भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हज़ारे की मुहिम में शामिल शांति भूषण उन्हें तथा उनके पुत्र जयंत को नोएडा के निकट फार्महाउस आवंटित होने के चलते नये विवाद में फंस गये.
नया विवाद सामने आने के बाद लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिये गठित संयुक्त समिति से शांति भूषण के इस्तीफे की मांग उठने लगी है.
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने शांति भूषण तथा उनके पुत्र जयंत को आवंटित फार्महाउसों पर सवाल उठाये हैं. इन दलों ने कहा है कि शांति भूषण को संयुक्त समिति से हट जाना चाहिये.
यह विवाद अखबारों में आज प्रकाशित हुई इन खबरों के बाद उठा है कि पिता-पुत्र को उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2009 में 10 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र वाले भूखंड आवंटित किये थे. प्रत्येक भूखंड का मूल्य साढ़े तीन करोड़ रुपये है.
एक अखबार के अनुसार, शांति भूषण और जयंत भूषण ने स्वयं माना है कि योजना में पारदर्शिता नहीं थी और बिना किसी स्पष्ट मानदंड के आवंटन किया गया.
नोएडा के एक पार्क में प्रतिमाओं की स्थापना से जुड़े मामले में उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ अदालत में पेश हो चुके जयंत ने यह भी स्वीकार किया कि आवंटन मनमाने ढंग से हुआ लेकिन हितों के टकराव का कोई सवाल नहीं उठता.
इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए शांति भूषण ने आरोप लगाया कि इन आरोपों के पीछे कुछ ‘भ्रष्ट और महत्वपूर्ण नेता’ हैं. ये आरोप इसलिये लगाये गये हैं क्येंकि अगर वह संयुक्त समिति में बतौर सह-अध्यक्ष बने रहते हैं तो नेताओं के लिये लोकपाल विधेयक का ‘हल्का’ मसौदा तैयार करवा पाना संभव नहीं होगा. उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने तथा जयंत के लिये भूखंड आवंटित कराने में किसी तरह का पक्षपात करने को नहीं कहा था और न ही विवेकाधीन कोटे के तहत आवंटन मांगा था.
शांति भूषण ने कहा, ‘सार्वजनिक रूप से आवेदन मांगे गये थे. ..यह स्पष्ट है कि यह कुछ भ्रष्ट और महत्वपूर्ण नेताओं के अभियान का हिस्सा है, क्योंकि अगर मैं संयुक्त समिति में रहा तो उनके लिये विधेयक का हल्का मसौदा तैयार करवा पाना संभव नहीं होगा.’ उन्होंने कहा, ‘(अगर मैं समिति में रहा तो) वे एक सख्त भ्रष्टाचार निरोधक विधेयक बनाने के लिये मजबूर हो जायेंगे.
संभवत: ऐसे नेता आशंकित हैं. वास्तविक इरादा (लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया को) पटरी से उतारने का प्रतीत होता है.’ ये नये आरोप लगने से कुछ ही दिन पहले जाने माने वकील एक ‘फर्जी’ सीडी के सामने आने पर भी विवादों में फंसे थे. इस सीडी में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव तथा अमर सिंह के साथ भूषण की हुई कथित बातचीत रिकॉर्ड है. पूर्व विधि मंत्री ने इन आरोपों का खंडन किया है.
पूर्व अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल विकास सिंह ने भी फार्महाउस हासिल करने के लिये आवेदन किया था और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में आवंटन के खिलाफ याचिका दाखिल की थी. सिंह ने कहा कि वह विकसित भूखंडों के कम राशि में आवंटन के बारे में नोएडा प्रशासन को पत्र लिखते रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैं यह मुद्दा बीते छह-सात महीने से उठा रहा हूं. इनकी नीलामी नहीं की गयी है. ये सभी विकसित क्षेत्र हैं और इस तरह के भूखंडों का विरोध होगा.’ उधर, जयंत भूषण ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि उपलब्ध भूखंडों की तुलना में आवेदन अधिक थे. लिहाजा, इसके लिये ड्रॉ निकाला जाना चाहिये था.
इस विवाद पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रमुख रीता बहुगुणा जोशी ने कहा, ‘हम लोकपाल विधेयक के लिये अन्ना हज़ारे की कोशिशों का स्वागत करते हैं लेकिन उन्हें (भूषण) तथा उनके परिवार के सदस्यों को उठाये गये सवालों के जवाब देने होंगे क्योंकि इनसे आम जनता के मन में संशय पैदा होता है.’
उन्होंने कहा, ‘अगर जनता के मन में एक बार संदेह पैदा हो जाये कि व्यक्ति विशेष स्वच्छ छवि वाला नहीं है तो ऐसे व्यक्ति को इस (लोकपाल विधेयक मसौदा तैयार करने की) प्रक्रिया से खुद ही अलग हो जाना चाहिये.’ रीता ने यह भी कहा कि देश में ज्ञानवान और प्रतिभाशाली वकीलों तथा देशभक्तों की कमी नहीं है. लिहाजा, किसी को भी समिति का सदस्य बनाया जा सकता है.
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मोहन सिंह ने कहा कि जब शांति भूषण खुद ही स्वीकार कर चुके हैं कि उन्होंने इन आवंटन के लिये रिश्वतखोरी होने की बात सुनी थी तो उन्होंने ‘भूखंडों का आवंटन क्यों स्वीकार किया.’ सिंह ने कहा, ‘न सिर्फ उनके पुत्र को, बल्कि खुद शांति भूषण को भी भूखंड आवंटित हुआ. उनके अनुसार इस आवंटन के लिये कोई ड्रॉ नहीं निकला और आवंटन सीधे तौर पर किया गया. उनके द्वारा स्वीकार की गयी बात के तहत अगर रिश्वत दी गयी थी तो उन्होंने इस तरह के भूखंड को क्यों स्वीकार किया.’ पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने आरोप लगाया कि ऐसा प्रतीत होता है कि इस समिति के खिलाफ विभिन्न ताकतें काम कर रही हैं.
उन्होंने कहा, ‘ऐसा लगता है कि कुछ लोग लोकपाल विधेयक के लिये समिति नहीं चाहते. मुझे समझ में नहीं आ रहा कि जब आमतौर पर अपनायी जाने वाली प्रक्रिया का पालन हुआ तो फिर इसे मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है.’