अन्ना हजारे ने कहा है कि जब तक उनके शरीर में प्राण है, तब तक जनलोकपाल के लिए लड़ते रहेंगे. उन्होंने कहा कि जनता को जेल भरो आंदोलन के लिए तैयार रहना चाहिए.
फोटो गैलरी: जंतर-मंतर पर अन्ना का सांकेतिक अनशन
अन्ना हजारे ने एक दिन के अनशन के दौरान दिल्ली के जंतर-मंतर से कहा कि आजादी के इतने बरस बाद भी लोगों का इसका लाभ नहीं मिला. उन्होंने कहा कि देश की नीतियों और व्यवस्था में कई बदलावों की जरूरत है.
अन्ना हजारे ने कहा कि 'राइट टू रिजेक्ट' का अधिकार और ग्राम सभा को और शक्ति दिया जाना बाकी है. अन्ना ने कहा कि सत्ता का विकेंद्रीकरण बेहद जरूरी है.
राजनीतिक दलों का आह्वान करते हुए अन्ना हजारे ने कहा कि सभी पार्टियों को आंदोलन में शामिल होना चाहिए. उन्होंने कहा कि जनता का दर्जा सरकार से बड़ा है. जनता मालिक है और नेताओं का दर्जा दूसरा है.
अन्ना हजारे ने जंतर-मंतर पर बहस में शामिल होने के लिए राजनीतिक दलों के नेताओं के प्रति आभार प्रकट किया.
प्रभावी लोकपाल की मांग को लेकर जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे को राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों का जबरदस्त समर्थन मिला. उन्होंने अन्ना हजारे को संसद में प्रभावी लोकपाल बनवाने का भरोसा भी दिलाया. वहीं, अन्ना हजारे ने कहा कि जनप्रतिनिधियों के यहां आने से उनके आंदोलन को ताकत मिली है.
प्रभावी लोकपाल की मांग को लेकर उपवास शुरू करने से पहले अन्ना हजारे ने 'भारत माता की जय', 'वंदे मातरम' व 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारे लगाए. इससे पहले वह राजघाट गए और राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि अर्पित की. इस बीच उनके सैकड़ों समर्थक जंतर-मंतर पर पहुंच चुके थे.
विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता भी मंच पर पहुंचे और उन्होंने प्रभावी लोकपाल के पक्ष में विचार व्यक्त किए. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अरुण जेटली और बीजू जनता दल (बीजद) के पिनाकी मिश्रा ने प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में लाने की मांग की.
वहीं, जनता दल (युनाटेड) के शरद यादव ने कहा, 'आपके (टीम अन्ना) जनलोकपाल विधेयक में कोई अल्पविराम या पूर्ण विराम भी नहीं बदलना चाहिए.' उनके सम्बोधन के बाद लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनका स्वागत व धन्यवाद किया.
भाजपा नेता जेटली ने संसद की स्थायी समिति की ओर से सौंपी गई लोकपाल रिपोर्ट पर संसद की भावना को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, 'अन्ना हजारे ने जब अपना पिछला अनशन तोड़ा था तो उस समय संसद के दोनों सदनों ने अपनी भावना प्रदर्शित की थी, जिसमें राज्यों के भीतर लोकायुक्त की नियुक्ति, सिटिजन चार्टर, निचले स्तर की अफसरशाही को लोकपाल के दायरे में लाने की बात कही गई थी. लेकिन स्थायी समिति की रिपोर्ट संसद की भावना के अनुरूप नहीं है.'
उन्होंने कहा, 'स्थायी समिति में हमारे दल के जो सदस्य थे, उन्होंने असहमति के नोट के साथ अपने विचार रखे हैं. हमारी राय स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री लोकपाल के दायरे में होने चाहिए और केवल ग्रुप 'ए' और 'बी' के अधिकारी इसके दायरे में हों और 'सी' और 'डी' ग्रपु के अधिकारियों को इससे बाहर रखा जाएगा, इसे हम स्वीकार करने वाले नहीं हैं.'
समाजवादी पार्टी (सपा) के राम गोपाल यादव ने आरोप लगाया कि अगस्त में अन्ना हजारे का अनशन तुड़वाने के लिए सरकार ने जो प्रस्ताव पारित करवाया था कि उससे पीछे हटकर वह संसद के साथ धोखा कर रही है. उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि अन्ना हजारे को अपने जनलोकपाल विधेयक के 'प्रत्येक शब्द' को स्वीकार करने के लिए जिद नहीं करनी चाहिए.
वहीं, तेलुगूदेशम पार्टी (तेदेपा) के के. येरन ने कहा कि सभी दलों को टीम अन्ना का जनलोकपाल विधेयक स्वीकार करना चाहिए. कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी व पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि मां-बेटे भ्रष्टाचार से लड़ने को लेकर गम्भीर नहीं हैं.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की वृंदा करात ने कहा कि उनकी पार्टी न केवल सरकार के भीतर, बल्कि निजी क्षेत्र में भी भ्रष्टाचार से मुकाबले के लिए प्रभावी लोकपाल पक्ष में है. उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र में भ्रष्टाचार से लड़ना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे स्वतंत्रतापूर्वक राष्ट्रीय सम्पदा 'लूट' रहे हैं. हमें कॉरपोरेट जगत में भ्रष्टाचार पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के महासचिव ए.बी. बर्धन ने कहा कि वह हालांकि कई मुद्दों पर अन्ना पक्ष के साथ हैं, लेकिन जनलोकपाल विधेयक को पूरी तरह स्वीकार किए जाने को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा दिखाई जा रही सख्ती के खिलाफ हैं. उन्होंने सामाजिक कार्यकर्ताओं से लचीला रुख अपनाने को कहा.
अन्ना हजारे के सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने भी राहुल पर जमकर हमला बोला. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने चाहा तो संसदीय समिति ने लोकपाल को संवैधानिक दर्जा दिए जाने की सिफारिश कर डाली और हम अपनी मांगों को लेकर लगातार संघर्ष कर रहे हैं लेकिन समिति ने हमारी मांगों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया. यहां तक कि प्रधानमंत्री के वादे और संसद के प्रस्ताव तक को कूड़ेदान में डाल दिया गया.
सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर प्रतिबंध लगाने की केंद्रीय दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल की मंशा पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा, 'फेसबुक और अन्य सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट से हमें अपने आंदोलन को मजबूत करने में काफी मदद मिली, इसलिए उन्होंने इस पर भी प्रतिबंध लगाने की कोशिश की. लेकिन इसके बावजूद देखिए..यहां कितने लोग एकत्र हुए हैं.'
अन्ना हजारे की अन्य सहयोगी किरण बेदी ने संसद से अनुरोध किया कि वह लोकपाल विधेयक पर स्थायी समिति की सिफारिशों को नामंजूर कर दे और जनता की आवाज सुने.