दुनिया में कैसे-कैसे अजूबे देखने को मिलते हैं लेकिन दुनिया के 7 अजूबों में शामिल ताजमहल के शहर आगरा में एक और अजूबा है, जिस पर गर्व नहीं शर्म आ सकती है. यह अचरज की बात कही जा सकती है कि आधार शिला रखे जाने के लगभग 23 वर्ष बाद भी आगरा में चम्बल नदी पर एक पुल का निर्माण नहीं हो सका है.
खास बात यह कि पुल की आधार शिला तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सितम्बर, 1989 में रखी थी. आगरा सूचना का अधिकार (आरटीआई) मंच के कार्यकर्ता नरेश पारस ने इस कानून के तहत उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश के लोगों को जोड़ने वाले इस पुल के बारे में जानकारी मांगी थी.
जवाब में उत्तर प्रदेश राज्य पुल निगम के परियोजना प्रबंधक गेंदा लाल ने बताया, 'आधार शिला सितम्बर, 1989 में रखी गई थी, लेकिन समन्वय की कमी और पर्यावरणीय मंजूरी न मिल पाने के कारण इस पर प्रगति नहीं हो पाई.'
इस पर कार्यकर्ता सुबोध शर्मा का कहना है कि यदि परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी नहीं मिली थी या वन विभाग से अनापत्ति प्रमाण नहीं मिला था तो यहां पुल की आधारशिला ही क्यों रखी गई. चम्बल नदी पर बनने वाला पुल आगरा से मुरैना (मध्य प्रदेश) के बीच बनना था. राज्य वित्त समिति के सामने वर्ष 2006 में पेश आकलन के अनुसार, इस पर 24.50 करोड़ रुपये की लागत आनी थी.
सुबोध के अनुसार, ग्रामीण फिलहाल नदी पर बने पीपों के पुल से ही इस पार से उस पार की यात्रा करते हैं और बारिश के दिनों में जब नदी का जल स्तर बढ़ जाता है तो केवल नौका ही नदी पार करने का साधन रह जाती है.
उत्तर प्रदेश राज्य पुल निगम के एक अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा कि निगम को पुल बनाने की अनुमति नहीं मिली है, क्योंकि यह चम्बल वन्य जीव अभयारण्य के तहत आता है, जो संरक्षित क्षेत्र है. सुप्रीम कोर्ट की समिति से भी इस परियोजना को मंजूरी मिलना अभी शेष है.
आरटीआई के जरिए पूछे गए सवाल के जवाब में राज्य पुल निगम ने कहा है कि मंजूरी के बाद ही विस्तृत परियोजना रिपोर्ट एवं निष्पादन योजना बनाई जाती है. वहीं, आरटीआई कार्यकर्ता पारस ने कहा, 'क्षेत्र के लोगों को धोखा दिया गया. उन्हें चुनाव (1989 के आम चुनाव) के समय झुनझुना पकड़ा दिया गया.'