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बाबा रामदेव की 'अगस्‍त क्रांति' का आगाज

70 साल पहले 9 अगस्त को ही महात्मा गांधी ने मुंबई में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा देकर आंदोलन छेड़ा था. इतिहास की उसी तारीख पर सवार होकर योगगुरु बाबा रामदेव भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना आंदोलन शुरू कर रहे हैं.

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बाबा रामदेव
बाबा रामदेव

70 साल पहले 9 अगस्त को ही महात्मा गांधी ने मुंबई में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा देकर आंदोलन छेड़ा था. इतिहास की उसी तारीख पर सवार होकर योगगुरु बाबा रामदेव भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना आंदोलन शुरू कर रहे हैं.

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जिस रामलीला मैदान से पिछले साल अन्ना हजारे ने अगस्त क्रांति की थी, उसी रामलीला मैदान से रामदेव अपनी अगस्त क्रांति शुरू कर रहे हैं.

राजनीति की बिसात पर क्या रामदेव जनांदोलन खड़ा कर पाएंगे या उनका आंदोलन भी अन्ना के अनशन की तरह औंधे मुंह गिरेगा. इन सवालों के जवाब योगगुरु बाबा रामदेव मंच से ही देने वाले हैं.

पिछले जून में दिल्ली के रामलीला मैदान में सरकारी दूध से जले बाबा रामदेव इस बार छांछ भी फूंक-फूंककर पी रहे हैं, इसीलिए आंदोलन से 3 दिन पहले गुजरात के करमसद में एकांतवास के नाम पर भी सरकार की नींद हराम करने का काम ही करते रहे. फिलहाल स्वामी रामदेव ने 3 मुद्दों का प्रक्षेपास्त्र सरकार की तरफ उछाल दिया है.

पहला मुद्दा जनलोकपाल, दूसरा मुद्दा सीबीआई की स्वायत्तता और तीसरा मुद्दा काला धन का है. स्वामी रामदेव ने अपने आंदोलन के लिए रामलीला मैदान में पूरी तैयारी करवाई है.

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रामलीला मैदान में 30 हजार लोगों के लिए इंतजाम किया गया है. आंदोलन-स्थल पर 5 दरवाजे बनाए गये हैं. हर जगह सीसीटीवी की निगरानी में होगी. पार्किंग और लोगों के खाने-पीने का भी इंतजाम कर लिया गया है. पिछले साल आधी रात के पुलिसिया चक्रव्यूह में फंसे योग गुरु ने इसबार अपने स्वयंसेवकों का सख्त सुरक्षा घेरा भी तैयार करवाया है.

रामदेव और उनके समर्थकों को यकीन है कि इस तामझाम पर सवार होकर उनका आंदोलन सरकारी किले को भेदने में कामयाब रहेगा, लेकिन सवाल है कि रामदेव के आंदोलन का चरित्र क्या होगा.

रामदेव ने अबतक साफ नहीं किया है कि वो अनशन पर बैठेंगे या आमरण अनशन पर या फिर धरना देकर सरकार के कानों तक अपना विरोध पहुंचाएंगे. यह भी साफ नहीं है कि उनका आंदोलन कब तक और किस शक्ल में चलेगा. जाहिर है कि अपने मकसद में कामयाब होने के लिए रामदेव को एक लंबी डगर तय करनी होगी.

कालेधन से शुरू हुआ रामदेव का आंदोलन अब जनलोकपाल से लेकर सीबीबाई की स्वायत्तता की मांग तक पहुंच गया है, लेकिन इस आंदोलन की रूपरेखा कैसी होगी, ये साफ नहीं है. रामदेव भी अपने पत्ते खोल नहीं रहे हैं.

स्वामी रामदेव जब मीडिया से मुखातिब हुए, तो असमंजस पैदा हो गया कि ये रामदेव का एजेंडा है या अन्ना हज़ारे का.

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पिछले साल रामलीला मैदान में ही 4 लाख करोड़ का कालाधन वापस लाने के लिए सरकार को शीर्षासन कराते रहे स्वामी रामदेव अब ज़्यादा ज़ोर भ्रष्टाचार मिटाने पर लगा रहे हैं.

पिछली बार आंदोलन में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले सहयोगी आचार्य बालकृष्ण फर्ज़ीवाड़े के इल्ज़ाम में जेल में हैं. ये स्वामी रामदेव को भी मालूम है कि इस बार सरकार उन पर पलटवार का कोई मौका चूकने वाली नहीं.

कहीं सत्ता के हमले से बचने के लिए ही तो बाबा रामदेव ने नरेंद्र मोदी का गुणगान तो नहीं शुरू किया? कौन नहीं जानता कि केंद्र सरकार और कांग्रेस को सबसे तगड़ी ललकार और फटकार नरेंद्र मोदी से ही मिलती है.

इस बार रामदेव अपने आंदोलन का सस्पेंस बनाए हुए हैं. रामदेव किसी को भी बताने के लिए तैयार नहीं हैं कि रामलीला मैदान में क्या होगा? वो अनशन करेंगे या सत्याग्रह?

पिछली बार से सबक सीखकर ही शायद इसबार रामदेव सरकार को वक्त से पहले अपनी रणनीति की भनक नहीं लगने देना चाहते.

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