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बीपीएल जनगणना: गरीब की शामत

गरीबों के साथ ही जाति की गणना पर मुहर लगाकर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लंबे समय से चली आ रही 'गरीबी हटाओ' की राजनीति को नए सिरे से हवा दी है.

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गरीबों के साथ ही जाति की गणना पर मुहर लगाकर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लंबे समय से चली आ रही 'गरीबी हटाओ' की राजनीति को नए सिरे से हवा दी है.

लेकिन इस चक्कर में सरकार ने जनगणना के मूल सिद्धांतों को ही सिर के बल खड़ा कर दिया है. जनगणना शुरू होने के पहले ही सरकार को बखूबी मालूम है कि देश में 37.2 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले (बीपीएल) हैं. और योजना आयोग इस बात पर अड़ा हुआ है कि गिनती चाहे किसी भी पैमाने पर कर ली जाए, बीपीएल की संख्या 37.2 फीसदी ही रहेगी. सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बावजूद इस आंकड़े का पेट भरने के लिए बीपीएल की गिनती का काम जून के अंत तक शुरू हो जाएगा. इस पर पूरे 4,000 करोड़ रु. की रकम खर्च होने का अनुमान है.

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सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय  सलाहकार परिषद् (एनएसी) की मंजूरी मिलने के बाद सरकार के हौसले इतने बुलंद हैं कि पहले से चल रही करीब 3,000 करोड़ रु. की यूनीक आइडेंटिटी नंबर (यूआइडी) परियोजना से इसे जोड़ने के बारे में सोचा तक नहीं गया.

बीपीएल जनगणना के गणित को आसान भाषा में समझ्ना हो तो मामला यह है कि सरकार पहले से तय करना चाहती है कि वह अपनी योजनाओं में बीपीएल के लिए कितना पैसा खर्च करेगी.

अब बीपीएल की आबादी चाहे कितनी भी रहे, सरकार पैसा इतना ही खर्र्च करेगी. ऐसे में बीपीएल की बड़ी तादाद बाद में कोई झंझट खड़ा न करे, इसलिए सरकार ने बजट के साथ ही गरीबों की संख्या भी तय कर ली है.

मामले की तह में जाएं तो दिखता है कि योजना आयोग का बस चलता तो वह गरीबों की संख्या को 37.2 फीसदी से भी नीचे रखता, लेकिन बीपीएल की रूपरेखा तय करने के लिए बनी सुरेश तेंडुलकर कमेटी ने अप्रैल, 2010 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा कि देश के ग्रामीण क्षेत्र में 41.8 फीसदी आबादी गरीब है. वहीं शहरी क्षेत्र में गरीबी का आंकड़ा 25.7 फीसदी रहा. इस तरह गांव और शहर मिलाकर देश की कुल गरीब आबादी 37.2 फीसदी मान ली गई.

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तेंडुलकर कमेटी ने नेशनल सेंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन के 2004-05 में किए गए नेशनल हाउसहोल्ड कंजम्शन एक्सपेंडीचर सर्वे के आधार पर यह आंकड़ा पेश किया. मजे की बात यह कि इसी सर्वेक्षण के आधार पर सरकार गरीबों की तादाद को 27 फीसदी मानकर चल रही थी, लेकिन बाद में योजना आयोग ने तेंडुलकर कमेटी की रिपोर्ट मंजूर कर ली.

उधर बीपीएल जनगणना का तरीका सुझाने के लिए गठित एन.सी. सक्सेना कमेटी ने पोषण के आधार पर देश में 50 फीसदी लोगों को गरीब माना. वहीं ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के 2010 के आकलन के मुताबिक देश में 55 फीसदी लोग गरीब हैं. पर योजना आयोग ने इन आंकड़ों को स्वीकार नहीं किया.

बीपीएल जनगणना में नोडल एजेंसी की भूमिका निभा रहे केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के सचिव बी.के. सिन्हा ने साफ शब्दों में कहा, ''बीपीएल जनगणना में देश की पूरी आबादी में से 37.2 फीसदी गरीबों की पहचान करने का काम किया जाना है.''  ग्रामीण विकास मंत्रालय के अलावा शहरी विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय भी नोडल एजेंसी होंगे और जनगणना के लिए कर्मचारी जुटाने का काम राज्य सरकारों को करना है.

भले ही कोई सर्वेक्षण गरीब आबादी की मोटी तस्वीर दे सकता है, लेकिन सर्वेक्षण के आंकड़े जनगणना के व्यापक आंकड़ों से ज्यादा प्रामाणिक तो नहीं हो सकते. ऐसे में सर्वेक्षण के नतीजे को जनगणना पर थोपना कहां तक जायज है? इस सवाल पर सिन्हा ने कहा, ''हमें जनगणना के माध्यम से 37.2 फीसदी गरीब लोगों को छांटने का काम मिला है.

