उच्चतम न्यायालय ने पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा के कार्यकाल के दौरान दूरसंचार ऑपरेटरों को आवंटित किये गये 122 लाइसेंस रद्द करने के लिये दायर की गई याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रखा. इन ऑपरेटरों को 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले में कथित रूप से लाभ हुआ था.
जी एस सिंघवी और ए के गांगुली की खंडपीठ ने सभी संबंधित कंपनियों, सरकार और याचिकाकर्ताओं का पक्ष सुनने के बाद अपनी कार्रवाई को खत्म किया. नागरिक समाज के कई समूहों द्वारा दायर की गई संयुक्त जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि दूरसंचार विभाग द्वारा राजा दूरसंचार मंत्री रहने के दौरान स्पेक्ट्रम आंवटन करते समय ‘कई कानूनी गड़बड़ियां, भ्रष्टाचार और पक्षपात किया गया.’
याचिकाकर्ताओं में टेलीकॉम वाचडॉग, कॉमन कॉज, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जे एम लिंगदोह, टी एस कृष्णमूर्ति और एन गोपालास्वामी और पूर्व सतर्कता आयुक्त पी शंकर शामिल हैं. याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि टीआरएआई ने 122 लाइसेंसों में से 69 को रद्द करने की अनुशंसा की है क्योंकि लाइसेंस देने की शर्तों के मुताबिक वे निश्चित समय सीमा के भीतर सेवा शुरू नहीं कर सके. {mospagebreak}
इससे पहले पीठ ने 11 निजी दूरसंचार कंपनियों को नोटिस जारी किया था जिन्हें कथित तौर पर अयोग्य होने के बावजूद लाइसेंस दिया गया था या निश्चित समय सीमा के अंदर वे सेवा शुरू करने में विफल रहे. जिन निजी दूरसंचार कंपनियों को नोटिस जारी किये गये उनमें इटीसालट यूनिनोर, लूप टेलीकॉम, वीडियोकॉन, एस टेल, अलायंज इन्फ्रा, आइडिया सेलुलर, टाटा टेलीसर्विसेज, सिस्टेमा श्याम टेलीसर्विसेज, डिशनेट वायरलेस, वोडाफोन एस्सार के साथ ही टीआरएआई भी शामिल है.
2जी आवंटन घोटाले से फायदे में रहने वाली दूरसंचार कंपनियों ने स्पेक्ट्रम आवंटन में किसी तरह की अवैधता से इनकार किया और उच्चतम न्यायालय से कहा कि अगर राजा के कार्यकाल में पहले आओ पहले पाओ नीति को अवैध माना जाता है तो वर्ष 2003 से सभी आवंटनों को निरस्त किया जाये. मामले में अदालती सुनवाई ने वस्तुत: पुराने सेवा प्रदाताओं के साथ लड़ाई का रूप ले लिया जिन्होंने तर्क दिया कि उनको आवंटित स्पेक्ट्रम वैध हैं और नयी कंपनियों के साथ उनकी तुलना नहीं की जानी चाहिए जिनके लाइसेंस न्यायिक निगरानी के दायरे में हैं.