंड के आवंटन के लिए मुख्यमंत्री को फैसला करना होता है.
आदर्श आयोग के समक्ष 17 जून को हलफनामा पेश करने वाले देशमुख ने भूमि आवंटन के लिए राजस्व विभाग और मुंबई के कलेक्टर को दोषी ठहराते हुए कहा था कि उन्होंने उस प्रस्ताव पर कार्रवाई की जिसे आदर्श सोसायटी के लिए भूमि के आवंटन हेतु उन्हें भेजा गया था.
चव्हाण ने आरोपों का जवाब देते हुए अपने आठ पृष्ठों के हलफनामे में कहा था, ‘मेरा यह सुझाव देने का कोई सवाल ही नहीं उठता कि सोसायटी में असैन्य सदस्यों को भी शामिल किया जाना चाहिए और ऐसी कोई भी बात कि इस मामले पर मेरे साथ विचार विमर्श किया गया था या मैंने कोई सुझाव या निर्देश दिया था या इस संबंध में मैंने कोई फैसला किया था, गलत है और मैं इससे इनकार करता हूं.’
चव्हाण के हलफनामे पर प्रतिक्रिया करते हुए देशमुख ने कहा, ‘अब यह फैसला न्यायिक आयोग को करना है कि कौन सही है और कौन गलत. सबको अपना मत पेश करने का अधिकार है.’ देशमुख ने इससे पहले आरोप लगाया कि तत्कालीन राजस्व मंत्री चव्हाण ने आवास सोसायटी से अपने नियमों में बदलाव कर इसमें असैन्य सदस्यों को भी शामिल करने को कहा था.