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नोएडा एक्‍सटेंशन: 3 गांवों का अधिग्रहण रद्द

नोएडा एक्सटेंशन भूमि-‍अधिग्रहण पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुना दिया है. यह फैसला किसानों के पक्ष में लिया गया है. हाईकोर्ट ने तीन गांवों (देवला, शाहबेरी और असादल्लापुर) में अधिग्रहण को पूरी तरह गलत गैरकानूनी करार देते हुए किसानों की जमीन वापस करने की बात कही.

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नोएडा एक्सटेंशन पर फैसला
नोएडा एक्सटेंशन पर फैसला

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उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार को झटका देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नोएडा, ग्रेटर नोएडा और नोएडा एक्सटेंशन के तीन गांवों में भूमि अधिग्रहण को रद्द कर दिया और गौतम बुद्ध नगर जिले में कुछ अन्य गांवों के किसानों के लिए मुआवजा बढ़ाने का आदेश दिया.

यह आदेश विशेष तौर पर गठित तीन जजों की पीठ ने पारित किया. न्यायमूर्ति अशोक भूषण, एसयू खान और वीके शुक्ला की पीठ ने जिले में एक दर्जन से अधिक गांवों के 491 किसानों द्वारा दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया. इन किसानों ने राज्य सरकार द्वारा 3,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि अधिग्रहण को चुनौती दी है. तीन गांवों. देवला, चाक शाहबेरी और असदुल्लाहपुर में रिहाइशी फ्लैटों के मालिक उच्च न्यायालय के इस आदेश से प्रभावित होंगे.

नोएडा एक्सटेंशन की 'टेंशन' पर फैसला
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि इन गांवों के प्रभावित किसान अपनी भूमि वापस लेने के पात्र होंगे बशर्ते उन्हें अगर कोई मुआवजा पहले मिल चुका है, तो उसे लौटा दें. न्यायालय ने यह आदेश भी दिया कि जब तक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र नियोजन बोर्ड द्वारा निर्माण की मंजूरी नहीं दी जाती है, क्षेत्र में आगे कोई निर्माण नहीं होगा.

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न्यायालय ने इस बात को गंभीरता से लिया कि जिले में आपात धारा लगाकर ‘नियोजित औद्योगिक विकास’ के उद्देश्य से व्यापक स्तर पर भूमि का अधिग्रहण किया गया, लेकिन बाद में इसे रिहाइशी परिसरों के निर्माण के लिए निजी बिल्डरों को सौंप दिया गया. पीठ ने कहा कि राज्य के मुख्य सचिव को एक ऐसे अधिकारी जो सचिव के रैंक से नीचे न हो, के जरिए निजी बिल्डरों को भूमि आबंटन की संपूर्ण प्रक्रिया की जांच कराने और इसकी रपट राज्य सरकार को सौंपने का निर्देश दिया जाता है.

किसानों की ओर से पेश हुए वकील ने कहा क‍ि प्राधिकरण के अधिकारियों की मिलीभगत से एक तरह का माफिया काम कर रहा है क्योंकि जिस तरह से भूमि का अधिग्रहण किया गया, वह अनुचित था. उन्होंने कहा कि मेरी निवेशकों से पूरी सहानुभूति है, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि यह विवाद पूरी तरह से किसानों और बिल्डरों के बीच है.

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मुआवजा प्राप्त करने वाले इतारा गांव के किसान सुरेन्द्र यादव ने कहा कि हम इस आदेश से संतुष्ट नहीं है. इसमें नया कुछ नहीं. हम यह सौदा दो-तीन महीने पहले कर सकते थे. अगर वे इसे खत्म नहीं करते तो हम उच्चतम न्यायालय जाएंगे. राज्य सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण कानून की आपात धारा लागू करना याचिकाकर्ताओं के बीच नाराजगी की एक प्रमुख वजह रही है और प्रभावित किसानों का दावा है कि इससे वे आपत्ति उठाने एवं बेहतर मुआवजे के लिए मोलभाव करने के अवसर से वंचित हो गए.

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इसके अलावा, वे भूमि के इस्तेमाल में बदलाव पर भी आपत्ति करते रहे है और उनका कहना था कि जहां सरकारी अधिसूचना में नियोजित औद्योगिक विकास का हवाला देकर भूमि अधिग्रहण किया गया, इसे बाद में बिल्डरों को मकान बनाने के लिए सौंप दिया गया. कई बिल्डरों एवं फ्लैट मालिकों ने भी उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर रखी थी और न्यायालय से अनुरोध किया था कि प्रतिकूल आदेश से वे बुरी तरह प्रभावित होंगे.

नोएडा और नोएडा एक्सटेंशन में मचा बवाल
गौरतलब है कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा और नोएडा एक्सटेंशन के इलाकों का विकास मायावती सरकार की प्राथमिकता सूची में काफी उपर रहा है. हालांकि, पिछले कुछ वषरें में इस उद्देश्य के लिए भूमि अधिग्रहण एक संवेदनशील मुद्दा बन गया है और सरकार किसानों के भारी विरोध एवं विपक्षी दलों द्वारा आलोचना किए जाने से खुद को असमंजस की स्थिति में पा रही है.

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इससे पहले, 12 मई को उच्च न्यायालय ने गौतम बुद्ध नगर के शाहबेरी गांव में 156 हेक्टेयर भूमि के अधिग्रहण को रद्द कर दिया था. राज्य सरकार ने इस गांव की भूमि का अधिग्रहण औद्योगिक विकास के नाम पर किया था, लेकिन बाद में इसे निजी बिल्डरों को बेच दिया था. उच्च न्यायालय के इस निर्णय के खिलाफ राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय में अपील की थी जिसे उच्चतम न्यायालय ने ठुकरा दिया था. मामले की गंभीरता को देखते हुए न्यायालय ने इन सभी याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तीन जजों की एक विशेष पीठ का गठन किया था.

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