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2014 चुनावों के लिए कांग्रेस ने किया मंथन

सुधार के नाम पर सरकार ऐसे कदम उठा रही है, जो लोगों की जेब पर भारी पड़ रहा है. खुद कांग्रेस में इस बात को लेकर असंतोष है. कहीं लोगों की नाराजगी और पार्टी का असंतोष अगले चुनाव में जीत की उम्मीदों पर पानी ना फेर दे, इसलिए सोनिया ने सबको तालमेल की घुट्टी पिलायी.

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सोनिया गांधी
सोनिया गांधी

सुधार के नाम पर सरकार ऐसे कदम उठा रही है, जो लोगों की जेब पर भारी पड़ रहा है. खुद कांग्रेस में इस बात को लेकर असंतोष है. कहीं लोगों की नाराजगी और पार्टी का असंतोष अगले चुनाव में जीत की उम्मीदों पर पानी ना फेर दे, इसलिए सोनिया ने सबको तालमेल की घुट्टी पिलायी.

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पैगाम आम आदमी तक पहुंचाना था, इसीलिए देश की हुकूमत चलाने वाली कांग्रेस बस पर सवार हो गयी. ठंड की सनसनाहट के बीच पार्टी और सरकार में गर्मी फूंकने की ये नई कोशिश है कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की. एसपीजी सुरक्षा का तामझाम तो वैसा ही था, मगर गाड़ियों के काफिले की जगह 24 अकबर रोड से बस पर सवार होकर निकलीं सोनिया गांधी. और साथ में थे उनके बेटे और कांग्रेस के नंबर 2 नेता राहुल गांधी.

फिर तो संगठन और सरकार दोनों ही सोनिया और राहुल के पीछे-पीछे उस सूरजकुंड के लिए निकल पड़ी, जहां संवाद का हवनकुंड सजा. सरकार और संगठन ने बातचीत की आंच पर अपनी खामियों को गलाने और छवि को चमकाने का संकल्प लिया.

मुश्किल से 18 महीने बचे हैं, जब जनता मनमोहन सिंह की सरकार और सरकार चलाने वाली कांग्रेस से पांच साल का पूरा हिसाब मांगेगी. 8 साल से कांग्रेस का नारा है- कांग्रेस का हाथ-आम आदमी के साथ. उस आम आदमी से जुड़ी जरूरतों पर भले ही भ्रष्टाचार से लेकर महंगाई तक का वार हो रहा हो, लेकिन कांग्रेस की सबसे बड़ी नेता को भरोसा है कि संगठन और सरकार का ये कदमताल 2014 की बैतरणी पार लगा देगा.

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खुद सोनिया गांधी ने संवाद की शुरुआत करते हुए सूरजकुंड में कहा- पिछले 8 वर्षों की हमारी शानदार उपलब्धियों का इतिहास हमारे साथ है. हमें आम आदमी के हित में अपनी प्रतिबद्धता पर गर्व होना चाहिए, यह प्रतिबद्धता हमारे लिए धर्म है. पिछले 8 साल में हमने अपने भारत को बहुत हद तक ज्यादा संवेदनशील भारत बनाया है.

समाज के सभी वर्गों-खासकर कमजोर वर्गों के लिए, हमने बहुत से ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. हालांकि अभी भी हमारे सामने बहुत कठिन चुनौतियां हैं. फिर भी इतिहास इस बात की गवाही देगा कि हमारे बेमिसाल कार्यक्रमों और कानूनों ने भारत की तस्वीर बदली है.

सरकार की कामयाबियां गिनाते हुए पार्टी की अध्यक्ष को अगर-मगर से लेकर हालांकि और फिर भी जैसी वैशाखियों की जरूरत पड़ी. अब सवाल है कि सरकार का इकबाल बुलंद ही है और संगठन मजबूत तो क्या जरूरत थी संवाद की. खुद सोनिया गांधी का भाषण ही कांग्रेस की दुखती रग पर हाथ रख गया.

हमारी सरकार को मौजूदा गंभीर हालत के कारण कुछ ऐसे फैसले लेने पड़े हैं, जिनकी वजह से आम लोगों को काफी तकलीफ हुई है. हमारे सामने चुनौती यह है कि हम लोगों को उन मजबूरियों के बारे में साफ-साफ बताएं और समझाएं, जिनकी वजह से ये कठिन फैसले लिए गये.

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पिछले दिनों ही मनमोहन के मंत्रिमंडल में हुए बड़े पैमाने पर फेरबदल में कई मंत्री सरकार से संगठन में आ गये और संगठन वाले सरकार में आ गये. लेकिन इस फेरबदल से भी पार्टी और सरकार के बीच बेहतर तालमेल नजर नहीं आता. इसीलिए सोनिया गांधी को सधे स्वर में कहना पड़ा कि मिलके काम करो, वरना आगे दिक्कत होगी.

कांग्रेस कार्यकर्ता होने के नाते हम सभी एक ही परिवार के सदस्य हैं. हममें से हर एक की अपनी जिम्मेदारी है, वह चाहे सरकार में मंत्री के तौर पर हों, चाहे संगठन में पदाधिकारी के तौर पर. यह स्वाभाविक है कि कभी-कभी ऐसे मौके आए कि हमें पार्टी और सरकार दोनों की जिम्मेदारियों के निर्वाह में संतुलन बैठाने की जरूरत महसूस हो.

इस बैठक में कांग्रेस कार्यकारिणी के 19 सदस्य, 18 आमंत्रित सदस्य, सरकार में कांग्रेस कोटे के 23 कैबिनेट मंत्री और 12 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री बुलाए गये. यानी कुल जमा 70 लोग. बहुत कम बोलने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लेकर वित्त मंत्री पी चिदंबरम समेत कई नेताओं ने अपनी बात रखी. लेकिन हर जुबान से निकले शब्द 2014 के चुनाव और उसके लिए कांग्रेस की चिंता की आहट सुना रहे थे.

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