बिहार में भाजपा-जनता दल (यू) गठबंधन पर संकट के बादल आज भी मंडराते रहे. पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी और वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के बीच सिलसिलेवार बैठकों के बावजूद भाजपा नेतृत्व गठबंधन के भविष्य को लेकर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाया.
सोमवार शाम यहां पहुंचने के फौरन बाद गडकरी और पार्टी के वरिष्ठ नेता एम वेंकैया नायडू ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के कार्यकारी अध्यक्ष आडवाणी के साथ विचार विमर्श किया.
इसके बाद गडकरी के आवास पर एक और बैठक हुई जहां नायडू, बिहार भाजपा प्रमुख सी पी ठाकुर और पार्टी प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन मौजूद थे. सूत्रों ने बताया कि संगठन के महासचिव रामलाल भी इस बैठक में शामिल हुए.
बैठक के बाद हुसैन ने संवाददाताओं को बताया, ‘‘भाजपा अध्यक्ष नितिन गड़करी ने हमारे वरिष्ठ नेताओं के साथ बिहार के राजनीतिक हालात पर विस्तार से विचार विमर्श किया. उन्होंने इस मामले पर चर्चा के लिए पार्टी की बिहार इकाई की कोर ग्रुप की बैठक कल मंगलवार को बुलाने का फैसला किया. इसके बाद वह इस मामले पर कोई निर्णय लेंगे.’’ आडवाणी इस बात के पक्ष में हैं कि 15 वर्ष पुराना गठजोड़ विधानसभा चुनाव के दौरान भी जारी रहे. उन्होंने ठाकुर के साथ घटनाक्रम पर विचार विमर्श किया.
जदयू के साथ गठबंधन जारी रखने पर भाजपा के नेता बंटे हुए हैं लेकिन केंद्र में पार्टी के ज्यादातर बड़े नेताओं को लगता है कि यह गठबंधन जारी रहना चाहिए. आडवाणी, उनके करीबी सहयोगी और बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी भी जदयू के साथ गठबंधन के पक्षधर हैं.
रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विश्वास यात्रा से दूर रहने वाले मोदी को पटना में एक कार्यक्रम के दौरान कुमार से बतियाते देखा गया.
कड़े शब्दों के साथ जवाबी कार्रवाई करने वाली भाजपा आज जदयू के साथ गठबंधन नहीं तोड़ने का इरादा जाहिर करती नजर आई. हुसैन ने भी संकेत दिया कि मतभेदों के बावजूद भाजपा गठंधन को जारी रखना चाहेगी.
नीतीश कुमार भी आज ज्यादा नहीं बोले और पत्रकारों के सवालों के जवाब में उन्होंने कहा, ‘रिलेक्स, टेंशन क्यों लेना.’ भाजपा और जदयू दोनों पार्टियों के सूत्रों के मुताबिक, यह बात समझ में आ रही है कि गठबंधन तोड़ने से आगामी विधानसभा चुनावों में दोनों पार्टियों को नुकसान होगा.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने तो यहां तक कह दिया कि गठबंधन की कुर्बानी देकर नीतीश कुमार कुछ जगहों पर मुस्लिम मतदाताओं को जरर रिझा सकेंगे लेकिन इसका कोई खास फायदा नहीं होगा क्योंकि उंची जातियों और अन्य जातियों के वोट उसके हाथ से निकल जाएंगे.