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बैंगलोर में जेल से बाहर निकल घूमते हैं सजायाफ्ता कैदी

बैंगलोर सेंट्रल जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे 4 कैदी फाइलों में तो जेल में दिखते हैं लेकिन असलियत ये है कि वो रोज जेल से बाहर निकलते हैं, घूमते-फिरते हैं, अपना कारोबार करते हैं और फिर वापस जेल मे लौट जाते हैं.

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क्या कोई एक साथ दो जगहों पर मौजूद हो सकता है. बैंगलोर सेंट्रल जेल की फाइलों को मानें तो ऐसा संभव है. हम बात कर रहे है 4 ऐसे कैदियों की जो दस्तावेज़ के मुताबिक तो जेल में सजा काट रहे हैं लेकिन असलियत ये है कि वो रोज जेल से बाहर निकलते हैं, घूमते-फिरते हैं, अपना कारोबार करते हैं और फिर वापस जेल मे लौट जाते हैं. ये वो कैदी हैं जो जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे हैं.

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भले ही ये बैंगलोर की सड़कों पर घूम रहे हों लेकिन जेल के दस्तावेज़ों में ये सभी बैंगलोर सेंट्रल जेल की चारदीवारी के भीतर हैं.

अब जरा इनका परिचय भी जान लें. घनश्याम सेठ, पत्नी के खून के इल्जाम में आजीवन कारावास की सजा मिली है. 9 साल से बैंगलोर के सेंट्रल जेल में बंद है.

शांतिनगर रमेश, अपनी चाची के प्रेमी के खून के आरोप में आजीवन कारावास की सजा हुई है. 10 सालों से ये बैंगलोर के सेंट्रल जेल में बंद है.

बीपीएल रवी, दो लोगों के खून के इल्जाम में इसे भी आजीवन कारावास की सजा हुई है. बैंगलोर सेंट्रल जेल में ये भी 10 साल गुजार चुका है.

कोडीगेहल्ली श्रीनिवास, एक नेता के रिश्तेदार के खून के इल्जाम में आजीवन कारावास की सजा मिली है. 8 सालों से ये भी बैंगलोर सेंट्रल जेल में बंद है.

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एक दिन ये एक रेस्टोरेंट से बाहर आते नजर आए. किसी और दिन ये एक स्टेशनरी शॉप में नजर आए. एक दिन तो हद हुई जब इनसे मिलने ये पुलिस वाला भी आ पहुंचा.

सूत्रों की मानें तो ये लोग रोज यूं हीं जेल से बाहर आते हैं, रेस्टोरेंट में खाते पीते हैं, परिचितों से मुलाकात करते हैं और अपना कारोबार करते हैं. खबर है कि पैसों की लेनदेन से लेकर जमीन के खरीदफरोख्त तक ऐसे सारे काम ये कैदी बड़े इत्मिनान से जेल से बाहर आकर अंजाम देते हैं. जब इस कारनामे का खुलासा हुआ तो जेल प्रशासन से लेकर सरकार तक में हड़कंप मच गया. कार्रवाई के आश्वासन मिलने लगे.

आपको ये जान कर हैरानी होगी की जिन कैदियों को आपने जेल के नियमों की धज्जियां उड़ाते देखा है वो जेल में अच्छे आचरण वालों की लिस्ट में शुमार हैं. जाहिर है इतना बड़ा खेल बिना जेल कर्मचारियों की मिलीभगत के नहीं हो सकता. ऐसे में जरूरी है खाकी के उन गद्दारों को सलाखों के पीछे पहुंचाना, ताकि जेल की सलाखें यूं मजाक ना बनती रहें.

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