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अखिलेश, राहुल के युवा कॉर्ड में पिछड़ी बीजेपी

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के मठाधीश अपनी जगह छोड़ने को तैयार नहीं हैं और केंद्रीय नेतृत्व उन्हें नजरअंदाज कर युवा नेतृत्व को आगे लाने का जोखिम नहीं ले रहा है. यही वजह है कि पार्टी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के युवा कार्ड से काफी पीछे होती दिखाई दे रही है.

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उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के मठाधीश अपनी जगह छोड़ने को तैयार नहीं हैं और केंद्रीय नेतृत्व उन्हें नजरअंदाज कर युवा नेतृत्व को आगे लाने का जोखिम नहीं ले रहा है. यही वजह है कि पार्टी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के युवा कार्ड से काफी पीछे होती दिखाई दे रही है.

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इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पार्टी के एक वरिष्ठ नेता से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पार्टी में रसूख रखने वाले मठाधीशों की लॉबिंग के चलते ही भाजपा आलाकमान को आगे की बजाए पीछे देखने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

बीजेपी के यह नेता कहते हैं, 'यह हालत तब है जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी पार्टी में युवा चेहरों को उभारकर पार्टी को नया कलेवर देना चाहते हैं. उनकी सोच 40 से 50 वर्ष के बीच के नेताओं को आगे लाने की है लेकिन उन्होंने ही खुद हुकुमदेव सिंह और लक्ष्मीकांत वाजपेयी के नामों को हरी झंडी दिखाई. बीजेपी के नए प्रदेश अध्यक्ष एक मई से अपने कामकाज की औपचारिक शुरुआत करेंगे लेकिन उन्हें सबसे बड़ी समस्या राज्य कार्यकारिणी के गठन को लेकर है.' ज्ञात हो कि सिंह विधानसभा में बीजेपी विधायक दल के नेता की जिम्मेदारी सम्भाल रहे हैं वहीं पार्टी ने वाजपेयी को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है.

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सूर्य प्रताप शाही, कलराज मिश्र, राजनाथ सिंह, ओम प्रकाश सिंह, लालजी टंडन जैसे वरिष्ठ नेता अपने चहेतों को अहम पद दिलवाने की कोशिश करेंगे. इन सबके साथ समन्वय बनाना नए प्रदेश अध्यक्ष के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. इन सारे नेताओं की महात्वाकाक्षाओं को दरकिनार करना वाजपेयी के लिए टेढ़ी खीर साबित होगी.

बीजेपी के यह नेता कहते हैं, 'लोग अभी से अपने चहेतों को अहम पदों पर बैठाने की कवायद शुरू कर चुके हैं. पार्टी के कुछ मठाधीश तो युवा चेहरों के नाम पर अपने भाई भतीजों को आगे लाकर किसी न किसी रूप में अपना वर्चस्व बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं.'

पार्टी के एक अन्य पदाधिकारी कहते हैं, 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने भले ही भाजपा में केंद्रीय स्तर पर दखल देकर गडकरी को राष्ट्रीय कमान सौंप दी हो लेकिन राज्यों में युवा नेतृत्व को उभारने की हिचक साफ देखी जा सकती है और वह भी ऐसे समय में जब उत्तर प्रदेश की कमान सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री के हाथ में है.'

भारतीय जनता युवा मोर्चा से जुड़े यह पदाधिकारी कहते हैं, 'बीजेपी के पास दिनेश शर्मा, स्वंतत्र देव सिंह, महेंद्र सिंह, धर्मपाल सिंह और वरुण गांधी जैसे लोगों के मौजूद होने के बावजूद 71 साल के ओम प्रकाश सिंह की जगह 73 वर्ष के हुकुमदेव सिंह और पार्टी अध्यक्ष के पद पर 58 साल के सूर्य प्रताप शाही की जगह 61 साल के लक्ष्मीकांत वाजपेयी को वरीयता दी गई.'

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वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अभयानंद शुक्ल कहते हैं, 'बीजेपी अब कैडर की पार्टी नहीं रही. यहां मठाधीशों का कब्जा हो गया है, जो यही चाहते हैं कि उनके जाने के बाद उनके अपनों का ही वर्चस्व पार्टी में बरकरार रहे.'

इस संबंध में बीजेपी के प्रदेश इकाई के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा, 'उम्र के आधार पर कार्य पद्धति का निर्धारण नहीं किया जा सकता. केंद्रीय नेतृत्व सभी लोगों को समय-समय पर अवसर प्रदान करता है. जिन लोगों को जिम्मेदारी सौंपी गई है, वे लोग पार्टी को विस्तार देने में सक्षम हैं.

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