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हमारा काम योजना आयोग के निर्देशों का अनुपालन करना है. इस जनगणना के माध्यम से देश की पूरी आबादी का आर्थिक वर्गीकरण हो जाएगा और इनमें से सबसे गरीब 37.2 फीसदी लोग बीपीएल माने जाएंगे. इस आंकड़े से छेड़छाड़ का अधिकार हमारे पास नहीं है.'' गौरतलब है, बीपीएल जनगणना का यह काम पूरी तरह कंप्यूटराइज्ड होगा. इसके लिए 6 लाख से अधिक टेबलेट पीसी (लेपटॉप जैसा कंप्यूटर) का इस्तेमाल किया जा रहा है. वहीं जाति के आंकड़े गुप्त रखे जाएंगे और सरकार बाद में इन्हें सार्वजनिक करेगी.

गरीबों की इस तरह की गिनती किस हद तक जायज है, इस सवाल पर पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टी (पीयूसीएल) की सचिव कविता श्रीवास्तव कहती हैं, ''पीयूसीएल पहले ही भूख और गरीबी के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका  दाखिल कर चुका है. इस तरह की मनमानी जनगणना गरीबों के साथ मजाक है.''

गौरतलब है कि पीयूसीएल की याचिका पर सुनवाई के दौरान ही सुप्रीम कोर्ट ने योजना आयोग से पूछा था कि गांव में 15 रु. प्रतिदिन और शहर में 20 रु. प्रतिदिन से अधिक कमाने वाले व्यक्ति को वह किस आधार पर गरीबी रेखा से बाहर कर रहा है. आयोग ने प्रतिदिन की इसी आय के आधार पर 37.2 फीसदी गरीबों का आंकड़ा तैयार किया है.

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उधर आयोग की इस बेतुकी जिद का विरोध बढ़ता जा रहा है. सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के कुछ सदस्यों ने तो आयोग के दफ्तर योजना भवन के बाहर 23 मई को धरना-प्रदर्शन भी किया. इनमें ज्यां द्रेज, अरुणा राय और हर्ष मंदर भी शामिल हैं. धरने के बाद आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने प्रदर्शनकारियों के साथ बंद कमरे में मुलाकात भी की.

बैठक में मौजूद सूत्रों के मुताबिक दोनों पक्ष अपनी बात पर अड़े रहे. इस दौरान अहलूवालिया ने कहा कि गरीबी का कोई ना कोई पैमाना तो पहले से तय करना ही पड़ेगा. आयोग को डर है कि अगर ऊपर से गरीबों की संख्या तय नहीं की जाएगी तो राज्य सरकारें इस संख्या को अपने हिसाब से बढ़ा सकती हैं.

उसकी असल चिंता यह है कि गरीबों की संख्या 37.2 फीसदी मानने पर ही खाद्य सब्सिडी के मौजूदा बिल में 6,000 करोड़ रु. का इजाफा हो जाएगा. यह बिल मौजूदा 55,780 करोड़ रु. से बढ़कर 61,780 रु. हो जाएगा. अगर  गरीबों की संख्या 50 फीसदी तक पहुंच गई तो सब्सिडी  का बोझ उठाना सरकार के लिए भारी  होगा.

बैठक में मौजूद ज्यां द्रेज ने आयोग से कहा कि बीपीएल देश में गरीबी के निर्धारण की बेस लाइन है, इसलिए सब्सिडी से इसे जोड़ना ठीक नहीं है. गरीबों का निर्धारण उनकी गरीबी के आधार पर हो, ना कि सब्सिडी बिल के आधार पर.

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उन्होंने  यह भी कहा कि जनगणना में बीपीएल एक्सक्लूजन (गरीबी रेखा से बाहर करना) पर जितना पैसा खर्च होगा उसमें तो बहुत-से गरीबों का भला हो जाएगा. बीपीएल जनगणना के मौजूदा तरीके पर अरुणा राय का मानना है कि इस तरह से गरीबों की गिनती करना देश की गरीब आबादी के साथ खिलवाड़ है. इस गिनती में असली गरीब बाहर छूट जाएंगे. ऐसे आंकड़े जब राशन वितरण प्रणाली में लागू किए जाएंगे तो इसके नतीजे भयानक होंगे.

सरकार गरीबों की असली संख्या से डर रही है. लेकिन जिस तरह एनएसी ने भी जनगणना को मंजूरी दे दी है उससे लगता नहीं कि एनएसी सदस्यों का विरोध कोर्ई असर डाल पाया है.

अब जरा इस पर नजर डालें कि आखिर सरकार ने गरीबों को खोजने का क्या नायाब तरीका बनाया है. गरीबों के चयन के लिए तीन श्रेणी बनाई गई हैं-सीधे तौर पर नजर आने वाले गरीब, सीधे तौर पर गरीबी की सीमा से बाहर के लोग और गरीबी के विभिन्न स्तर के लोग (देखें बॉक्स). इसमें सबसे ज्यादा पेच इस श्रेणी में है. तीसरी श्रेणी में से कम अंक पाने वाले बहुत-से गरीब बीपीएल सूची से गायब हो जाएंगे. सरकार अपनी विभिन्न योजनाओं में सहूलियत के लिहाज से जब चाहेगी, लोगों को शामिल कर लेगी और जब चाहेगी, बाहर कर देगी. इस तरह हर योजना के अपने-अपने गरीब नजर आएंगे.

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इसी कवायद को अंतरराष्ट्रीय नजरिए से देखें तो तस्वीर कुछ और ही दिखती है. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने ऑक्सफोर्ड पावर्टी ऐंड डेवलपमेंट इनीशिएटिव (ओपीएचआई) 2010 के तहत गरीबी मापने के लिए मल्टीडायमेंशनल पावर्टी इंडेक्स (एमपीआइ), बनाया है.

इस सूचकांक में गरीबों के चयन के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर को मुख्य इंडीकेटर बनाया गया है. इन तीन मुख्य इंडीकेटर के भीतर कुल 10 इंडीकेटर बनाए गए हैं. जिनमें बिजली, पानी और सेनिटेशन भी शामिल हैं. इस सूचकांक के मुताबिक भारत में 55.4 फीसदी लोग गरीब हैं और गरीब आबादी की हिस्सेदारी पाकिस्तान से अधिक है. श्रीलंका की तुलना में देश में 10 गुना ज्यादा गरीब हैं और इस मामले में हम इराक जैसे अशांत देश से भी आगे हैं.

ऐसे में सवाल उठता है कि पहले से तय संख्या के आधार पर क्या वाकई गरीबों के आंकड़े कभी सामने आ पाएंगे. इस बात का पूरा अंदेशा है कि लुटियन की दिल्ली से थोपी जाने वाली परियोजनाएं गांधी के गांवों पर एक बार फिर से बहुत भारी गुजरें. और नतीजा वही निकले जिसे जनकवि नागार्जुन ने एक अपनी कविता में कहा है, बाकी बच गया अंडा.

क्या है गरीबों के चयन का आधार
प्रत्यक्ष गरीबः बेघर, सड़कों पर रहने वाले लोग, कूड़ा बटोरने वाले, मूल आदिवासी और कानूनी तौर पर रिहा कराए गए बंधुआ मजदूर.

गरीबी रेखा से ऊपरः मोटर वाहन वाले घर, मछली पकड़ने की पंजीकृत नाव वाले घर, ट्रैक्टर और हारवेस्टर जैसे मशीनी कृषि यंत्र रखने वाले घर, 50,000 रु. से अधिक की क्रेडिट लिमिट वाला किसान के्रडिट कार्ड रखने वाले घर, सरकारी कर्मचारी का घर (आशा और आंगनवाड़ी जैसे कार्यकर्ता इससे बाहर होंगे), किसी भी तरह के पंजीकृत उद्यम वाले घर, 10,000 रु. महीने से अधिक की आमदनी वाले घर, आयकर या प्रोफेशनल टैक्स देने वाले घर, 3 या अधिक कमरों वाले पक्के मकान में रह रहा परिवार, फ्रिज या लैंडलाइन फोन रखने वाले परिवार.

संभावित गरीबः आर्थिक सामाजिक हालात के आधार पर गरीबी के लिए शून्य से सात के बीच अंक दिए जाएंगे. सबसे अधिक अंक वाले परिवार को गरीबी सूची में नाम दर्ज कराने में प्राथमिकता मिलेगी. कैबिनेट में पास प्रस्ताव में यह तो कहा गया है कि सबसे ज्यादा गरीब परिवारों को सबसे ज्यादा अंक मिलेंगे, लेकिन अंक प्रणाली की बारीकियां तय किया जाना अभी बाकी हैं. अंक प्रणाली में गरीबों को आर्थिक स्तर के आधार पर सूचीबद्ध किया जाएगा. योजना आयोग द्वारा तय सीमा को छूने पर बीपीएल सूची पूर्ण मान ली जाएगी.

ऑक्सफोर्ड के गरीब

देश-गरीबों का प्रतिशत

भारत-55.4

चीन-12.5

नेपाल-64.7

श्रीलंका-5.3

पाकिस्तान-51.1

बांग्लादेश-57.8

इराक-14.2

स्रोत: मल्टीडायमेंशनल पावर्टी इंडेक्स (एमपीआइ), ऑक्सफोर्ड पावर्टी ऐंड ह्‌यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव 2010

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